Wednesday, October 19, 2011

Hindi Short Story Nark By M.Mubin


कहानी      नरक    लेखक  एम मुबीन   


तीन दिन में पता चल गया कि मगन भाई ने उसे कमरा किराये पर नहीं दिया बल्कि उसे कमरा किराए पर देने के नाम पर ठग लिया है.
अब सोचता है तो उसे स्‍वंय  आश्चर्य होता है कि इससे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई? बस कुछ देर के लिए वह उस बस्ती में आया. मगन भाई ने अपनी चाल का बंद कमरा खोलकर उसे बताया 1012 x कक्ष था. जिसके एक कोने में किचन बना हुआ था. उससे लगकर छोटा सा बाथरूम जिसे उर्फ आम में मवरी कहा जा सकता था. कमरे में एक दरवाजा था जो तंग सी गली में खुलता था. दो खिड़कियां थीं हुआ और प्रकाश का अच्छा प्रबंध था. जमीन पर रफ ला दिया था. कमरे का पलासटर जगह जगह से उखड़ गया था परंतु समेनट का था . छत पतरे की थी. गली के दोनों ओर कच्चे झोनपड़ों का सिलसिला था जो दूर तक फैला था. मध्य एक नली बह रही थी. जिससे गंदा पानी उबल कर चारों ओर फैल रहा था जिसकी बदबू से मस्तिष्‍क फटा जा रहा था. मगन भाई की वह चाल सात आठ कमरों शामिल थी. उसके मन ने फैसला किया कि उसे इस शहर में इतना अच्छा कमरा इतने कम दामों पर किराए पर नहीं मिल सकता है. इस शहर में इससे अच्छे कमरे की आशा भी नहीं रखी जा सकती थी. वह तुरंत कमरा लेने पर राजी हो गया.
दूसरे दिन उसने पच्चीस हजार रुपये मगन भाई को डपाज़ट के रूप में अदा किए. मगन भाई ने तुरंत किराया समझौते के दस्तावेज हस्ताक्षर कर उसके हवाले कर दिए. बिजली और पानी का अपनी तौर पर प्रबंध करने के बाद उसे किराए के रूप हर महीने मगन भाई केवल सौ रुपए अदा करने थे. किराए का करार पत्र केवल ग्यारह महीने के लिए था परंतु मगन भाई ने वादा किया था वह ग्यारह महीने बाद भी वह कमरा खाली नहीं कराएगा. वह जब तक चाहे इस कमरे में रह सकता है. अगर उसका कहीं दूसरी जगह इससे बेहतर प्रबंधन हो जाता है तो वह अपनी डपाज़ट की राशि वापस लेकर कमरा खाली कर सकता है.
उस शाम अपने दोस्त के घर से अपना छोटा सा सामान लेकर दोस्त और उसके घर वालों को अलविदा कहकर अपने नए घर में आ गया. दो तीन घंटे तो कमरे की सफाई में लग गए बाकी थोड़े से सामान को करीने से सजाने में . कमरे में बिजली का प्रबंध था. उसे सिर्फ बल्ब लगाने पड़े. कमरे की सफाई से वह इतना थक गया था कि उस रात वह बिना खाए पए ही सो गया. सवेरे हस्बेआदत सामान्य छह बजे के समीप  आंख खुली तो अपने आप को वह तर व ताज़ा महसूस कर रहा था.
बस्ती में पानी आया था. घर के सामने एक सरकारी नल पर औरतों की भीड़ थी. "पानी की व्यवस्था करना चाहिए." उसने सोचा. परंतु पानी भरने के लिए कोई बर्तन नहीं था. चहलकदमी करते हुए अपने घर से थोड़ी दूर आया तो उसे एक कराने की दुकान दिखी. इस दुकान पर लटके पानी के कैन देखकर उसकी बानछें खुल गईं. कारोबार खरीद कर वह नल पर आया और नंबर लगाकर खड़ा हो गया. नल पर पानी भरती औरतें उसे अजीब नज़रों से घूर कर आपस में एक दूसरे को कुछ इशारे कर रही थीं. उसका नंबर आया तो उसने कैन भरा और अपने घर आ गया. नहा धोकर कपड़े बदले घर में नाश्ता तो बना नहीं सकता था. नाश्ता बनाने के लिए आवश्यक कोई भी वस्‍तु  नहीं थी .
किसी होटल में नाश्ता करने का सोचता हुआ वह घर से बाहर निकल आया. सोचा नाश्ता करने तक ऑफिस का समय हो जाएगा तो वह ऑफिस चला जाएगा. उस दिन वह अपने आप को बेहद चाक और चौबनद और खुश और खुर्रम महसूस कर रहा था. एक एहसास बार बार उसके भीतर एक करोटें ले रहा था कि अब वह इस शहर में बेघर नहीं है. उसका अपना एक घर तो है.
कल तक यह एहसास उसे कचौकता रहता कि उसके पास एक अच्छी नौकरी है, परंतु रहने के लिए छत नहीं है. वह दूसरों की छत के नीचे शरण लिए हुए है. और छत की शरण कभी भी उसके सिर से हट सकती है.उसे अपनी योग्यता के आधार पर इस शहर में नौकरी तो मिल गई थी. परंतु इस शहर में उसका न तो कोई रिश्तेदार था और न ननवा. उसने ड्यूटी संयुक्त तो कर ली परंतु आवास की सबसे बड़ी समस्या किसी िफ़्रीत की तरह के सामने मुंह फाड़ खड़ा था. इस समस्या का समय हल उसने एक मध्यम स्तर के होटल में एक कमरा किराए से लेकर निकाल लिया. कुछ दिनों में ही उसे लगा कि उसकी वेतन में इस होटल में केवल रह सकता है, खा पी नहीं सकता. इसलिए उसने दूसरे सहारे की खोज शुरू कर दी. उसे एक होस्टल में सिर छिपाने की जगह मिल गई. दो चार महीने उसने होस्टल में निकाले. परंतु एक दिन वह सख्त संकट  में फंस गया. एक दिन पुलिस ने उसने होस्टल में छापा मारा और होस्टल के सारे निवासियों को गिरफ्तार कर लिया. इस होस्टल से पुलिस को मादक पदार्थ मिली थीं. इस होस्टल में कुछ गैर सामाजिक तत्वों मादक का कारोबार करते थे. बड़ी मुश्किल से वह पुलिस के चंगुल से छूट पाया.
वह एक बार फिर बेघर हो गया था. वह अपने लिए किसी छत की खोज कर रहा था कि अचानक उसकी मुलाकात एक दोस्त से हो गई. वह दोस्त काफी दिनों के बाद मिला था. इस दोस्त का इस शहर में छोटा सा व्यवसाय था . उसने अपना समस्या उसके सामने रखा तो उसने बड़े प्रेम से उसे पेशकश की कि जब तक तुम्हारा कोई व्यवस्था नहीं हो जाता तुम मेरे घर में रह सकते हो. प्रबंधन होने के बाद चले जाना. उसे उस समय अपना वह मित्र एक स्वर्गदूत पता चला. वह अपने दोस्त के घर रहने लगा साथ ही साथ अपने लिए कोई कमरा ढूंढने लगा.
शहर में किराए से मकान मिलना मुश्किल था. मकान खरीदने की उसकी बूते नहीं थी. जो मकान मिलते थे उनका किराया उसकी आधी वेतन से अधिक था पर डपाज़ट की प्रभाव राशि की शर्त. कुछ दिनों बाद थक हार कर उसने सोचा उसे ऐसे क्षेत्रों में मकान खोज करना चाहिए जहां कमरों के दाम कम हूं भले ही वह क्षेत्र के स्वभाव और गुणवत्ता नहीं. उसे इससे क्या लेना देना है. उसे केवल रात में एक छत चाहिए. दिन भर तो वह ऑफिस में रहेगा.
उसे एक एस्टेट एजेंट ने मगन भाई से मिलाया. मगन भाई ने बताया कि बस्ती में उनकी चाल में एक कमरा खाली है वह पच्चीस हजार रुपये डपाज़ट पर देंगे.
"ठीक है मगन भाई मैं डपाज़ट की व्यवस्था कर आप से मिलता हूँ." कहकर वह चला आया और पैसों के प्रबंधन में लग गया. इतने पैसों का प्रबंध बहुत मुश्किल था. अपने शहर जाकर उसने दोस्तों और रिश्तेदारों से ऋण लिया और घर के गहने एक बैंक में ग्रहण रखकर ऋण लिया और पैसों का इंतजाम करके वापस आया. मगन भाई ने कमरा दिखाया उसने कमरा पसंद करके पैसे मगन भाई को दिए और रहने लगा.
शाम को जब वह जरूरी सामान से लदा अपने घर आया तो अपने घर के निकट पहुंचने पर उसके कदम ज़मीन में गुड़ गए. गली में चारों ओर पुलिस फैली हुई थी.
"क्या बात है भाई! यह गली में पुलिस क्यों आया है?" उसने एक आदमी से पूछा.
"होगा क्या? दारू के अड्डे पर झगड़ा हुआ उसमें चाकू चल गए और एक आदमी टपक गया." यह कहता हुआ वह आदमी आगे बढ गया.
"तो इस जगह शराब का अड्डा भी है?" सोचता हुआ वह अपने घर की तरफ बढ़ा और सामान पैरों के पास रख कर दरवाज़ा खोलने लगा. सामान घर में रख कर वह मामले की जानकारी जानने के लिए बाहर आया तो तब तक पुलिस जा चुकी थी और लाश भी ाठवाई जा चुकी थी. आसपास के लोग जमा होकर इस घटना के बारे में बातें कर रहे थे.
"अभी तो पुलिस ने अड्डा बंद कर दिया है. कल फिर शुरू हो जाएगा."
"यह अड्डा है कहाँ?" उसने पूछा तो वे उसे सिर से पैर तक देखने लगे.
"बाबू किस दुनिया में हो तुम जिस चाल में रहते हो इसी में तो दारू का अड्डा है."
"मेरी चाल में शराब का अड्डा?" उसने आश्चर्य से यही बात दोहराई.
"हां! न केवल शराब गृह बल्कि एक जुए का अड्डा भी है. एक कमरे में मादक बिक्री होती है और अन्य दो कमरों में धंधा करने वालिआं रहती हैं." यह सुनते ही उसकी आंखों के सामने तारे नाचने लगे. उसकी चाल में शराब, जुए और ड्रग अड्डे हैं यहां ्वायफें भी रहती हैं और अब वह उसी चाल में रह रहा है. उस दिन तो उसे केवल यह पता चला कि वह कैसी जगह रहने आया है परंतु दो चार दिनों के बाद उसे यह पता चला कि वहां रहना कितना बड़ा प्रकोप  है. लोग बे धड़क घर में घुस आते थे और तरह तरह की फरतिशें करते थे.
"एक बोतल चाहिए."
"ज़रा एक अफीम की गोली देना."
"एक आतंक  की पौड़ी देना."
"यमुना बाई को बुलाना, आज उसका फुल नाइट का रेट देगा." वह यह सब सुनकर अपना सिर पकड़ लेता और उस व्यक्ति को पकड़ कर बाहर कर देता और उसे बताता कि उसे उसकी आवश्यक वस्तु कहां मिल सकती है. इस बीच उसे पता चल गया था कि कहां कौन सा धंधा चलता है और धंधे का मालिक कौन है. दरवाज़ा खुला छोड़ना एक सिर दर्द था इसलिए उसने दरवाजे को हमेशा बंद रखने में ही खैरियत समझी. परंतु दरवाजा बंद रखना तो और भी सिर दर्द था. दरवाज़ा ज़ोर ज़ोर से पीटा जाता. जैसे अभी तोड़ दिया जाएगा. वह झल्ला कर दरवाजा खोलता तो वही प्रशन   सामने होते थे जो दरवाजा खुला होने पर ाजनब्यूं द्वारा घर में घुसकर पूछे जाते थे. वह सोचता वह अकेला है केवल रात को ीहास सोने के लिए आता है तो उसका यह हाल है. इसके बजाय वह या कोई भी शरीफ़ आदमी अपने परिवार के साथ तो एक क्षण भी नहीं रह सकता है.
यहां उसका रहना कठिन है तो भला वह अपने परिवार यहाँ लाने के बारे में कैसे सोच सकता है. हर दिन एक नई कहानी, एक नया हंगामा और एक नया घटना सामने आता था. शराबी जवारी आपस में लड़ पड़ते और यह तो एक आम सी बात थी.
