Wednesday, October 19, 2011

Hindi Short Story Ghatana Karam By M.Mubin


कहानी   घटनाक्रम   लेखक  एम मुबीन   




"इतनी देर कहाँ थे?" दरवाजा खोलने के साथ पत्नी ने प्रशन   किया.
"पुलिस स्टेशन गया था." उसने बेज़ारी से उत्‍तर  दिया और कपड़े उतारने लगा.
"रात के दस बज रहे हैं और तुम पुलिस स्टेशन से आ रहे हो?" पत्नी ने आश्चर्य से पूछा.
"शाम पांच बजे से पुलिस स्टेशन में बैठा हूँ." उसने अपना सिर पकड़ते हुए उत्‍तर  दिया.
"तीन बजे ही दो कांस्टेबल कार्यालय पहुंच गए थे और तुरंत पुलिस थाने चलने के लिए कह रहे थे. बड़ी मुश्किल से मैंने उन्हें समझाया कि ऑफिस में बहुत ज़रूरी काम है मैं शाम को थाने आता हूँ. शाम को थाने गया तो इंस्पेक्टर का पता ही नहीं था जिसके हाथ में मिलिन्‍द का मामला है. एक दो घंटे इंतजार करने के बाद जाने लगा तो थाने में कांस्टेबल डराने धमकाने लगे कि तुम बिना इंस्पेक्टर साहब से मिले जा नहीं सकते. अगर तुम चले गए तो हो सकता है इन्‍सपेक्‍टर  साहब तुम्हें रात घर से बुलाएँ. फिर उसके आने  का इंतजार करने लगा. नौ बजे के समीप  वह आया तो मुझसे इस तरह का व्यवहार करने लगा जैसे मैं कोई आदी अपराधी हूँ, कहने लगा. "क्यों बे तू बहुत बड़ा साहब अधिकारी है जो हमारे बुलाने पर नहीं आता है? हम तेरे बाप के नौकर हैं, दोस्त की हत्या की गवाही दे रहा है तो हम पर कोई उपकार  नहीं कर रहा है अधिक होशियारी दिखाई तो इसी मामले में तुझे फंसा दूंगा. यह मत भूल हत्या तेरी आंखों के सामने हुई  है और तू अकेला चश्म दीद गवाह है. वहां मौजूद अन्य सभी लोगों ने गवाही देने से इन्‍कार कर दिया है वरना  घटनास्‍थल पर मौजूद    कोई भी व्यक्ति हत्यारों को देखने की बात होंटों पर नहीं ला रहा है. अपने दोस्त के हत्यारों को सज़ा दिलाना चाहता है तो सीधी तरह हमारी मदद कर जब हम बुलाएँ उसी समय पुलिस स्टेशन में हाज़िर होता रह. वरना पुलिस के साथ सहयोग न करने के आरोप में तुझे भीतर कर देंगे. "
"उन्होंने क्यों बुलाया था?" राधा ने बात बदलने के लिए पूछ लिया. वह समझ गई थी कि अगर उसने इस बात को समाप्‍त  नहीं किया तो अमित सारी कहानी शब्द दर शब्द उसे सुनायेगा और सुनाते हुए तनाव का शिकार हो जाए है.
"कुछ नहीं एक दो ब्‍यानों पर हस्ताक्षर लेने थे.   घटनास्‍थल  पर मिली एक दो चीजों की पुष्टि करनी थी." अमित ने उत्‍तर  दिया.
"भगवान जाने इस मामले से कब छुटकारा मिलेगा." यह कहते हुए राधा ने ठंडी सांस ली और फिर बोली. "चलो जल्दी से मुंह हाथ धोकर  आओ. रात के दस बज रहे हैं मुझे बड़ी भूख लगी है और तुम भी तो भूखे हो . "
"चार घंटों में पानी की एक बूंद भी मुंह में नहीं गई है." कहता हुआ अमित वाश बेसिन की ओर बढ़ गया.
"पता नहीं यह हमारे किन पापों की सज़ा है जो भगवान हमें दे रहा है." अमित को वाश बेसिन की तरफ़ जाते देख कर वह सोचने लगी. "हमें इस मामले में फंसा दिया है."
थोड़ी देर के बाद दोनों साथ बैठे   खाना खा रहे थे. परंतु राधा का मस्तिष्‍क कहीं और खोया हुआ था.
अमित की आँखों के सामने वह घटनाएं घूम रही थीं जब उसके सामने मिलिन्‍द की हत्या हुई थी.
 दोनों एक रेस्तरां में बैठे चाय पी रहे थे.
ऑफिस से छूटने के बाद मिलिन्‍द ने चाय की दावत दी थी. उसे भी शिद्दत से चाय की ज़रूरत महसूस हो रही थी. दिन भर कार्यालय में इतना काम था कि वह चाय भी नहीं पी सका था.
