Wednesday, October 19, 2011

Hindi Short Story Atank By M.Mubin


कहानी   आतंक   लेखक  एम मुबीन   

"हे भगवान मैं अपने घर वालों के लिए भोजन की खोज में घर से बाहर जा रहा हूँ. मुझे शाम सुरक्षित घर वापस लाना. मेरी रक्षा करना मेरी अनुपस्थिति में मेरे घर और घर के लोगों की सुरक्षा करना."
दरवाजे के पास पहुंचते ही यह प्रार्थना  उसके होंटों पर आ गई और वह मन ही मन में प्रार्थना  को दोहराने लगा. जैसे ही उसने प्रार्थना के अंतिम शब्द अदा किए उसका पूरा शरीर कांप उठा और पूरे शरीर में एक विद्युत की लहर सी दौड़ गई, आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा.
उसने घबरा कर पीछे पलट कर देखा.
नित्‍य के समान उसकी पत्नी बच्चे को लेकर   उसे छोड़ने दरवाजे तक आई थी.
"बेटे पापा को टाटा करो". उसने बच्चे से कहा तो बच्चा उसे देखकर मुस्कराया और अपने नन्हे नन्हे हाथ हिलाने लगा.
"शाम को जल्दी घर आ जाना कहीं रुकना नहीं, ज़रा सी देर हो जाती है तो मेरा दिल घबराने लगता है." पत्नी ने कहा तो उसकी बात सुनकर एक बार फिर उसका दिल कांप उठा, पैर जैसे दरवाजे में जम गए परंतु फिर उसने अपना सिर झटक कर मन को मजबूत करते हुए दरवाजे के बाहर कदम निकाला.
घर से बाहर निकल कर उसने एक बार फिर मुड़ कर अपने घर को देखा पत्नी बच्चे को गोद में लिए दरवाजे में खड़ी थी.
पता नहीं क्यों एक बार फिर उसके मस्तिष्‍क में विचार के नाग ने अपना फन उठाया. उसे ऐसा लगा जैसे वह अंतिम बार अपने घर से बाहर निकल रहा है अपने घर और पत्नी बच्चे का अंतिम दर्शन कर रहा है. अब वह कभी वापस लौटकर इस घर में नहीं आएगा न पत्नी बच्चे को फिर से देख नहीं पाएगा.
घबरा कर उसने अपने सिर को झटका और तेजी से आगे बढ़ गया.
उसे डर लग रहा था अगर उसकी पत्नी ने उन विचारों को पढ़ लिया तो वह अभी रो उठेगी और रो रो कर स्‍वंय  को बेहाल कर लेगी और उसे ड्यूटी पर जाने नहीं देगी. विवश उसे छुट्टी लेनी पड़ेगी .
वह क्या करे? उसके मन में विचारों का जो नाग कुंडली मारकर बैठा है नाग को अपने मन से कैसे निकाले.
हर बार वह अपने मन में बैठे उस नाग को मार भगाने की कोशिश करता है और कभी कभी तो वह अपनी इस कोशिश में सफल  भी हो जाता है. परंतु फिर वह नाग उसके मन में आकर बैठ जाता है और उसकी सारी कोशिश बेकार हो जाती है.
अभी कल ही की बात है.
चार पांच दिनों से वह स्‍वंय  को बड़ा हल्का महसूस कर रहा था. वह नाग को मार भगाने में सफल रहा था. वह इत्मीनान से मन में बना कोई बोझ लिए ऑफिस जाता था और उसी इत्मीनान से वापस घर आता था.
न तो घर में कोई तनाव था और न ही कोई भय था. फिर एक हादसा हुआ और वह नाग दोबारा उसके मन में कुंडली मारकर बैठ गया.
उस दिन ऑफिस पहुंचा तो पता चला कि मिलिन्‍द ऑफिस नहीं आया.
"क्या बात है, आज मिलिन्‍द ऑफिस क्यों नहीं आया है?" उसने पूछा.
"अरे तुम्हें मालूम नहीं?" उसकी बात सुनकर गाईकर आश्चर्य से उसे देखने लगा
"कल उसकी हत्या हो गया."
"हत्या हो गई?" यह सुनते ही उसके मन को एक झटका लगा. हत्या और मिलिन्‍द की? मगर क्यों? उसने किसी का क्या बिगाड़ा था? वह सज्जन पुरूष किसी का क्या बिगाड़ सकता था? उस बेचारे का तो मुश्किल से कोई दोस्त था तो भला दुश्मन कैसे हो सकता है?