एक ग्राहक यमुना बाई के घर में जाने की बजाय सामने वाले रघुवीर के घर में घुस गया और उसकी पत्नी से छेड़छाड़ करने लगा. पुलिस छापा मारने आई तो शराब का अड्डा चलाने वालों ने शराब के दो कैन वापस रहने वाले गनपत के घर में छुपा दिए पुलिस ने वह कारोबार ढूंढ निकाले. अड्डा चलाने वाले तो भाग गए परंतु बेचारा गनपत इस अपराध में पकड़ा गया.
सामने की शियामलह बाई यमुना बाई के कमरे के पास खड़ी थी पुलिस ने यमुना बाई के अड्डे पर रेड और देह के अपराध में शियामलह को पकड़ कर ले गई. वह बड़ी मुश्किल से छूट पाई.
मादक का धंधा करने वाले सईद के घर में मादक फेंक गए और पुलिस सईद के घर से ड्रग्स बरामद कर उसे उठा ले गई. ये सारे घटनाक्रम देख कर उसका दिल आतंक  के मारे दहल जाता था. वह सोचता कि हो सकता है यह घटना कल उसके साथ भी हो. गुंडे उसके कमरे में मादक फेंक जाएं या शराब रख जाएं और पुलिस उसके घर से वह चीजें बरामद कर उसे भी इसी तरह पकड़ कर ले जाए. यमुना बाई उसके कमरे के सामने खड़ी हो कर किसी ग्राहक से मोल तोल कर रही होगी और पुलिस यमुना को तो धर लेगी और उसे भी इस अपराध में गिरफ्तार कर ले जाएगा. कि वह उस जगह देह का धंधा करवाता है.
यहाँ इस छत के नीचे रहने से तो बेहतर है बेघर आसमान की खुली छत के नीचे रहा है. वहां रहते हुए मन में केवल पीड़ा  का एहसास होगा कि वह घर है परंतु छत के नीचे रहकर क्षण क्षण आतंक का बंदी  होकर तो नहीं जिए है. इन सब बातों से घबरा कर उसने एक फैसला कर लिया कि उसे यह घर छोड़ देना चाहिए. जब तक कोई दूसरा इंतजाम नहीं हो जाता भले इसे घर रहना पड़ेगा परंतु इस आतंक  और प्रकोप  से तो बचा रहेगा. वह मगन भाई के पास गया और उससे साफ कह दिया. "मेरा डपाज़ट वापस कर दीजिए. मुझे आपका कमरा नहीं चाहिए."
"अरे कैसे वापस करेगा. हमारा ग्यारह महीने का ाीगरीमेनट है इसलिए तुम ग्यारह महीने से पहले वह कमरा खाली नहीं कर सकता."
"तुम ग्यारह महीने की बात करते हो. मैं इस जगह एक पल भी नहीं रह सकता. अपनी पूरी चाल शराब, जुए, मादक और वेश्‍याओं के अड्डे चलाने वालों को किराए पर दी है और इस जगह मुझसे सज्जन को भी धोखे से किराए पर रखा. तुम्हें ऐसा ज़लील काम करते हुए शर्म आनी चाहिए. मेरे बजाय किसी शराब, जुए, मादक और देह का धंधा करने वाले को किराए पर दे देते. "
"अरे भाई! उन लोगों को मैंने कमरे किराए से कहां दिए हैं. मैंने वहां चाल बनाई थी और इस लालच में कमरे नहीं दिए थे कि मुझे ज्यादा डपाज़ट और किराया मिलेगा. वह गुंडे बदमाश लोग तालह तोड़ कर उन कमरों में घुसआए हैं और अपने काले धंधे करने लगे. मैंने एक सज्जन को एक कमरा किराए से दिया था जो कुछ दिनों पहले वहाँ के वातावरण से डर कर भाग गया. उस कमरे पर भी गुंडे कब्जा न कर लें इसलिए वह कमरा तुम्हें किराए पर दे दिया. अब तुम उसे खाली करने की बात करते हो. अरे बाबा जाओ वह कमरा मैंने तुम्हें दे दिया. हमेशा के लिए दे दिया. मुझे किराया भी मत दो. तुम वह कमरा छोड़ दोगे और मैं तुम्हें डपाज़ट वापस कर दूंगा तो उस कमरे पर कोई गुंडा कब्जा कर लेगा. मगन भाई की बात सुनकर उसका गुस्सा ठंडा हुआ. उसे लगा मगन भाई तो अधिक मज़लूम है. "मगन भाई!गुंडो ने तुम्हारी पूरी चाल पर कब्जा कर लिया और तुमने पुलिस में शिकायत भी नहीं की? "
"शिकायत करके क्या मुझे अपने जीवन गुणवान है. वह सब गुंडे लोग हैं उनके मुंह कौन लगेगा. पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती. पुलिस उनसे मिली हुई है. शिकायत पर थोड़ी देर के लिए उन्हें अंदर करेगी वहफिर स्वतंत्र होकर मेरी जान के दुश्मन बन जायेंगे. इसलिए मैंने यह सोच लिया कि वह मेरी चाल है ही नहीं. यह समझ लिया कि मुझे व्यापार में घाटा हो गया. देखो अगर तुम वहां रहना नहीं चाहते तो किसी से भी डपाज़ट की राशि डपाज़ट के रूप में लेकर वह कमरा उसे दे दो. मुझे कोई आपत्ति नहीं होगा. मैं उसे भी बना किराए का करार पत्र बनाकर दे दूंगा. "मगन भाई की बातें सुनकर वह चुपचाप वापस आ गया.
उस रात उसे रात भर नींद नहीं आई. उसके सामने एक ही प्रशन   था. वह वहां रहे या चला जाए? फिलहाल तो ऐसी स्थिति थी. वह उस जगह से कहीं जा नहीं सकता था. वहां रहना एक प्रकोप  था. परंतु इतना भी बज़दल डरिपोक नहीं था कि इस प्रकोप  से डर कर भाग की राह ले ले. हर प्रकार की स्थिति का सामना करने के लिए उसने स्‍वंय  को तैयार कर लिया था. उसे केवल रात में ही तो मानसिक करबों को झेलना पड़ता था. दिन में तो वह ऑफिस में रहता था. दिन में वहां क्या होता है या जो कुछ होता था उन सबबातों के सामने वह नहीं होता था. परंतु रात घर आने पर दिन में जो कुछ होता था वह सारी कहानी उसे मालूम पड़ जाती थी.
दो शराब्यूं ने ऊषा को छेड़ा, एक गुंडे ने अशोक की पत्नी लक्ष्मी की इज्जत लूटने की कोशिश की. गुंडो में जमकर मारपीट हुई तो कई घायल हुए और पूरा कमरा ध्वस्त हो गया. आज गुंडो के टकराव में पिस्तौल चल पड़ी, गोली कोई गुंडा तो घायल नहीं हुआ परंतु सामने रहने वाले लक्ष्मण के दस वर्षीय लड़के को गोली लग गई उसे अस्पताल ले जाया गया अब उसकी हालत बहुत नाजुक है.
जो लोग उसे यह कहानियां सुनाते वह उन पर बरस पड़ता था. "कब तक तुम लोग यह सब सहन करते रहोगे. तुम लोग शरीफ हो. यह मुहल्ला शरीफों का है और गुंडो ने इस मुहल्ले पर कब्जा कर उसे शरीफों के रहने के योग्य नहीं रखा. अगर तुम चुप रहे और चुपचाप सब सहन करते रहे तो तुम लोगों के साथ भी यही होगा और हमेशा होता रहेगा. अगर इससे मुक्ति  हासिल करनी हो तो उसके विरोध करो. गुण्डों बदमाशों के विरूध  एकजुट हो जाओ और जो कुछ यहां हो रहा है उसके विरुद्ध पुलिस में शिकायत करो. तुम्हारी शिकायत पर पुलिस को कार्रवाई करनी ही पड़ेगी और यह सब कुछ रुक जाएगा. "
"निश्चित भाई! हम यह नहीं कर सकते." उसकी बातें सुनकर वह सहम गए. "यदि हमने ऐसा किया तो संभव है पुलिस कार्रवाई करे. परंतु वह अधिक दिनों तक गुण्डों को लॉक अप में नहीं रख सकेगी. शिकायत करने पर वे हमारे दुश्मन हो जाएंगे. और स्वतंत्र होते ही हमसे बदला जरूर लेंगे. इसलिए हम सोचते हैं गुण्डों से क्या उलझा जाए. जो कुछ हो रहा है चुपचाप सहन करने में ही खैरियत है. "
"यही तो आप लोगों की कमजोरी है. विरोध की हिम्मत और साहस नहीं है जिससे गुंडो का साहस बढ़ती जाती है. विरोध नहीं कर सकते, सब कुछ ग़लत बात सहन  कर सकते हैं?" वह गुस्से से बोला. "यदि मेरे साथ दिन भी ऐसा कुछ हुआ तो मैं बिल्कुल सहन  नहीं करूंगा. जो मेरे साथ ऐसी वैसी हरकत करेगा उसे मजा चखा दूंगा. "दूसरे दिन वह शाम को ऑफिस से आया तो उसे चार पांच आदमियों ने घेर लिया. उनकी स्थिति और रूप ही ज़ाहिर कर रही थी कि गुंडे हैं.
"ऐ बाबू! क्यों बहुत नेता बनने की कोशिश कर रहा है? हम लोगों के विरूध  बस्ती वालों को भड़का रहा है. तो नया नया है इसलिए तुझे हमारी ताकत का अंदाज़ा नहीं है. ये लोग पुराने हैं इसलिए इन लोगों को हमारी ताक़त पता है. इसलिए यह कभी हमसे नहीं ालझें हैं. अगर यहां रहना है तो खैरियत इसी में है कि तुम भी पुराने बन जाओ. हमारी ताकत जान जाओ और हमसे मत उलझ. जैसा चल रहा है चलने दो, जो कुछ हो रहा वह होने दो. "एक गुंडा उसे घूर हुआ बोला.
"दादा! यह बातों से नहीं माने हैं. एक दो हड्डी पसली टूटे तो सारी नेता भूल जाएगा. उसे अब मजा चखा है." एक गुंडे ने यह कहते हुए अपनी हॉकी ास्टिक हवा में लहराई.
"नहीं आज के लिए इतनी चेतावनी काफ़ी है." इस गुंडे ने हाकी को रोक दिया. "इसके बाद उसने होशियारी की तो मेरी ओर से और दो चार हड्डियां तोड़ देना." यह कहता हुआ वह सब को लेकर चल दिया.
वह सन्नाटे में आ गया. उसका सारा शरीर पसीने में सराबोर हो गया. उसे ऐसा लग रहा था जैसे कई हाकी ास्टिक उसके शरीर से टकराई हैं. और उसका शरीर दर्द का फोड़ा बना हुआ है. उसे रात भर नींद नहीं आई. आंखों के सामने गुंडो के चेहरे घूमते और कानों में उनकी चेतावनी गूंजती रही. यदि आज वह गुंडे हाथ ाठादीते तो वह कैसे उनसे अपना बचाव कर पाता?
उसके मन में एक ही बात चकरा रही थी. जो आज टल गया वह कल भी हो सकता है. इससे बचने का एक ही तरीका है. चुपचाप आंखे बंद करके वह यहां रहे और जो कुछ हो रहा है उससे ला संबंध बन जाए तो उसे कभी कोई खतरा नहीं होगा. परंतु वहां रहना भी किसी नरक में रहने से कम नहीं था.
आए दिन गुंडो के झगड़े, फसाद, शराबी, नशा बल्लेबाज, जवारी और बदुकार लोगों का धड़क घर में घुस आना या अभद्र व्यवहार दरवाजा पीटना, पुलिस के रेड अलर्ट, रेट में गुंडे बदमाशों का तो निकल भागनाऔर  शरीफों का पकड़ा जाना. बात बात पर चाकू छरयों का चलना, आस पास रहने वालों की पत्नियों, माउं, बहनों से गुण्डों और वहां आने वालों की बदतमीज़याँ.
वह सोचने लगा कि किसी को यह कमरा डपाज़ट पर देकर उससे अपनी राशि लेकर इस नरक से निकल जाए. परंतु फिर सोचता कि वह अकेला इस नरक में रह सकता है, परंतु कोई शरीफ़ बाल बच्चे और परिवार वाले व्यक्ति को इस नरक में डालना क्या उचित है? उसका ज़मीर इस बात के लिए राजी नहीं हो पाता था और उसे इस नरक में रहने के लिए स्‍वंय  से समझौता करना पड़ा.
 