दोनों ऑफिस से निकले और सामने वाले रेस्तरां में बैठ कर चाय पीने लगे. शाम का समय था रेस्तरां में अधिक भीड़ नहीं थी. वैसे भी वह बाहर की टेबल पर बैठे थे.
"और बताओ तुम्हारा और बिल्डर का झगड़ा कहां तक पहुंचा है?" उसने चाय पीते हुए मिलिन्‍द से पूछा.
"अब इस झगड़े के बारे में क्या बताऊँ. झगड़ा दिन ब ि‍दन बढ़ता ही जा रहा है. अब तो वह साला धमकी देने लगा है. कल शाम सात आठ गुंडो के साथ आया था मैं उन सब को पहचानता था. कहने लगे कल तक सीधी तरह जगह खाली कर दे. हम बिल्डिंग में दो सौ स्क्वायर फीट का फ्लैट तुझे बिना मूल्य दे देंगे.  दो सौ स्क्वायर फीट का फ्लैट, साले जैसे मुर्गी को रहने के लिए डरबा दे रहे हैं. फिलहाल जितनी जगह में रहता हूँ वह दो हज़ार स्क्वायर फुट से कम नहीं होगी. दो हजार स्क्वायर फीट जगह के बदले दो सौ स्क्वायर फीट जगह दे रहे हैं. जब मैंने वह जगह किराए पर ली थी आसपास चारों ओर जंगल था जंगल. उस समय जगह के मालिक ने मुझसे डपाज़ट के रूप में पांच हजार रुपये लिए थे और कहा था मैं जितनी जगह चाहूंगा उपयोग कर सकता हूँ. मैंने थोड़ी सी जगह साफ करके एक कमरा बनाया था. रात भर चारों ओर से डरावनी आवाज आती थी. और सांप बिच्‍छु  घर में घुस आते थे.
मजबूरी थी नई नई नौकरी थी. सिर छिपाने के लिए जगह चाहिए थी. इसलिए उस जगह रहता था. समय बीतने लगा तो आसपास और भी लोग आकर बसने लगे. जंगल समाप्त हुआ. मैंने साफ सफाई करके  और एक कमरे बना लिया . मालिक ने किराया सौ रुपये कर दिया नियमित रूप से किराया देता था. अब जब कि वह जगह आबादी के बीच में आ गई है चारों ओर बड़ी बिल्डिंगें  बन गई हैं. ज़मीन की क़ीमत करोड़ों रुपये हो गई है तो वह जगह खाली कराना चाहता है. जगह बिल्डिंग बनाकर उसे ऊंची कीमत पर बेचना चाहता है. "
"यह कहानी तो हर जगह दोहराई जा रही है." अमित ने उसे समझाया था. "परंतु जहां भी पुराने किरायेदारों का निकाल कर नई बिल्डिंग बनाई जाती है. पुराने किरायेदारों को उचित मूल्य पर उनकी जगह दी जाती है."
"मेरे मालिक ने वह जगह किसी बिल्डर को दी है और सुना है बिल्डर बहुत बड़ा गुंडा है और वह चाहता है कि उसके डर से   मैं चुपचाप वह जगह खाली कर दूं परंतु उसे पता नहीं इस बार उसका वास्ता मिलिन्‍द है. इसबार उसे अपना तरीका कार बदलना पड़ेगा. मेरे कब्जे में  दो हजार स्क्वायर फीट जगह के बदले अगर वह मुझे पाँच सौ स्क्वायर फीट का फ्लैट भी देने के लिए तैयार हो जाए तो वह जगह खाली कर दूँगा. परंतु वह गुंडागर्दी और डर से  वह जगह खाली कराना चाहता है जो संभव नहीं......! "
अब उनकी बातचीत यहां तक पहुंची थी कि अचानक रेस्तरां में कुछ चीखें गूंजेीं.
उन्होंने रेस्तरां के दरवाजे की तरफ देखा.
वह कुछ गुंडे थे जो हाथों में हथियार लिए रेस्तरां में दाखिल हुए थे और उन्हें देख कर लोग चीख उठे थे.
उनके तेवर से ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी को खोज रहे हैं.
"वह रहा भाई!" अचानक एक गुंडे ने मिलिन्‍द की तरफ़ इशारा किया.
गुंडे की यह बात सुनते ही व्यक्ति का हाथ ऊपर उठा. उसके हाथ में पिस्तौल थी. उसने मिलिन्‍द के सिर का निशाना लिया. एक धमाका हुआ और मिलिन्‍द की चीख़ गूंज.
गोली मिलिन्‍द के सिर में लगी थी.
दूसरा विस्फोट.
इस बार गोली उसके सीने पर लगी थी.