"न वह दोस्तों के हाथों मरा और न दुश्मनों के! वह तो बेमौत मारा गया." गाईकर बताने लगा. कार्यालय से घर जा रहा था. लोखनड वाला कांपलैक्स के पास अचानक दो गिरोह वालों में टकराव हुआ. दोनों ओर से गोलियां चलने लगीं. उन गोलियों से पता नहीं उनके गिरोह के लोग मारे गए या घायल हुए परंतु एक गोली उस जगह से गुजरते मिलिन्‍द की खोपड़ी तोड़ते ज़रूर गुजर गई. "
"ओह...... नो!" यह सुनकर वह अपना सिर पकड़ कर कुर्सी से टेक लगाकर बैठ गया.
बेचारा मिलिन्‍द!
कल कितनी प्यारी प्यारी बातें कर रहा था.
"अनंत भाई! अपने कमरे की व्यवस्था हो गई है अब कमरा कहाँ लिया कितने में लिया यह मत पूछो, बस ले लिया. यह समझो घर वाले बहुत खुश हैं कि मैंने कोई कमरा ले लिया है. साला इतने छोटे से घर में सारे परिवारको को रहना पड़ता था. मेरे कमरे लेने से सबसे ज्यादा प्रसन्न नैना है. मैंने जैसे ही उसे यह खुश खबरी सुनाई गार्डन में सब लोगों के सामने उसने मेरा मुंह चूम लिया एक बार नहीं पूरे तीन बार और बोली अब जल्दी से घरआकर मेरे बापू से हमारी विवाह  की बात कर लो  वह तैयार हैं. उनकी एक ही शर्त थी और वह यह कि तुम रहने के लिए कोई कमरा  ले लो.
"बेचारा मिलिन्‍द!" वह सोचने लगा. कल जब वह ऑफिस से निकला होगा तो उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वह घर की ओर नहीं मौत की तरफ़ जा रहा है. क्या सवेरे घर से निकलते समय उसने सोचा होगा कि वह अन्तिम बार ऑफिस जा रहा है? इसके बाद उसे कभी घर से ऑफिस के लिए निकलने की जरूरत महसूस नहीं होगी. या अब कभी वह लौटकर घर नहीं आएगा. वह जिस मौत का शिकार हुआ है यह उसकी प्रकृति मौत है? नहीं नहीं...! ना यह उसकी प्रकृति मौत थी और न उसकी किस्मत में इस तरह की मौत लिखी थी. वह तो बेमौत मारा गया.
दो गिरोह वाले आपस में टकराए. एक दूसरे को समाप्त करने के लिए गोलियां चलीं और समाप्‍त  हो गया बेचारा मिलिन्‍द.
जिस तरह मिलिन्‍द की कहानी समाप्‍त  हो गई संभव था अगर वह भी उस जगह से गुज़रता तो उसके जीवन का भी अंत हो जाता. माना वह उसका रास्ता नहीं था परंतु यह जरूरी नहीं है कि गैंगवार केवल लोखनड वाला कांपलैक्स के पास ही होती हैं.
वह दादर में भी हो सकती है, कुर्ला  में भी मुलुंड में और थाने स्टेशन के बाहर भी. यह तो उसका रास्‍ता  है. जिस गोली ने मिलिन्‍द की जान ली थी इस तरह की कोई गोली इस की भी जान ले सकती है.
नाग दोबारा आकर उसके मन में कुंडली मारकर बैठ गया था. और अब चाह कर भी वह उस नाग को अपने मन से नहीं निकाल सकता था.
पिछले एक साल से वह उस नाग के आतंक  से भयभीत था. पिछले एक साल से रोज उसे उस नाग का लहराता हुआ फन दिखाई देता था. रोज़ाना  वह जिस रास्ते से गुज़रता था वहां से मौत उसी की ताक में बैठी महसूस होती थी.
उसे सिर्फ उस दिन नाग से मुक्ति  मिलती थी जिस दिन वह ऑफिस  नहीं जाता था और घर में ही रहता था.
घर में वह अपने बीवी बच्चों के बीच स्‍वंय  को बेहद सुरक्षित समझता था. उसे पूरा संतोष होता था कि जब तक वह अपने घर में अपने परिवार के लोगों के बीच है सुरक्षित है.
हां जिस समय उसने घर से बाहर कदम रखा उसके जीवन का कोई भरोसा नहीं. केवल वह अकेला ही इस आतंक  से भयभीत नहीं था जब वह विचार करता तो उसे अपने साथ यात्रा करता हर आदमी उसे आतंकित लगता था. किसी को भी अपने जीवन का कोई भरोसा नहीं था.