...
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
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Hindi Short Story Sherni By M.Mubin


कहानी     शेरनी   लेखक  एम मुबीन   


ख वह घर से निकली तो नौ बज रहे थे. तेज लोकल ट्रेन तो मिलने से रही, धीमी लोकल से ही जाना पड़ेगा. वह भी समय पर मिल गई तो ठीक. वरना यह तय है कि आज फिर वह देरी से ऑफिस पहुँचेगी. और लेट कार्यालय आने का मतलब? इस विचार से ही उसके माथे पर बल पड गए और भवें तन गईं. आँखों के सामने बॉस का चेहरा घूम गया. और कानों में उसकी गरजदार आवाज सुनाई दी.
"श्रीमती महातरे! आप आज फिर लेट आई हैं. मेरे बार बार ताकीद करने पर भी रोजाना लेट आती हैं. आपकी इस डुट्टाई पर मुझे गुस्सा आता है. आपको शर्म आनी चाहिए. बार बार ताकीद करने पर भी आप वही हरकत करती हैं . आज के बाद मैं आफ साथ कोई रियायत नहीं करूंगा.
कोई उससे तेजी से टकराया और उसके विचारों का क्रम टूट गया था. वह सड़क पर थी. भीड़ और यातायात भरी सडक उसे पार करनी थी. इसलिए होश में रहना बहुत जरूरी था. गायब मस्तिष्‍क रहते हुए सड़क पार करने की कोशिश में कोई भी हादसा हो सकता था. जो उससे टकराया वह तो कहीं दूर चला गया था परंतु इसके टकराने से उस पर गुस्सा नहीं आया था.
अच्छा हुआ वह उससे टकरा गई. उसके विचारों का सिलसिला तो टूट गया और वह होश की दुनिया में वापस आ गई. वरना तनाव में अपने इन्हीं विचारों में खोई रहती और बेख़याली में सड़क पार करने की कोशिश में किसी दुर्घटना का शिकार हो जाती. उसने चारों ओर चौकन्ना होकर देखा. सड़क के दोनों ओर गाडयाँ इतनी दूर थी कि वह आसानी से सडक पार कर सकती थी.
सिग्नल तक रुकने का अर्थ था स्वयं को दो चार मिनट लेट करना. विचार आते ही उसने सडक पार करने का फैसला कर लिया और दौडती हुई सडक की दूसरी ओर पहुँच गई. दोनों तरफ से आने वाली गाडयाँ उसके काफी समीप हो गई थीं. ज़रा सी देरी या सस्ती किसी दुर्घटना का कारण बन सकती थी. परंतु उसने अपने आप को पूरी तरह इसके लिए तैयार कर लिया था. कोई दुर्घटना हो इस बात का पूरा ध्यान रखा था. सड़क पार कर वह तंग सी गली में प्रवेश किया. जिसको पार करने के बाद रेलवे स्टेशन की सीमा आरम्भ होती थी. गली में कदम रखते ही उसके हृदय की धडकनें तेज हो गईं. साँसें फूलने लगीं और माथे पर पसीने की बूँदें उभर आईं. उसने हाथ में पकड़े रूमाल से माथे पर आई पसीने की बूँदें साफ कीं और फूली हुई साँसों पर नियंत्रण पाने की कोशिश करने लगी. परन्तु उसे पता था न फूली हुई साँसों पर नियन्त्रण पा सकेगी ना दिल की धड़कने की गति सामान्य कर सकेगी.
मस्तिष्क में खोटा का विचार जो आ गया था. उसे पूरा विश्वास था. गली के बीच उस पान की दुकान के पास वह कुर्सी लगाकर बैठा होगा. उसे आता देख भद्दे अंदाज में वाक्य मुस्कुराए है और उस पर कोई गंदा वाक्यांश किसे है. खोटा की यह दिनचर्या थी. सुबह शाम वह उसी जगह उसकी राह देखता था. उसे पता था सवेरे वह कब ऑफिस  जाती है और शाम को ऑफिस  से घर लौटती है. उसके आने जाने का रास्ता वही है. रेलवे स्टेशन जाने और रेलवे स्टेशन से घर जाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है. एक है भी तो वह इतना लम्बा रास्ता है कि उस रास्ते से जाने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है. इसलिए खोटा उसी रास्ते पर बैठा उसकी राह देखता रहता है और उसे देखते ही कोई भद्दा सा वाक्य हवा में उछाला था.
"हाय डारलनग! बहुत अच्छी लग रही हो. यह कार्यालय, नौकरी वोकरी छोड़ो. मुझे खुश कर दिया करो. हर महीने इतने पैसे दिया करूँगा जो नौकरी से चार महिनों में भी नहीं मिलते होंगे. आओ आज किसी होटल में चलते हैं. चलती आज शेरेटन होटल में पहले ही से अपना एक कमरा बुक है. नौकरी करते हुए जन्दगी भर शेरेटन होटल का दरवाजा भी नहीं देख पाओगी. आज हमारे साथ उसमें दिन गुजार कर देख लो. "
खोटा के हर वाक्य के साथ उसे अनुभव होता एक भाला आकर उसके मन में चुभ गया है. हृदय की धडकनें तेज हो जाती थीं और आँखों के सामने अंधेरा छाने लगता था. तेज चलने की कोशिश में कदम लड़खड़ाने लगते थे.परंतु वह जान तोड़ कोशिश कर के तेज क़दमों से खोटा की नज़रों से दूर हो जाने की कोशिश करती थी.
खोटा उस क्षेत्र का माना हुआ गुण्डा था. उससे क्षेत्र का बच्चा बच्चा उससे परिचित था. शराब, जुए, वेश्याओं के अड्डे चलाना, सप्ताह वसूली, सुपारी वसूली, अपहरण, हत्या और मारपीट आदि. लिए कि ऐसा कोई काम नहीं था जो वह नहीं करता था या इस तरह के मामलों में शामिल नहीं था. वह जो चाहता था कर जाता था कभी पुलिस की पकड़ में नहीं आता था. अगर किसी मामले में फँस भी गया तो उसके प्रभाव के कारण पुलिस को उसे दोदिनों में ही छोडना पडता था.
उस खोटा का दिल उस पर आ गया था. उसे माया महातरे पर एक छोटे से निजी कार्यालय में काम करने वाली एक बच्चे की माँ पर पहले तो खोटा उसे सिर्फ घूरा करता था. फिर जब उसके आने जाने का समय और रास्ता मालूम हो गया तो वह प्रतिदिन उसे उस रास्ते पर मिलने लगा.
रोज उसे देखकर मुस्कराता और उस पर गंदे वाक्यांश की बारिश करने लगता. खोटा की हरकतों से वह आतंकित सी हो गई थी. उसे यह अनुमान तो हो गया था खोटा के मन में क्या है. और उसे पूरा विश्वास था कि उसके मन में है खोटा उसे एक दिन पूरा करके ही रहेगा. इस कल्पना से ही वह काँप उठती थी. यदि खोटा ने अपने मन की मुराद पूरी कर डाली, या पूरी करने की कोशिश की तो? इस कल्पना से ही उसकी जान निकल जाती थी.
"नहीं! नहीं! ऐसा नहीं हो सकता. यदि खोटा ने मेरे साथ ऐसा कुछ किया तो मैं किसी को मुँह दिखाने के योग्य नहीं रहूँगी. में जीवित नहीं रह पैर है." उसे यह पता था कि वह इतनी सुन्दर है कि खोटा जैसे लोग उसे देखकर बहक सकते हैं. दूसरे हजार लोग उसे देखकर ऐसा कोई विचार अपने मन में लाते तो उसे कोई परवाह नहीं थी क्योंकि उसे विश्वास था कि वह कभी इस विचार को पूरा करने का साहस नहीं कर पाएंगे.
परन्तु खोटा? हे भगवान! जो सोच ले दुनिया की कोई भी शक्ति उसे अपने सोचे हुए काम को रोकने की कोशिश नहीं कर सकती थी. वह आते जाते खोटा की कल्पना से आतंकित रहती थी. और उस दिन तो खोटा ने सीमा कर दी. ना केवल उसका रास्ता रोक कर खड़ा हो गया था बल्कि उसकी कलाई भी पकड ली.
"बहुत ाकड़ती हो. अपने आप को क्या समझती हो. तुम्हें पता नहीं तुम्हारा पाला खोटा से पड़ा है. ऐसी अकड निकालूँगा कि जन्दगी भर याद रखो है. सारी अकड़ निकल जाएगी."
"छोड़ दो मुझे." उसकी आँखों में भय से आँसू आ गए. और वह खोटा के हाथों से अपनी कलाई छुडाने का प्रयत्न करने लगी. परन्तु वह किसी शेर के चंगुल में फँसी हिरनी सी स्वयं को अनुभव कर रही थी. खोटा भयानकअंदाज में हँस रहा था और वह उसके हाथों से अपनी कलाई छुडाने का प्रयत्न करती रही. इस दृश्य को देखकर एक दो रास्ता चलने वाले रुक गए. परन्तु खोटा पर नजर पडते ही वे तेजी से आगे बढ़ गए. दानवी हँसी हँसता हुआखोटा, उसकी विवशता से आनन्दित हो रहा था. फिर हँसते हुए उसने धीरे से उसका हाथ छोड़ दिया. वह रोती हुई आगे बढ गई. खोटा का दानवी अट्टाहास उसका पीछा करता रहा. वह रोती हुई स्टेशन आई और लोकल ट्रेन में बैठ सिसकती रही. उसे रोता देखकर आसपास के यात्री उसे आश्चर्य से देख रहे थे.
ऑफिस पहुँचने तक रो रोकर उसकी आँखें सूज गई थीं. उसमें आया परिवर्तन ऑफिस वालों से छिप ना सका. उसे ऑफिस की सहेलियों ने घेर लिया.
"क्या बात है माया, यह तुम्हारा चेहरा क्यों सूजा हुआ है आँखें क्यों लाल हैं?" उसने कोई उत्‍तर  नहीं दिया और उनसे लिपटकर दहाडे मार मार कर रोने लगी. वह सब भी घबरा गई और उसे सांत्वना देते हुए चुप कराने की कोशिश करने लगीं. बड़ी मुश्किल से उसके आँसू रुके और उसने पूरी कहानी उन्हें सुना दी. इससे पहले भी वह कई बार उन्हें खोटा की हरकतों के बारे में बता चुकी थी परंतु उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया था.
"नौकरी करने वाली स्त्रियों के साथ तो यह सब होता ही रहता है. मेरा स्वयं का एक प्रेमी है जो अंधेरी से चर्नी रोड तक मेरा पीछा करता है."