मिलिन्‍द मुंह के बल टेबल पर आकर गिरा था. उसके सिर और सीने से खून का एक फौवारा उड़ा था और उसके कपड़ों पर खून की एक लकीर सी खैंची गई थी.
"नहीं......!" उसके होंटों से एक चीख निकल गई.
वह फटी फटी आँखों से कभी मिलिन्‍द को देख रहा था कभी गुण्डों द्वारा जो बड़े इत्मीनान से रेस्तरां के द्वार से निकल कर बाहर खड़ी कार में बैठ रहे थे.
और फिर कार तेजी से चली गई. एक क्षण के लिए उसकी नज़रें कार की नंबर प्लेट पर पड़ी और उसने कार के नंबर याद  कर लिए.
किसी ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस आई और उसने जांच शुरू कर दी. उस हत्या चश्म दीद गवाह वही था. वह मिलिन्‍द के साथ था इसलिए पुलिस के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वही था.
प्रारंभिक प्रक्रिया के बाद मिलिन्‍द की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई और उसे ब्‍यान  लेने के लिए पुलिस स्टेशन बुलाया गया. बयान लेने के साथ साथ इससे सैकड़ों प्रशन   किए गए.
"क्या तुमने पहले कभी हत्यारों को देखा था?"
"नहीं इससे पहले तो उन्हें कभी नहीं देखा था, परंतु जिस व्यक्ति ने मिलिन्‍द पर गोली चलाई थी उसे आसानी पहचान लूँगा."
"तुम किस आधार पर कह रहे हो कि तुम उसे आसानी से पहचान लोगे?"
"उसका हुलिया ऐसा है कि उस  हुलिया का आदमी लाखों में आसानी से पहचाना जा सकता है." यह कहते हुए वह हत्यारा   का हुलिया बयान करने लगा.
उसे किसी पर शक है के उत्‍तर  में उसने वह सारी कहानी बयान की जो मिलिन्‍द उसे सुना चुका था.
इस बीच पुलिस जाकर मिलिन्‍द की पत्नी और परिवार वालों  को बुला लाई थी. उन्होंने रो रो कर पुलिस स्टेशन सिर पर उठा रखा था. परंतु उनकी मानसिक स्थिति का अनुमान लगाए बिना पुलिस अपनी कागज़ी क्रियाएँ पूरा कर रही थी.
रात चार बजे उसे पुलिस स्टेशन से मुक्ति  मिली और वह घर आया तो राधा उस का इन्तज़ार कर रही थी.
"इतनी रात गए घर आये हो, कहां रुक गए थे? एक क्षण के लिए नहीं सो सकी. प्रकार की शकंएं मुझे बेचैन कर रही थी."
उत्‍तर  में उसने मिलिन्‍द की हत्या की कहानी सुनाई.
दूसरे दिन मिलिन्‍द की लाश उसके घर वालों को मिली. मिलिन्‍द के आख़री संस्कार में भी वह शामिल  रहा.
मिलिन्‍द पिता की हालत गैर थी. वह अपनी उम्र से कुछ ज्यादा ही बूढ़े लगने लगे थे.
"मेरे मिलिन्‍द को इस मकान के मालिक ने मरवाया  है. वह ज़बरदस्ती यह जगह खाली करवाना चाहता था और हम जगह खाली नहीं कर रहे थे. इसलिए उसने हमारे मिलिन्‍द को मरवा दिया." यह कहकर वह फूट फूट कर रोने लगे.
तीसरे दिन पता चला कि पुलिस ने मिलिन्‍द के मकान मालिक को पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन बुलाया था परंतु बाद में उसे यह कहकर छोड़ दिया कि उसके विरूध  कोई ठोस सबूत नहीं है. दूसरे दिन उसे किसी काम से पुलिस स्टेशन तलब किया गया तो वह इंस्पेक्टर पर फट पड़ा.
"आपने मिलिन्‍द के मकान मालिक को केवल पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन बुलाया और यह कहकर छोड़ दिया कि उसके विरूध  कोई ठोस सबूत नहीं है जिससे यह साबित होता है कि इस हत्या के पीछे उसी का हाथ है. इंस्पेक्टर साहब! यह हत्या अगर मिलिन्‍द के मकान मालिक ने नहीं करवायी तो फिर किसने करवायी? मिलिन्‍द की किसी से दुश्मनी नहीं थी. "
"हे अधिक होशियारी मत मार, किसको गिरफ्तार करना चाहिए और किसको  छोड़ देना चाहिए तुझ से अधिक हम जानते हैं वर्दी हमारे शरीर पर है तेरे शरीर पर नहीं. हमारा बॉस बनकर हमें आदेश मत दे." इन्‍सपेक्‍टर  कुछ ऐसे स्‍वर  में कहा कि उसे खून का घूंट पी कर रहना पड़ा.