जब वह इस विषय पर लोगों से बातचीत करता तो उसे लगता वह जिस डर के साये में जी रहा है लोग भी इसी भय के साये तले जी रहे हैं. सारे शहर पर वह काला साया छाया हुआ है.
एक साल पहले तक सब कुछ कितना अच्छा था.
प्रतिदिन  वह बिना  भय और आतंक के ऑफिस जाता और ऑफिस से वापस घर आता था. किसी वजह से अगर वह आधी रात तक घर नहीं पहुंच पाता था तो भी घर वाले उसकी कोई चिंता नहीं करते थे. वह यह अनुमान लगा लेते थे कि ज़रूर कार्यालय में कोई काम होगा इसलिए घर आने में देर हो गई होगी या ट्रेन सेवा में कोई बिगाड उत्पन्न हो गया है इसलिए वह अभी तक घर नहीं आ पाया है. वह स्‍वंय  जब ऑफिस से निकलता तो उसे भी घर पहुंचने की कोई जल्दी नहीं होती थी. वह बड़े आराम से आवश्यक सामान  खरीद कर घर जाता था.
परंतु अब तो यह हाल था कि अगर वह आधा घंटा भी लेट हो जाता था तो उसकी पत्नी की दिल की धडकनें तेज हो जाती थीं. वह बेचैनी से कमरे में टहलते, पता नहीं क्या सोचने लगती थी.
अगर वह घर आने में दो तीन घंटा लेट हो जाता तो वह फूट फूट कर रोने लगती थी. वह अभी तक घर क्यों नहीं पहुंचा? क्या उसके साथ कोई   घटना घटी है?
अब वह ऑफिस से निकलता था तो सीधा पहली लोकल पकड़ कर घर जाने की सोचता था वह कार्यालय से बाहर स्‍वंय  को बड़ा असुरक्षित अनुभव करता था. उसे अगर कोई ज़रूरी चीज़ भी ख़रीदनी होती थी तो वह टाल देता था.
एक आतंक  हर समय मस्तिरूक मे समाया  रहता था. पता नहीं कब कहीं कोई बम फटे और उसके शरीर के पुर्जे  उड़ जाएं.
पता नहीं कब कहीं से कोई समूह हाथों में तलवार, चाकू, चापड़ लिए धार्मिक नारे लगाता हुआ आए और आकर उसके शरीर के टुकड़े  टुकडे कर डाले.
पता नहीं कब कहीं से पुलिस की गोली आए और इस धरती को उसके अस्तित्‍व  से पाक कर दे पता नहीं कहीं दो गैंगों की वार में चली कोई गोली उचट कर  आए और मिलिन्‍द की तरह उसका भी अंत कर दे. नहीं तो यह भी संभव है जिस लोकल ट्रेन से यात्रा कर रहा हो उसके डिब्बे में बम फट पड़े.
पिछले एक साल में उसने अपनी आंखों से अपनी मौत को बहुत समीप  से देखा था. अपने कई परिचितों  और प्रिसवरों को मौत का ग्रास  बनते हुए देखा था और एक दो बार तो स्‍वंय  मौत के समीप  से गुज़री कि आज भी जब वह क्षणों को याद करता था तो उसके शरीर में कंपकंपाहट छूट जाती थी.
वह दिसम्बर का मनहूस दिन था. पत्नी उसे रोक रही थी.
"आज आप ड्यूटी पर मत जाइए मेरा दिल बहुत घबरा रहा है ज़रूर आज कुछ न कुछ होगा."
"तुम्हारा मन तो रोज़ ही घबराता रहता है इसका मतलब तो यह हुआ मैं रोज ऑफिस न जाऊँ. ऐसा कुछ भी नहीं होगा जैसा तुम सोच रही हो. इस तरह की घटनाएं तो प्रतिदिन  होते रहते हैं. मेरा आज ऑफिस  जाना बहुत जरूरी है कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए, मैं जल्द ही वापस आ जाऊँगा. "
पत्नी रोकती रही मगर वह न माना और ड्यूटी पर चला आया.
उस दिन ऑफिस में उपस्थिति आधे से भी कम थी. आने वाले आ तो गए थे परंतु उस क्षण को कोस रहे थे जब उन्होंने ऑफिस जाने का फैसला किया था. सबका यही मानना था कि अगर वह न आते तो बेहतर था. क्योंकि जो समाचार कार्यालय पहुंच रहे थें उससे लग रहा था आधा शहर जल रहा है. आसमान में धुएं के बादल छाए साफ दिखाई दे रहे थे. सारे शहर पर एक आतंक  छाया हुआ था. खुली दुकानें धड़ा धड़ बंद हो रही थीं सड़कों से सवारियाँ लोग गायब हो रहे थे.