"मेरे भी एक आशिक साहब हैं. सवेरे शाम मेरे मोहल्ले के नुक्कड पर मेरा इंतजार करते रहते हैं."
"और मेरे आशिक साहब तो ऑफिस के गिर्द मंडराते रहते हैं. आओ बताती हूँ सडक पर खडे कार्यालय की ओर टकटकी लगाए देख रहे होंगे."
"अगर खोटा तुम पर आशिक हो गया है तो यह कोई चिन्ता की बात नहीं है. तुम कुछ ही ऐसी हो कि तुम्हारे तो सौ दो सौ प्रेमी हो सकते हैं." उनकी बातें सुनकर वह झुंझला जाती.
"तुम लोगों को मजाक सूझा है और मेरी जान पर बनी है. खोटा एक गुण्डा है, बदमाश है. वह ऐसा सब कुछ कर सकता है जिसकी कल्पना भी तुम्हारे प्रेमी लोग नहीं कर सकते. परन्तु उस दिन की खोटा की यह हरकत सुनकर सब सन्नाटे में आ गई थीं.
"क्या तुमने इस बारे में अपने पति को बताया?"
"नहीं आज तक कुछ नहीं बताया. सोचती थी कोई हंगामा ना खडा हो जाए."
"तो अब पहली फुरसत में उसे सब कुछ बता दो.."
उस शाम वह सामान्य रास्ते से नहीं लंबे रास्ते से घर गई. और विनोद को सब कुछ बता दिया कि खोटा इतने दिनों से उसके साथ क्या कर रहा था और आज उसने क्या हरकत की. उसकी बातें सुनकर विनोद का चेहरा तनगया.
"ठीक है! फिलहाल तो तुम एक दो दिन ऑफिस  मत जाओ. उसके बाद सोचेंगे क्या करना है. उसके बाद वह तीन दिन ऑफिस  नहीं गई. एक दिन वह बालकनी में खडी थी. अचानक उसकी नजर नीचे गई और उसका दिल धक से रह गया. खोटा नीचे खडा उसकी बालकनी को घूर रहा था. उससे नजर मिलते ही वह दानवी अंदाज में मुस्कराने लगा. वह तेजी से भीतर आ गई.
रात विनोद घर आया तो उसने आज की घटना बताई. इस घटना को सुन कर उसने अपने हूंठ भींच लिए. दूसरे दिन ऑफिस  जाना बहुत जरूरी था. इतने दिनों तक वह सूचना दिए बिना ऑफिस से गायब नहीं रह सकती थी.
"आज मैं तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने आऊँगा." विनोद ने कहा तो उसकी हिम्मत बँधी. विनोद उसे स्टेशन तक छोड़ने आया. जब वह गली से गुजरे तो पान स्टाल के पास खोटा मौजूद था.
"क्यों जानेमन! आज बॉडीगार्ड साथ लाई हो. तुम्हें अच्छी तरह मालूम है कि इस तरह के सौ बॉडीगार्ड मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते." पीछे से आवाज आई तो उस आवाज को सुनकर जोश में विनोद मड़ा परंतु उसने उसे थामलिया.
"नहीं विनोद, यह गुण्डों से उलझने का समय नहीं है." और वह विनोद को लगभग खींचती स्टेशन की ओर बढ गई. फिर शाम वापसी के लिए उसने लम्बा रास्ता अपनाया. परन्तु उसकी कॉलोनी के गेट के पास पहुँचते ही उसका मन धक से रह गया.
खोटा गेट पर उसकी राह था.
"मुझे अनुमान था कि तुम वापस उस रास्ते से नहीं आओ है. इसलिए तुम्हारी कॉलोनी के गेट पर तुम्हें सलाम करने आया हूं. काश तुम मुझसे फरार हासिल कर सको." यह कहते हुए खोटा उसे सलाम करता आगे बढ गया. रात विनोद को उसने सारी कहानी सुनाई, तो विनोद बोला. "कल यदि खोटा ने तुम्हें छेडा तो हम उसके विरुद्ध पुलिस में शिकायत करेंगे."
दूसरे दिन विनोद उसे छोडने के लिए आया तो खोटा से फिर आमना सामना हो गया. खोटी की गंदी बातें विनोद सहन नहीं कर सका और उससे उलझ गया. विनोद ने एक मुक्का खोटा को मारा. उत्तर में खोटा ने विनोद के मुँह पर ऐसा वार कि उसके मुंह से खून बहने लगा.
"बाबू! खोटा से अच्छे अच्छे तीसमारखाँ नहीं जीत सके तो तुम्हारी हैसियत ही क्या है?" घायल विनोद ने ऑफिस  जाने के बजाय पुलिस स्टेशन जाकर खोटा के विरुद्ध शिकायत करना जरूरी समझा. थाना प्रमुख ने सारी बातें सुनकर कहा. " ठीक है हम आपकी शिकायत लिख लेते हैं. परन्तु हम खोटा के विरुद्ध ना तो कोई सख्त कार्यवाही कर पाएँगे और ना कोई मजबूत केस बना पाएँगे. क्योंकि कुछ घंटों में खोटा छूट जाएगा और सम्भव है छूटने के बाद खोटा तुम से इस बात का बदला भी ले. वैसे आप डरेये नहीं हम खोटा को उसके किए की सजा जरूर देंगे. "
पुलिस स्टेशन से भी उन्हें निराशा ही मिली. उस दिन दोनों ऑफिस  नहीं गए. तनाव में बिना एक दूसरे से बात किए घर में ही टहलते रहे. शाम को उसने पुलिस स्टेशन फोन लगाकर अपनी शिकायत पर की जाने वाली कार्यवाही के बारे में पूछा .
"श्री विनोद!" थाना प्रभारी ने कहा. आपकी शिकायत पर हमने खोटा को स्टेशन बुलाकर ताकीद की है. यदि उसने दोबारा आपकी पत्नी को छेडा, आपसे उलझने की कोशिश की तो उसे अन्दर डाल देंगे. अन्य दिन दोनों साथ ऑफिस जाने के लिए रवाना हुए. निर्धारित स्थान पर फिर खोटा से सामना हो गया.
"वाह बाबू वाह! तेरी तो बहुत पहुँच है. खोटा से भी ज्यादा तेरी एक शिकायत पर पुलिस ने खोटा को बुलाकर ताकीद की और सिर्फ ताकीद की है ना? अब की बात खोटा ऐसा कुछ करेगा कि पुलिस को तुम्हारी शिकायत पर खोटा के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी ही पड़ेगी. "
"खोटा! हम शरीफ लोग हैं हमारी इज्जत हमें अपनी जान से ज्यादा प्यारी है और उस इज्जत की रक्षा के लिए हम अपनी जान भी दे सकते हैं और किसी की जान ले भी सकते हैं. इसीलिए भलाई इसी में है कि हम शरीफ लोगों को परेशान मत करो. तुम्हारे लिए और भी हजारों औरतें दुनिया में हैं. तुम कीमत अदा करके मन चाही औरत को प्राप्त कर सकते हो. फिर क्यों मेरी पत्नी के पीछे पडे हो? "
"मुश्किल यही है बाबू! खोटा का दिल जिस पर आया है वह उसे पैसों के बल पर नहीं मिल सकती. उसकी शक्ति के बल पर ही मिल सकती है."
"कमीने! मेरी पत्नी की ओर आँख भी उठाई तो मैं तेरी जान ले लूँगा." यह कहते हुए विनोद खोटा पर झपटा और उस पर बेतहाशा घूँसे बरसाने लगा. हक्का बक्का खोटा विनोद के वार से स्वयं को बचाने की कोशिश करने लगा . अचानक रास्ता चलते कुछ लोगों ने विनोद को पकड़ लिया, कुछ ने खोटा को. और वह किसी तरह विनोद को ऑफिस  जाने के बजाए घर ले जाने में सफल हो गई. खोटा से विनोद के टकराव ने उसे आतंकित कर दिया था. उसे विश्वास था कि खोटा इस अपमान का बदला जरूर लेगा. और किस तरह लेगा इस कल्पना से ही वह काँप जाती थी. वह विनोद को बहलाती रही.
"खोटा को तुमने ऐसा सबक सिखाया है कि आज के बाद तो ना वह तुमसे उलझेगा ना मेरी ओर आँख उठाने का साहस करेगा. तुमने जो कदम उठाया वह बहुत सही था." यूँ वह विनोद को बहला रही थी परन्तु भीतर ही भीतर काँप रही थी कि खोटा जरूर इसका बदला लेगा. अगर उसने विनोद को कुछ किया तो?
नहीं! नहीं! विनोद को कुछ नहीं होना चाहिए विनोद मेरा जीवन है. यदि उसके शरीर पर एक खराश भी आई तो मैं जन्दा नहीं रहूँगी. उसे ऐसा महसूस हो रहा था उसके कारण यह युद्ध छिडा है. इस युद्ध का अंत दोनों पक्षों का अंत है. इसके अलावा कुछ और निकल भी नहीं सकता. भलाई इसी में है कि दोनों पक्षों के बीच संधि करा दी जाए. ताकि युद्ध की नौबत ही न आए. परन्तु वह संधि किस प्रकार सम्भव थी. खोटा बदले की आग में झुलस रहा होगा और जब तक बदले की यह आग नहीं बुझेगी उसे चैन नहीं आएगा. उसे खोटा एक अजगर अनुभव हो रहा था. जो उसके सामने खडा उसे निगलने के लिए अपनी जीभ बार बार लपलपाता और फनकार रहा था. उस अजगर से उसे अपनी रक्षा करनी थी. दूसरे दिन वह ऑफिस  जाने लगी तो पान पर खोटा का सामना हो गया. वह क्रोध भरी दृष्टि से उसे घूर रहा था. उसने मुस्कराकर देखा और आगे बढ़ गई. उसे मुस्कराता देखकर खोटा आश्चर्य से उसे आँखें फाड़ फाड़ कर देखता रह गया.
एक दिन फिर वह ऑफिस  जाने लगी तो मुस्कराता हुआ खोटा उसका रास्ता रोककर खड़ा हो गया. उसकी आंखों में एक चमक थी.
"मेरा रास्ता छोड़ दो." वह क्रोध भरी दृष्टि से उसे घूर हुई क्रोध से बोली.
"जानम अब तो हमारे तुम्हारे रास्ते एक ही हैं." कहते हुए खोटा ने उसका हाथ पकड़ लिया. उसने एक झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और समीप खडे नारियल पानी बेचने वाले की गाडी से नारियल छिलने की तेज दरांती उठाकर खोटा की ओर खेरनी की तरह लपकी. खोटा के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. अचानक वह सिर पर पैर रखकर भागा. वह उसके पीछे दरांती लिए दौड रही थी.
फूलती हुई साँसों के साथ खोटा अपनी गति बढाता जा रहा था. जब खोटा उसकी पहुँच से बहुत दूर चला गया तो वह खडी होकर अपनी फूली हुई साँसों पर नियंत्रण पाने की कोशिश करने लगी. और फिर दरांती को एक ओर फेंककर ऑफिस  चल दी.
 