यह तय किया गया कि कार्यालय बंद कर सब लोग तुरंत अपने घरों को चले जाएं. रेलवे स्टेशन तक आते आते उन्होंने कई ऐसे दृश्य देखे थे जिसे देखकर उनके होश उड़ गए थे.
जगह जगह वाहन जल रहे थे. दुकानें जल रही थीं. लुटी हुई दुकानें खुली पड़ी थीं. सड़क पर एक दो लाशें पड़ी थीं. दो घायल कराह रहे थे. पत्थरों और सोडा वाटर की फूटी हुई बूतलों के ढेर सडक पर पड़े हुए थे.
स्टेशन पर इतनी भीड़ थी कि पैर रखने की भी जगह नहीं थी. जो भी लोकल आती थी लोग उस पर टूट पड़ते थे और जिसे जहां जगह मिलती वहाँ खड़े होकर, बैठ कर, लटक कर जल्द से जल्द वहां से निकल जाने की कोशिश करते.
उसे एक लोकल  में जगह मिली तो स्थिति यह थी कि वह दरवाजे में आधे से अधिक लटकता यात्रा कर रहा था और रास्ते में सारे दृश्य देख रहा था.
लोगों के समूह एक दूसरे से उलझे हुए थे. एक दूसरे पर पथराव कर रहे थे. सोडावाटर की बोतलें फेंक रहे थे.. दुकानें लूट रहे थे चिल्‍ला  रहे थे.
कहीं पुलिस और लोगों में टकराव चल रहा था. पुलिस अंधाधुंध गोलियां चला रही थी लाशें सड़कों पर गिर रही थीं.
गोलियों की बौछार उस जगह से गुजरती लोकल ट्रेन से टकराई. उसके साथ जो आदमी लटका हुआ था गोली पता नहीं उस आदमी के शरीर के किस हिस्से से टकराई, उसके मुंह से एक दर्दनाक चीख निकली. उसका हाथ छूटा वह डिब्बा से गिरा और उसके बाद उभरने वाली अन्य चीखें इतनी भयानक थीं कि जिसके  भी कानों तक चीख पहुंची वह कांप गया.
वह गाड़ी के नीचे आ गया था.
एक गोली सामने खड़े आदमी को लगी और वह कबना आवाज़ निकाले  ढेर हो गया.
उसके शरीर से खून का एक फौवारा उड़ा और आसपास खड़े लोगों के शरीर और कपड़ों को सराबोर कर गया.
उसके कपड़ों पर भी ताज़ा खून की लकीर उभर आई. किसी तरह वह घर पहुंचने में सफल  हुआ. इसके बाद उसने तय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए वह अब आठ दस दिनों तक या जब तक मामला ठंडा ना  हो जाए ऑफिस नहीं जाएगा.
और वह आठ दिनों तक ऑफिस नहीं गया. घर में बैठा शहर के जलने और लोगों के मरने बर्बाद होने की खबरें सुनता पढ़ता रहा. कभी चौबीस घंटे कर्फ्यू रहता. कभी कुछ देर के लिए कर्फ़्यू में राहत दी जाती. आठ दिनों में स्थिति सामान्य सी हो  गई.
मजबूरियों के मारे लोग अपने घरों से बाहर निकले. विवश  ऑफिस जाते. रास्ते भर यात्रा के जल्द समाप्त की दिल ही दिल में प्रार्थनाएं करते.
कार्यालय पहुंचकर कार्यालय में काम करते हुए यही प्रार्थना करता कि कोई अप्रिय घटना न पेश आए. और ऑफिस से जल्दी छुट्टी लेकर जल्दी घर जाने की कोशिश करता.
आधी रात तक जागने और कभी कभी तो रात भर जागने वाला शहर पांच बजे ही वीरान हो जाता था. हालात कुछ कुछ सामान्य हुए  भी न थे कि एक बार फिर हिंसा भड़क उठी. इस बार हिंसा का जोर कुछ अधिक था.
एक दिन आतंकित सा ऑफिस से दोपहर में घर आ रहा था कि अचानक एक धार्मिक नारा लगाता समूह लोकल ट्रेन पर टूट पड़ा. समूह के हाथों में तलवारें, चाकू और चापड़ थे. धार्मिक नारे लगाते वे लोग  अंधाधुंध लोगों पर वार कर रहे थे . लोग चीख रहे थे, गिडगिडा  रहे थे परंतु समूह को किसी पर दया नहीं आ रही थी. तलवार का वार इस के उपर भी हुआ और बाद में क्या हुआ उसे कुछ याद नहीं.
होश आया तो उसने स्‍वंय  को एक अस्पताल में पाया.