...
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

Hindi Short Story Sawali By M.Mubin


कहानी      सवाली   लेखक  एम मुबीन   

इमाम ने सलाम फेरा और उसी समय िकब से उभरने वाली आवाज को सुनकर सभी प्रार्थना पीछे मुड़ कर देखने लगे. एक व्यक्ति खड़ा था.
"बंधुओं! मेरा संबंध बिहार से है. मेरी लड़की के दिल का ऑपरेशन होने वाला है इस संबंध में, मैं यहाँ आया हूँ. ऑपरेशन के लिए लाखों रुपये की आवश्यकता है. आपकी सहायता का कतरा कतरा मिलकर मेरे लिए सागर बन जाएगा . मेरी बेटी की जान बच जाएगी. मेरी बेटी की जान बचाकर सवाब दारीन प्राप्त करें. "व्यक्ति की आवाज़ सुन कर कुछ नमाज़ियों के चेहरों पर नागवार के टिप्पणी उभरे कुछ गीज़ व गज़ब भरी नज़रों से उसे देखने लगे. कुछ बड़बड़ाने लगे .
"लोगों ने धंधा बना लिया है. परमेश्वर के घर में बैठ कर भी झूठ बोलते हैं."
"भगवान के घर, नमाज़ का भी कोई सम्मान नहीं. नमाज़ ख़त्म भी नहीं हुई और हज़रत शुरू हो गए."
"नमाज़ के दौरान इस प्रकार के सूचना पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए." बातों का सिलसिला बीच में ही टूटी हो गया. क्योंकि इमाम ने प्रार्थना  के लिए हाथ उठा लिए थे.
पता नहीं क्यों उस व्यक्ति की बात सुन कर उनके दिल में एक हूक सी उठी. उस व्यक्ति के बैठ जाने के बाद भी वह बार बार उसे मुड़ कर देखते रहे. उन्हें उस व्यक्ति का चेहरा बड़ा दीं लगा. ऐसा लगा जैसे यह व्यक्ति सचमुच मदद छात्र है और यह झूठ बोल रहा है. उसे ऐसा सचमुच अपने बेटी की जान बचाने के लिए सहायता चाहिए. प्रार्थना समाप्त हो गई और वह इसी बारे में सोचते रहे. वह मस्जिद से बाहर निकले तो उन्हें व्यक्ति मस्जिद के दरवाज़े के पास एक रूमाल फैलाए बैठा दिखाई दिया. रूमाल में कुछ सिक्के और एक दो एक दो रुपया की नोटें फैली थीं. एक क्षण के लिए वह रुक गए जेब में हाथ डाला और पैसों का अनुमान लगाने लगे और आगे बढ़ गए .
घर आए तो बहू और बेटा एक आदमी के साथ बातें कर रहे थे.
"यदि आप सेल्ङ्ग लगाते हैं?" वह आदमी कह रहा था. "तो मैं आप को बिल्कुल नए शैली की सेल्ङ्ग लगा कर दूंगा. इस तरह की सेल्ङ्ग मैं एक फिल्म स्टार के बेडरूम में लगाई है. एक बड़ी कंपनी के ऑफिस में भी इसी तरह की सेल्ङ्ग है. अगर आप केवल सेल्ङ्ग लगाईं तो पूरे फ्लैट में सेल्ङ्ग लगाने का खर्च पच्चीस हजार रुपये के समीप  आएगा. यदि आप सेल्ङ्ग सिर्फ बेडरूम में लगाना चाहते हैं तो दस हजार रुपये के समीप  खर्च आएगा. "
"पूरे फ्लैट में सेल्ङ्ग लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है. केवल बेड रूम में ही सेल्ङ्ग लगायेंगे." बहू बेटे की ओर सवालिया नज़रों से देख रही थी. अभी पिछले साल ही तो बीस हजार रुपये खर्च कर सेल्ङ्ग लगवाए थी. "इतनी जल्दी सीलिंग बदलने की आवश्यकता नहीं है हाँ बेडरूम में सीलिंग बदलने की सख्त जरूरत है क्योंकि बेडरूम में नया पिन तो होना चाहिए. "
"ठीक है!" बेटा उस आदमी से कहने लगा कि तुम कल ऑफिस आकर पाँच हज़ार रुपये ाडोांस ले लेना और परसों काम शुरू कर देना. काम दो तीन दिन में समाप्त हो जाना चाहिए. "
"साहब दो तीन दिनों में काम समाप्‍त  होना तो मुश्किल है कम से कम आठ दिन तो लगेंगे ही." वह आदमी कहने लगा.
"ठीक है! परंतु कम से कम समय में काम समाप्‍त  करना अगले महीने मैम साहब की बर्थ डे है. उस बर्थ डे पार्टी में अपने और मैम साहब के दोस्तों को सरपुरायज़ गिफ्ट देना चाहता हूँ." बेटा कह रहा था.
"आप चिंता न करें काम समय पर हो जाएगा." वह आदमी उठकर जाने लगा.
"अरे हाँ मुझे अपनी उस बर्थ डे पर कोई कीमती गिफ्ट चाहिए जो कम से कम बीस हजार रुपये का हो और फिर पार्टी पर भी तो दस बारह हजार रुपए खर्च तो होंगे ही. फिर यह सीलिंग का काम. इतने पैसे हैं भी या नहीं? "
"तुम चिंता क्यों करती हो. सारा इंतजाम हो जाएगा." बेटा बोला. अचानक उसकी नजर उन पर पड़ी. "अरे अब्बा जान! आइए. हम लोग आप ही का इंतज़ार कर रहे थे.
"चलिए जल्दी से हाथ मुंह धो लीजिए. नर्गिस ज़रा खाना लगाना."
"अभी लगाती हूँ." कहती हुई बहू उठ गई. खाना लगा गया और वह साथ में खाना खाने लगे. खाना खाते समय भी उनका ध्यान कहीं और ही उलझा हुआ था. बेटा फ्लैट की छत बदलने पर दस बीस हजार रुपये खर्च करने परतैयार है. पत्नी के जन्मदिन पर दस बीस हजार रुपये का उपहार देने के लिए तैयार है जन्मदिन की पार्टी पर दस बारह हजार रुपए खर्च करेगा. ख़ुदा ने उसे आसोदगी प्रदान की है. जिसके लिए मैं जीवन भर तरसता रहा.
मरियम! लगता है हमारे बुरे दिन दूर हो गए हैं तुम्हारी भी सारी दुख कष्ट दूर होने वाली हैं. तुम्हें बहुत जल्द इस मोज़ी रोग से मुक्ति  मिलने वाली है रात को सोने के लिए लेटे भी तो कोई बेटा ही छाया हुआ था.
"बेटे आमिर! ऐसा लगता है तुम मेरे सारे सपनों को पूरा कर दोगे. तुम्हारे बारे में मैंने जो जो सपने देखे थे वह सारे सपने पूरे कर दोगे. ख़ुदा तुम्हें जीवन के हर परीक्षा में सफल करे. और सारी दुनिया की मसरतें , खुशिया आकर तुम्हारी झोली में जमा हो जाएं. उनकी आंखों के सामने पांच छह साल के आमिर की तस्वीर घूम गई. जब वह खेतों में काम कर रहे होते तो आमिर अपने नन्हे नन्हे हाथों में तख्ती थामे दौड़ता हुआ आता था और दूर से उनसे चीखकर कहता था कि अब्बा! आज मास्टर जी ने हमें ए से लेकर सात तक शब्द सखाए हैं. मुझे अब आपके, त सब लिखना आता है देखिए मैंने लिखा है. वह आकर उनसे लिपट जाता था. अपनी तख्ती उनकी ओर बढ़ा देता था. तख्ती पर लिखे नन्हें नन्हें अक्षर पर नज़र पड़ते ही उनका दिल खुशी से झूम उठता था.
"बेटे मेरा दिल कहता है तो मेरा नाम सारी दुनिया में रौशन करेगा. तो एक दिन पढ़ लिखकर बहुत बड़ा आदमी बनेगा." और सचमुच आमिर ने निचली दलों से ही उनका नाम रोशन करना शुरू कर दिया था.
गांव का हर व्यक्ति जानता था कि आमिर पढ़ने लिखने में बहुत सावधान है. हमेशा क्लास में अव्वल आता है. दसवीं परीक्षा में तो पूरे बोर्ड में तीसरा आया था और उसकी इस सफलता से न केवल उनका बल्कि सारे गाँव और गाँव की इस छोटी सी स्कूल का नाम भी उजागर हो गया था और उसके बाद आमिर को उच्च शिक्षा के लिए शहर जाना था. यह तो बहुत पहले ही तय हो चुका था कि वह आमिर को उच्च शिक्षा के लिए शहर भेजेंगे.
मरियम ने अपने कलेजे पर पत्थर रख लिया था और पत्थर रख कर उस ने आमिर को उच्च शिक्षा के लिए शहर रवाना किया था. जिसे वह एक क्षण अपनी आंखों से जुदा नहीं होने देना चाहती थी. आख़िर उसकी एक ही तो औलाद थी. दो तीन बच्चे तो नहीं थे जिनमें से दिल बहला सके. पता नहीं क्यों कुदरत ने उन्हें आमिर के बाद औलाद नहीं दी.
आमिर का प्रवेश एक अच्छे कॉलेज में हुआ. अच्छे नंबरों के कारण यह गृह मुमकिन हो सका था. परंतु कॉलेज की फीस तो अदा करनी ही थी. शुल्क इतनी अधिक थी कि उनकी सारी बचत भी कम पड़ रही थी और मरियम के गहने बेच करने के बाद भी फीस के पैसे जमा नहीं हो रहे थे.
यह तय किया गया कि खेत का एक टुकड़ा बेच दिया जाए. बच्चे के भविष्य और उसकी पढ़ाई से बढ़ कर खेत नहीं है. अंत यह सब तो उसी का है. अगर यह काम नहीं आए तो क्या ोकित. खेत एक टुकड़ा बेचकर आमिर शुल्क अदा कर दी गई और उसकी पढ़ाई के खर्च का इंतजाम भी कर लिया गया. बढ़ती उम्र के साथ उनसे खेतों में काम नहीं होता था. खेत में मजदूर लगवा कर उनसे काम लेते थे. कभी कभी जब वह किसी काम से गाँव से बाहर जाते तो यह काम मरियम को करना पड़ता था. मरियम की पुरानी बीमारी का ज़ोर बढ़ता ही जा रहा था.
रात में जब ठंडी हवाएं चलते तो दमे का ज़ोर कुछ इतना बढ़ जाता था कि उन्हें मरियम को संभालना मुश्किल हो जाता था. मौसम के बदलने से दमा से राहत मिलती तो गुर्दे की पथ्री ज़ोर करती थी और इन्हीं दो बीमारियों की वजह से उन्हें मरियम को बार बार शहर ले जाना पड़ता था. गांव में आने वाले डॉक्टर मरैम की इन बीमारियों का सही रूप से इलाज नहीं कर पाते थे. शहर के एक अच्छे डॉक्टर के इलाज से थोड़ा अ. फ़ाकह हो जाता था. मरियम की दवाओं का खर्च आमिर की पढ़ाई के खर्च के बराबर था. खेत में नई फसल आते ही सबसे पहले दोनों के खर्च के पैसे अलग उठा कर रख देते थे. परंतु न तो आमिर की पढ़ाई के खर्च की कोई सीमा थी और न मरियम की बीमारी के खर्च की . दोनों बार बार अपनी सीमा को पार कर जाते थे और उनका सारा बजट गड़बड़ी जाता था. ऐसे में मरियम त्याग की मूर्ति बन जाती थी. वह लाख तकलीफों को सहन  कर लेती थी और उनसे कहती थी कि मेरी तबीयत ठीक है. डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है. पैसे आमिर को भेज दो. वह पत्नी के समर्पण को समझते थे परंतु इस मामले में पत्नी से बहस नहीं कर पाते थे. क्योंकि बेटे की पढ़ाई सामने सवालिया निशान बनकर खड़ी हो जाती थी और आमिर हर बार अच्छे नंबरों से पास होता था. और उसकी सफलता से वह खुशी से झूम उठते थे. कि आमिर के लिए वह जो इबादत कर रहे हैं. प्रकृति उन्हें उनकी इस पूजा का फल दे रहा है. आखिर वह दिन आपहोनचा जब आमिर ने शिक्षा अच्छे स्तर से पूरी कर ली.
"अब्बा! अब आप को दिन भर धूप आग में खेतों में काम करने की कोई जरूरत नहीं है. अब हमें खेती करने की कोई जरूरत नहीं है. अल्लाह ने चाहा तो मुझे बहुत जल्दी कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी और मुझे इतनी आय होगी कि आय से आसानी से मैं आप लोगों की देखभाल कर सकता. अम्‍मी  का किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज कर सकता ताकि अम्‍मी  की बीमारी जड़ से हमेशा के लिए समाप्‍त  हो जाए.
आमिर की बात सच भी थी. आमिर ने जो शिक्षा प्राप्त की थी शिक्षा की वजह से उसे ऐसी नौकरी तो आसानी से मिल सकती थी कि इसमें इन तीनों का गुज़ारा हो जाए. खेतों में काम न करने के आमिर के निर्णय से भी हुसैन थे अब उनसे भी धूप में खेतों में काम करने वाले मजदूरों की निगरानी का काम नहीं होता था. वह खेत में होते थे. परंतु उनका सारा दिल घर में लगा होता था. मरियम कैसी होगी फिर कहीं दर्द का दौरा तो नहीं पड़ गया? कई बार ऐसा हुआ जब वह खेत से वापस आए तो उन्होंने मरियम कभी पथ्री के दर्द या कभी दमे के दौरे के दर्द से तड़पता हुआ पाया. बस इसी कारण मरियम को छोड़ कर जाने को उनका दिल नहीं चाहता था.
शिक्षा समाप्त करने के बाद आमिर एक दो सप्ताह उनके पास आकर रहा था. फिर नौकरी की खोज में वापस शहर चला गया. एक सप्ताह के अंदर उसका पत्र आया कि उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई है. दो महीने बाद आया तो कहने लगा. पहले से भी अच्छी जगह नौकरी मिल गई है. इसलिए उसने पहली नौकरी छोड़ दी है.
तीन चार महीने के बाद पत्र आया कि उसने एक छोटा सा कमरा ले लिया है. वे चाहें तो आकर उसके साथ रह सकते हैं. आमिर के पास जाकर रहना एक तज़ाद का मामला था. दोनों उसके लिए राज़ी नहीं थे. अपना गाँव, खेत और घर छोड़ कर अजनबी शहर कहां जाएं? वहां न किसी से जान न पहचान. फिर वहाँ के हजारों समस्याओं. आमिर के बहुत जोर देने पर वह कुछ दिन उसके पास रहने आए. परंतु आने के बाद दोनों का यही मानना था कि उसके पास शहर में नहीं रह सकते. उन्हें वहां का वातावरण रास नहीं आया था न उनमें वहाँ समस्याओं का सामना करने की ताब थी. इस बीच में आमिर ने उन्हें लिखा उसने एक लड़की पसंद कर ली है और लड़की के घर वाले इस विवाह  आमिर से करने के लिए तैयार हैं . आप लोग आकर इस मामले को तय कर जाएं. इस बात को पढ़कर वह खुशी से झूम उठे थे. आमिर ने उनके सरका एक बोझ हल्का कर दिया था. उन्हें आमिर के लिए लड़की डखविंडनी नहीं पड़ी थी. उसने स्‍वंय  खोज ली थी. विवाह  ब्याह के बारे में वे इतने दकियानूसी नहीं थे कि आमिर की इस बात का बुरा मान जाएं. उनका विचार था कि आमिर को उस लड़की के साथ जीवन गज़ारनी है. उसने स्‍वंय  लड़की पसंद है तो लड़की अच्छी ही हो है.
एक दिन जाकर नरगस को देख आए और विवाह  की तारीख भी पक्की कर आए. इसके बाद उन्होंने बड़ी धूम से आमिर की विवाह  की. गांव के जो लोग भी उनके साथ आमिर की विवाह  के लिए शहर गए थे उनका भी कहा कि आज तक गांव में इतनी धूम धाम से किसी की विवाह  नहीं हुई.
इस विवाह  में उनकी सारी जमा पूंजी और मरियम के सारे गहने के साथ जमीन का एक टुकड़ा भी बुक गया परंतु फिर भी उन्हें कोई ग़म नहीं था. वह एक कर्तव्य से सबक दोष हो गए थे जैसे उनकी किस्मत में प्रकृति ने आराम लिख दिया था. आमिर हर महीने इतनी रकम भेजता था कि उन्हें खेतों में फसल उग वाने की जरूरत ही महसूस नहीं होती थी और उस रकम में उनका आराम से गुजर बसर हो रहा था.
मामला उस समय गड़बड़ी जाता जब आमिर राशि रवाना नहीं करता और रवॉनह नहीं करने के कारण लिख देता. नर्गिस अस्पताल में थी उसकी बीमारी पर काफी खर्च हो गया. नया फ्लैट बुक गया के पैसे भरने हैं. रंगीन टीवी लिया है उसकी किश्तें चुकानी हैं. फिर मरियम की बीमारियां भी जोर पकड़ने लगीं. कभी कभी उन्हें भी छोटी मोटी बीमारियां आ घीरतें तब उन्हें लगता कि आमिर पर तकिया करना बेवकूफी है. चाहे कुछ भी हो उन्हें आराम करने की बजाय खेतों में काम करना चाहिए. और वह फिर से खेतों की ओर आकर्षित हो गए. इस वजह से उनकी बीमारियां भी बढ़ने लगी और मरियम की. मरियम कभी कभी दर्द के इतने गंभीर दौरे पड़ते थे कि लगता कि अभी उसकी जान निकल जाएगी . डॉक्टर ने भी साफ उत्‍तर  दे दिया था. अब तक दवाओं से दर्द को दबाने की कोशिश के साथ पथ्री समाप्त करने की कोशिश भी करता रहा हूँ. परंतु न तो पथ्री समाप्‍त  हो सकी है और न दर्द और उस समय जो स्थिति हाल है उसके मद्देनजर ऑपरेशन बेहद जरूरी है. वरना किसी दिन दर्द का दौरा जान लेवा साबित होगा.
मरियम के जीवन के लिए ऑपरेशन बेहद जरूरी था और उस पर दस पन्द्रह हज़ार रुपए के खर्च की उम्मीद थी. इतनी राशि उनके पास नहीं थी. डॉक्टर ने जल्द ऑपरेशन करने पर ज़ोर दिया था. इसलिए उन्होंने सोचा सारी स्थिति से आमिर को सूचित कर दिया जाए. वह मरियम के ऑपरेशन की व्यवस्था कर देगा. इसके लिए वह आमिर के पास आए आते ही इधर उधर की बातों के बाद और फिर रात का खाना खाकर सोने के लिए आलेटे. सोचा सवेरे इत्मीनान से बातें करेंगे.
दूसरे दिन नाश्ते की मेज़ पर उन्होंने सारी स्थिति बेटे के सामने रख दी. "अब्बा मैंने आपको बार बार लिखा था कि आप अम्‍मी  के उपचार से कोताही न बरतें उनकी बीमारी बहुत खतरनाक है."
"डॉक्टर कहता है अब ऑपरेशन बेहद जरूरी है." वह बताने लगे. "वरना किसी दिन भी तुम्हारी अम्‍मी  की जान जा सकती है. ऑपरेशन में दस पन्द्रह हज़ार रुपये खर्च आएगा. इसलिए मैं तुम्हारे पास आया हूँ. अगर तुम पैसों का व्यवस्था कर दो तो ऑपरेशन करवा लूँ. डॉक्टर ने सारी तैयारियां कर ली हैं. "
"ऑपरेशन?" उनकी बात सोच कर आमिर कुछ सोच में डूब गया. "दस पन्द्रह रुपए की व्यवस्था?" बहू बेटे का मुंह देखने लगी.
"अब्बा! अब आपसे क्या कहूँ में भला इतनी बड़ी रकम का प्रबंधन कैसे कर सकता हूँ. आप जानते हैं मेरे पीछे कितने खर्च हैं. आपको नियमित रूप से पैसा रवाना करना होता है. उस फ्लैट को खरीदने के लिए जो ऋण लिया थाकी किश्तें कट रही हैं. फर्नीचर और टीवी वालों की उधार देना है. समझ लीजिए उस समय कंधे तक ऋण में धनसा हूँ और आप अम्‍मी  के ऑपरेशन के लिए दस पन्द्रह हज़ार रुपये मांग रहे हैं? "
बेटे की बात सुन कर आश्चर्य वह उसका मुंह ताकने लगे. बेटे ने नज़रें चुरा लें तो वह फ्लैट की छत को घूरने लगे जहां नई शैली की सेल्ङ्ग लगी थी. अचानक उनकी आँखों के सामने मस्जिद में अपनी बेटी के दिल के ऑपरेशन के लिए लोगों से मदद मांगने वाले उस आदमी का चेहरा घूम गया और वह लरज़ उठे. उन्हें लगा जैसे वह बेटे के फ्लैट के दरवाजे पर रूमाल बिछा कर उस से मां के ऑपरेशन के लिए मदद मांग रहे हैं.
 