लोकल किसी सुरक्षित स्थान पर रुकी थी. वहां से घायल लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. तीन दिनों तक वह बेहोश था. होश में आने के बाद घबरा कर उसने सबसे पहले अपने घर खबर करने का अनुरोध किया था.
अस्पताल में उसे पता चला कि उसकी पत्नी स्वयं दो दिनों से अस्पताल में है. वह घर नहीं आया था इसलिए रात भर रोती पीटते रही थी. जैसे जैसे दिल को दहला देने वाली ख़बरें वह सुनती थी उसका कलेजा मुंह को आता. अंत जब सहन  नहीं कर सकी तो बेहोश हो गई और उसे पड़ोसियों ने अस्पताल पहुंचा दिया.
अस्पताल में जब उसके सुरक्षित होने की खबर मिली तो उसके अंदर जैसे नई चेतना  संचार कर   गयी और वह उसके पास अस्पताल चली आई.
वह दस दिनों तक अस्‍पताल   में रहा उसके बाद घर आ गया. घर आकर उसने घर में कुछ दिनों तक आराम किया फिर विवश ऑफिस जाने लगा. वह इतना भयभीत था कि प्रत्येक क्षण उसे लगता था अब कोई समूह हाथों में तलवार , चापड़ या चाकू लिए धार्मिक नारे लगाता आएगा और उस पर टूट पड़ेगा. पिछले बार तो वह उनके वार से बच गया परंतु इस बार बच नहीं सकेगा वे उसके शरीर के टकरे टुकड़े कर डालेंगे.
उसकी आंखों के सामने डिब्बे से दूसरे धर्म से संबंध रखने वालों को फेंकने की घटनाओं पेश आईं  थीं. वह उन घटनाओं से भी डरा रहता था. अगर किसी दिन गलती से किसी डिब्बे में चढ़ गया जिसमें अन्य धर्म से संबंध रखनेवाले यात्री अधिक हुए तो वे भी उसके साथ यही व्‍यवहार  कर सकते हैं. नहीं नहीं ऐसा सोच कर ही वह कांप उठता था.
और फिर एक दिन एक क़यामत का दिन आया. उसके ऑफिस के सामने वाली इमारत में एक ज़बरदस्त धमाका हुआ था. इतना ज़बरदस्त कि कार्यालय की खिड़कियों के सारे शीशे टूट गए थे और अपने कानों के पर्दे फटने लगे महसूस हुए थे. बाहर केवल धुआँ ही धुआँ था. धुआँ हटा तो वहां सिर्फ मलबा ही मलबा दिखाई दे रहा था. और चीथड़ों की शक्ल में खून में डूबे मरे लोग उनकी लाशें. इस तरह के धमाके शहर में कई स्थानों पर हुए थे. हजारों लोग घायल हुए थे सैकड़ों मारे गए थे करोड़ों का नुकसान हुआ था. मौत एक बार फिर उसकी आंखों के सामने अपना जलवा दिखा कर नृत्य करती चली गई थी. अगर वह बम थोड़ा और अधिक शक्तिशाली होता तो इसका ऑफिस भी उसकी चपेट में आ जाता और वह भी नहीं बच पाता.
यहीं अंत नहीं था. आये दिन लोकल ट्रेनों में स्‍टापों पर छोटे बड़े धमाके हो रहे थे. अपराधियों की खोज के नाम पर किसी जरा भी संदेह होने पर पुलिस उसे उठा ले जाती और उसे जानवरों की तरह पीट  कर हवालात में डाल देती . उसका छूटना  मुश्किल हो जाता. हाथों की हर चीज़ को शक की नज़रों से देखा जाता था. कोई वस्‍तु  कहीं से लाना या ले जाना भी अपराध हो गया था.
गिरोह वार में सड़कों पर गोलियां चलती हैं. शव गिरतें. अपराधियों गुण्डों अपराधियों लोगों की भी और मासूम लोगों के भी. ऐसी स्थिति में घर से निकलते हुए कौन विश्वास से कह सकता है कि उसके साथ ऐसा कुछ नहीं होगा. वह जिस तरह घर से निकल रहा है उसी तरह सुरक्षित वह सुरक्षा शाम को वापस घर आ जाएगा. घर से जब वह प्रार्थना कर निकलता तो उसका मन भय और अशंकाओं  में डूबा होता था परंतु जब वह शाम घर पहुंच कर प्रार्थना करता था तो उसे एक हृदय शान्ति मिलती थी.
"हे भगवान! तेरा बहुत बहुत धन्यवाद तू ने मुझे सही सलामत सुरक्षित  अपने घर पहुंचा दिया."

 
...
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

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