...
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

Hindi Short Story Yatna Ki Ek Rat By M.Mubin


कहानी  यातना की एक रात लेखक  एम मुबीन   

पत्नी के बुरी तरह झकझोरते पर आंख खुली. वही हुआ जो आमतौर पर इस तरह अचानक जागरूक किए जाने पर होता है. हृदय की धडकनें तेज हो गईं. साँसें अपनी पूरी गति से चलने लगीं और भाषा रेत का रेगिस्तान और गले में कानों का जंगल उभर आया.
"क्या है?" बड़ी मुश्किल से होंटों से आवाज़ निकली और अपने होंटों पर जीभ फेरकर भाषा तर करने की कोशिश करने लगा.
"बाहर पुलिस आई है." पत्नी कलेजा पकड़ कर बोली.
"पुलिस?" उसके माथे पर बल पड़ गए. "इतनी रात गए इस इलाके में पुलिस का क्या काम?"
"सायरन की आवाज़ सुनकर आंख खुल गई. फिर सन्नाटे में ऐसा लगा जैसे कई वाहन आकर रुकी. और फिर भारी भरकम बोों की आवाज़ गली में गूंज लगी." पत्नी बताने लगी. "फिर वातावरण में वही पुलिस के पारंपरिक प्रश्न गरजने लगे.
"दरवाज़ा खोलो, कौन हो तुम कहाँ से आए हो और कितने दिनों से यहां रह रहे हो." अब पत्नी की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि फिर गली में भारी भरकम क़दमों की आवाज़ गूंज और दरवाजा खटखटाया जाने लगा. उसकादिल धड़क उठा. वह डर नज़रों से दरवाजे की ओर देखने लगा. परंतु जब फिर दरवाजा खटखटाया गया तो अंदाज़ा हुआ उनका नहीं पड़ोसी का दरवाजा खटखटाया जा रहा है.
"दरवाज़ा खोलो वरना हम दरवाजा तोड़ देंगे." एक तेज़ आवाज़ गूंज और उसके बाद दरवाज़ा खुलने और फिर पड़ोसी की घबराई हुई आवाज़.
"क्या बात है, कौन है?"
"दिखाई नहीं देता, हम पुलिस वाले हैं."
"पुलिस?" सिद्दीकी साहब घबराए हुए थे. "क्या बात है इन्‍सपेक्‍टर  साहब! इतनी रात आप मेरे घर आने की ज़हमत क्यों की?"
"हमें तुम्हारे घर की तलाशी लेनी है."
"तलाशी और मेरे घर की, मगर क्यों?"
"हमें तुम्हारे घर की तलाशी लेनी है."
"परंतु मेरे घर की तलाशी क्यों ली जा रही है?"
"केवल तुम्हारी ही नहीं, पूरे क्षेत्र के हर घर की तलाशी की जा रही है और हमारे इस मिशन का नाम है कोम्बनग ऑपरेशन."
"परंतु हमारे इस क्षेत्र में आपको कोम्बनग करने की जरूरत क्यों पेश आया है?"
"इसलिए कि हमें पता चला है कि इस क्षेत्र में अवैध काम होते हैं. और यह क्षेत्र अपराधियों की आमास्थाह है. इस पूरे क्षेत्र में बांग्लादेशी और आई. एस. आई एजेंट फैले और छिपे हुए हैं."
"परंतु हमारा इन सभी बातों से कोई संबंध नहीं है हम नौकरी पेशा शरीफ लोग हैं?"
"शरीफ़ लोग हैं, नौकरी पेशा लोग हैं और झोपडपटटी में रहते हो?"
"शरीफ़ और नौकरी पेशा लोगों का झोपडपटटी में रहना कोई अपराध तो नहीं है."
"हे! अधिक बुक बुक मत कर हम अपना काम करने दे. हमें कानून मत सिखा, क्या? अधिक होशियारी की तो उठाकर पटख दूंगा साला स्‍वंय  को सज्जन बताता है. प्रथम! उसके घर की अच्छी तरह से तलाशी लो. अगर कोई भी चीज़ मिले तो उसे बताना कि सज्जनता क्या है? पुलिस के कामों में टांग अड़ाती है. इसके बाद सिद्दीकी साहब की आवाज़ नहीं सुनाई दी परंतु घर के एक सामान को उलट पलट करने, गिराने और फेंके की आवाज़ें ज़रूर पॉप लगीं.
"साहब देखिए कितना बड़ा छरा है."
"यह मांस काटने का छरा है." सिद्दीकी साहब की आवाज़ उभरी.
"यह मांस काटने का छरा या मर्डर करने का अभी पता हो जाएगा. हवलदार उसे हथकड़ी डाल कर ले चलो." इंस्पेक्टर की आवाज़ उभरी. "नहीं नहीं!" सिद्दीकी साहब की पत्नी की आवाज़ उभरी. "मेरे पति को कहाँ ले जा रहे हो, नहीं मैं अपने पति को बिना किसी कारण तुम्हें घर से ले जाने नहीं दूंगी. "
"हे बाई! दलों सरक, हमारे काम में दखल देने की कोशिश मत कर वरना बहुत भारी पड़ेगा." एक गरजदार आवाज़ उभरी.
"इन्‍सपेक्‍टर  साहब मैं सच कहता हूँ आप को गलतफहमी हो रही है. एक शरीफ नौकरी पेशा आदमी हूं." सिद्दीकी साहब की आवाज़ उभरी.
"साब बंगाली किताबें." एक आवाज़ उभरी.
"यह देखिए! कई बंगाली किताबें हैं."
"तो यह आदमी जरूर बांग्लादेशी होगा."
"बांग्लादेश में भारतीय हूं."
"यदि भारतीय हो तो फिर यह बंगला भाषा की किताबें तुम्हारे पास कहाँ से आईं?"
"मुझे बांग्लादेश साहित्य में रुचि है. इसलिए बंगला भाषा की किताबें पढ़ता हूं."
"वह सब पुलिस स्टेशन में साबित करना कि तुम बांग्लादेशी हो या भारतीय." इसके बाद सिद्दीकी साहब को शायद धक्के देकर कमरे से बाहर ले जाया गया. उनकी पत्नी की दाद फ़रियाद की आवाज़ें, डानों और गालयों के शोर में दब रह गई थीं. इसके बाद उनकी बारी थी दरवाज़ा ज़ोर से पीटा जाने लगा.
"कौन?" धड़क दिल थाम कर बड़ी मुश्किल से वह कह सका.
"पुलिस! दरवाजा खोलो. हम तुम्हारे घर की तलाशी लेना चाहते हैं." बाहर एक गरजदार आवाज़ उभरी. उसने बिना कोई पसो पेश के द्वार खोल दिया. सात आठ पुलिस के सिपाही और एक इंस्पेक्टर धड़धड़ाते हुए कमरे में घुस आए और तेज नज़रों से कमरे की एक एक वस्‍तु  की समीक्षा लगे. इसके बाद वह बड़ी तेजी से कमरे के एक कोने की ओर लपके और वहां की चीज़ें और सामान बड़ी बे दरदी नीचे ऊपर और पटखनी लगे. पत्नी डर से थर थरकांप उसके सीने से आ लगी.
"क्या नाम है तुम्हारा?" इंस्पेक्टर ने कड़क कर पूछा.
"रहस्य अहमद."
"पता है. जगह रहस्यमय अहमद नहीं तो क्या सचिन खेडीकर रहेगा. क्या काम करते हो?"
"एक सरकारी कार्यालय में नौकरी करता हूँ."
"सरकारी कार्यालय में नौकरी करते हो." इन्‍सपेक्‍टर  आश्चर्य से उसे देखने लगा.
"और यहाँ रहते हो?" "साब ज़रूर इस संबंध आईएसआई से है. ये लोग सरकारी कार्यालयों में काम करते हैं और देश से गद्दारी करते हुए जासूसी करते हैं देश के राज़ बेचते हैं." ऐसा लगा जैसे शरीर सारी शक्ति दाहिने हाथ में जमा हो गई है. और वह हाथ मक्का के रूप में हवलदार के मुँह पर पड़ने के लिए बेताब है. उसने बड़ी मुश्किल से स्‍वंय  पर काबू पाया और आगे बढ़कर अपनी पैंट की जेब से अपने कार्यालय का कार्ड निकाला और इंस्पेक्टर की ओर बढ़ा दिया.
"ओह! तो मंत्रालय में हो?" इंस्पेक्टर ने कार्ड देखते हुए कहा. "ठीक है हम अपना काम कर लिया है. प्रथम! चलो बाहर निकलवा." उसने दूसरे सिपाहियों को आदेश दिया और सब कमरे से बाहर निकल गए. सारा घर कबाड़ा गृह बन गया था. वह और पत्नी विवश्‍ता  से अपने घर के बेतरतीब सामान को देखने लगे फिर पत्नी एक सामान को उठाकर अपनी जगह रखने लगी. उसके बाद उनके पड़ोस के कमरे पर हमला हुआ था. असग़र नशे में धुत था. पैदा करने पर वह पुलिस से उलझ गया. "साला! तुम पुलिस वाले अपने आपको क्या ख़ुदा समझते हो. कभी शरीफ लोगों के घरों में भी धड़क घुस आते हो. उनकी मीठी नींद खराब करते हो. चले जाओ नहीं तो एक एक को देख लूँगा. "
"साले अधिक चर्बी चढ़ गई है शायद, ठहर जा! अब तेरी चर्बी उतारते हैं." और उसके बाद डंडों के बरसने की आवाज़ें और असग़र की चीखें वातावरण में गूंज लगीं. "बचाव! बचाव! नहीं! नहीं! मुझे मत मारो. "इस की चीजों में उसके घर वालों, पत्नी और बच्चों की चीखें भी शामिल थीं. इसके बाद असग़र को खींचते हुए बाहर ले जाया गया था. इस प्रकोप  का सिलसिला चाल के दूसरे कमरों पर तारी रहा.
"या खुदा! हम लोगों का यह हाल है तो बस्ती के दूसरे लोगों का क्या हाल होगा." बड़बड़ाते हुए उसने सोचा. वह बस्ती झनपड़ पट्टी ज़रूर थी परंतु इतनी बदनाम नहीं थी. जितनी आम तौर पर दूसरी झनपड़ पट्टियाँ हैं.वहां इक्का दुक्का अपराध होते थे और वहां अपराधियों की संख्या बहुत कम थी. इस बस्ती के बीच में एक छोटी सी चाल थी. आठ दस कमरों पे शामिल. पहले वह बस्ती नहीं थी केवल वही चाल थी. जहां उसके जैसे नौकरी व्यावसायिक आकर बस गए थे. जो अपनी साख के अनुसार शहर के पाश इलाके में घर, मकान लेने में असमर्थ थे. अपने पास जमा छोटी सी राशि डपाज़ट के रूप में देने के बाद उन्हें उसी चाल में कमरा मिला था. इसके बाद जीवन भर की कमाई पेट की आग, जीवन की समस्याओं, बच्चों की परवरिश और शिक्षा की भेंट हो गई थी. इस चाल से बाहर निकलने का मौका ही नहीं मिला. और चाल के आसपास मशरूम की तरह झोपडपटटी बढ़ती और बस्ती गई. झोपडपटटी उनकी तरह अच्छे शरीफ और संकट  के मारे लोग भी थे. जो सिर छिपाने के लिए वहां बसे हुए थे तो सर फिरे, जाहिल, उजड़ और गनवार भी थे. ऐसे लोगों को इस तरह के प्रकोप  भी सहने पड़ते हैं.
"रहस्य भाई रहस्यमय भाई! कुछ करें, पुलिस उन्हें ज़बरदस्ती पकड़ कर ले गई है." सिद्दीकी साहब की पत्नी रोती हुई उसके पास आई.
"आप धैर्य  रखें भाबी! कुछ नहीं होगा मैं देखता हूँ." उसने सिद्दीकी साहब की पत्नी को सांत्वना दी और फिर पत्नी से बोला. "शकीलह! तुम अपना ख्याल रखना मैं अभी आया.
"आप कहाँ जा रहे हैं? मुझे बहुत डर लग रहा है." पत्नी बोली.
"डरने की कोई बात नहीं है. तुम सिद्दीकी साहब के घर चली जाओ." यह कहकर बाहर आया तो शायद प्रकोप  समाप्‍त  हो चुका था. पुलिस की वाहन जा चुकी थीं. चाल और आसपास के क्षेत्र के दस बारह लोगों को गिरफ्तार कर पुलिस स्टेशन ले जाया जा चुका था. जो बच गए थे आपस में सलाह कर रहे थे जिन्हें पुलिस पकड़ कर ले गई है, उन्हें कैसे वापस लाया जाए. असग़र तो शराब के नशे में धुत था और अकारण पुलिस से उलझ गया था उसे तो पुलिस छोड़ने से रही. उनके लिए इसका नशा में होना ही काफी था. परंतु सिद्दीकी साहब को ख्वामख्वाह पुलिस स्टेशन ले जाया गया. उनकी पत्नी की हालत गैर है. वह मेरे पैरों पर गिर कर विनती कर रही थी कि सिद्दीकी साहब को वापस लाया जाए. पड़ोसी एक जगह जमा होकर बातें कर रहे थे. "ठीक है! चलो पुलिस स्टेशन चलकर देखते हैं और इंस्पेक्टर को समझाने की कोशिश करते हैं कि सिद्दीकी साहब सज्जन हैं. उनका संबंध ऐसे किसी आदमी से नहीं है. जिसकी खोज में उन्होंने यह प्रकोप  इस बस्ती पर डखाया था. वह बोला तो सब उसके साथ पुलिस स्टेशन जाने के लिए राजी हो गए.
पुलिस स्टेशन में लोगों की भीड़ थी. कुछ तो लोग थे जो इस ऑपरेशन के तहत पकड़ कर लाए गए थे. कुछ उन्हें छुड़ाने के लिए आए थे. पुलिस बड़ी सख्ती से पेश आ रही थी. किसी को पुलिस स्टेशन में कदम रखने की अनुमति नहीं थी. "जाओ सवेरे आना. सवेरे तक यह लोग यहां रहेंगे. सवेरे उनके बारे में सोचेंगे कि उनका क्या होगा." उसने अपना कार्ड बताया तो उसे अन्दर जाने की अनुमति दी गई. उसने इंस्पेक्टर से सिद्दीकी साहब के बारे में बात की.
"इन्‍सपेक्‍टर  साहब! सिद्दीकी साहब को पिछले दस सालों से जानता हूं. उनका संबंध अपराधियों, आतंक  या देश दुश्मन लोगों से नहीं है. वह एक शरीफ़ नौकरी पेशा आदमी हैं और एक निजी फर्म में अकाउंट नट हैं."
"क्या बात करते हो रहस्यमय साहब उनके घर हमें छरा और बांग्लादेश किताबें मिली हैं. पूरा जांच के बाद ही उन्हें छोड़ सकते हैं." इन्‍सपेक्‍टर  ने साफ कह दिया.
"रहस्य भाई! मुझे यहाँ से किसी तरह ले चलो अगर मैं सवेरे तक यहां रह गया तो यहाँ मेरी जान निकल जाएगी, वहां मेरी पत्नी की. अपने मालिक का फोन नंबर देता हूँ उनसे इस सिलसिले में बात कर लीजिए." कहतेउन्होंने एक फोन नंबर दिया तो वह उसे लेकर बाहर आया और एक सार्वजनिक टेलीफोन बूथ से इस नंबर पर फोन लगाने की कोशिश करने लगा.
"हैलो!" तीन चार बार कोशिश करने पर नींद में डूबी आवाज़ उभरी.
"मलहोतरह साहब सिद्दीकी साहब आपकी ऑफिस में काम करते हैं. उनका पड़ोसी बोल रहा हूँ. उन्हें ऑपरेशन कोम्बनग के दौरान पुलिस पकड़ कर ले गई है और उन पर बांग्लादेशी, अपराधियों और देश दुश्मन होने का शक कर रही है. आप पुलिस स्टेशन फोन करके सिद्दीकी साहब के बारे में कुछ कह दें तो हमें सिद्दीकी साहब को छुड़ाने में मदद मिलेगी. "
"सिद्दीकी साहब और बांग्लादेश, अपराधियों और देश दुश्मन? ना न सनस. उन लोगों ने तो शरीफ लोगों का जीना मुश्किल कर रखा है. भई मेरे फोन से कुछ नहीं होगा. मेरा एक दोस्त गृह मंत्रालय में काम करता है. इस से फोन करवाता हूं तब ही कुछ काम बनेगा. "
"आप फोन जरूर करवाई. वरना सिद्दीकी साहब को रात भर ...!"
"तुम चिंता मत करो सिद्दीकी मुझे बहुत प्रिय है." मलहोतरह साहब ने उसकी बात काटकर कहा और फोन बंद कर दिया. वह पुलिस स्टेशन आया और सिद्दीकी साहब को तसल्ली देने लगा. कि मलहोतरह साहब गृह मंत्रालय के किसी आदमी से फोन करने हैं और पुलिस उन्हें छोड़ देगी. पुलिस स्टेशन में हाथों, गालयों और लातों से एक आदमी की बल्लेबाज परस जारी थी. समय चयून्टी गति से रेंग रहा था. अचानक टेलीफोन की घंटी बजी तो इंस्पेक्टर ने फोन उठाया.
"कोली वाड़ह पुलिस स्टेशन में इंस्पेक्टर साने. अच्छा साहब अच्छा साहब. वह बस यूं ही शक के आधार पर पूछताछ के लिए यहां लाए हैं. छोड़ रहे हैं." फोन रखकर वह क्रोध भरी दृष्टि से सामने बैठे लोगों को घूरने लगा . "सिद्दीकी कौन है?"
"मैं हूँ." सिद्दीकी साहब ने डरते डरते कहा. 'तो पहले साफ साफ क्यों नहीं बताया कि वाई कर साहब को पहचानते हो? जाओ अपने घर जाओ. "
सब जब सिद्दीकी साहब के साथ पुलिस स्टेशन से बाहर आए तो पौ फट रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे प्रकोप  की एक रात समाप्‍त  हो गई है.
 
...
अप्रकाशित
मौलिक
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एम मुबीन
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