दो दिन बाद पुलिस को वह कार भी मिल गई जिसमें हत्यारा   भागे थे. पहचान के लिए उसे बुलाया गया. उसने एक नज़र में ही कार पहचान ली. कार एक वीराने में मिली थी. दो दिन पहले चोरी हुई थी. उसके मालिक ने कार चोरी होने की रिपोर्ट लिखाई थी. कार की पहचान और उसके बयान में रात के दो बज गए. जब वह घर आया तो राधा उस का इन्तज़ार कर रही थी.
"देखो तुम मेरे लिए बेकार परेशान हो कर मेरे आने तक जागती रहती हो." वह उसे समझाने लगा. "पुलिस का मामला है इसमें समय लगता है. अगर मैं सात आठ बजे तक घर नहीं आउं तो तुम समझ लेना कि मैं पुलिसस्टेशन गया आने में समय लगेगा. "
"ऐसा कब तक चलेगा?"
"जब तक मिलिन्‍द के हत्यारे पकड़े नहीं जाते." उसने उत्‍तर  दिया.
एक सप्ताह बाद वह स्‍वंय  ही पुलिस स्टेशन पहुंच गया. मिलिन्‍द के हत्यारे की खोज किस चरण में है पता लगाने के लिए. जब इस संबंध में मिलिन्‍द की हत्या की जांच करने वाले इंस्पेक्टर से पूछा तो इंस्पेक्टर भड़क उठा.
"पुलिस अपना काम कर रही है. और वह हत्यारा   को गिरफ्तार कर लेगी. इस संबंध में तो हमसे पूछने वाला कौन है? हमारा बाप या आयुक्त?" इंस्पेक्टर के उत्‍तर  से वह जल भुन गया.
एक शाम वह ऑफिस से आ रहा था तो एक होटल के बाहर खड़े एक व्यक्ति को देख कर वह चौंक पड़ा. उस व्यक्ति को वह लाखों में पहचान सकता था. यही मिलिन्‍द का हत्‍यारा  था. उसने मिलिन्‍द पर गोली चलाई थी.
"बासटर्ड मैं तुझे जीवित नहीं छोड़ूंगा." कहते हुए वह उस पर झपटा. गुंडे ने बड़ी आसानी से स्‍वंय  को छुड़ाकर उसे धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया और इत्मीनान से पास खड़ी मोटरसाइकिल पर सवार होकर चलता बना. वह हक्का बक्का उसे जाता देखता रह गया. वहां से वह सीधा पुलिस स्टेशन पहुंचा.
"इन्‍सपेक्‍टर  साहब आप भी कमाल करते हैं, आप को मिलिन्‍द का हत्‍यारा  नहीं मिल रहा है वह छाती तान कर शहर में दनदनाता फिर रहा है. अभी मुझे वह रॉयल होटल के बाहर मिला था."
"फिर तुमने उसे पकड़ा क्यों नहीं, वह कैसे भाग निकला. कहीं तुमने तो उसे नहीं भगाया है, हत्यारा   तुम्हारे सामने था और तुम नहीं पकड़ पाए तुमने उसे भगा दिया, उससे तो लगता है तुम्हारा भी इस हत्या में हाथ है. तुमने अपनी मदद के लिए अन्य लोगों को क्यों नहीं बुलाया? "उल्टा उस पर सैकड़ों सवालों का हमला हो गया और उसे उत्‍तर  देना मुश्किल हो गया. और उसे लगा उसने पुलिस स्टेशन आकर गलती की.
इसके बाद उसने तय किया कि वह स्‍वंय  से कभी पुलिस स्टेशन नहीं जाएगा. वहां जाकर उसे जो अपमान सहन  करना पड़ता था अब वह सहन करने की उसमें शक्ति नहीं है. परंतु चाहने से क्या होता है?
स्‍वंय  पुलिस एक दो दिन बाद उसे पुलिस स्टेशन बुला लेती और घंटों पुलिस स्टेशन बिठा कर रखने के बाद दो चार ऊटपटांग प्रश्न कर उसे छोड़ देती थी.
वह ऑफिस पहुंचता तो सिपाही आ धमकी थे और कहते थे कि साहब ने उसे बुलाया और विवश उसे उनके साथ जाना पड़ता था.
एक दो बार बॉस ने उसे बुलाकर साफ कह दिया.
"तुम या तो नौकरी करो या पुलिस स्टेशन में रहो. यह तुम्हारा बार बार पुलिस स्टेशन कार्यालय छोड़ना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं" इस संबंध में जब उसने इंस्पेक्टर से बात की तो इंस्पेक्टर उस पर गुस्सा हो गया.
"हे......! तू ने ही अपने बयान में लिखवाया है कि तू ने हत्यारे को देखा है. तू हत्यारा   को पहचान सकता है, इसलिए बार बार पुलिस स्टेशन बुलाया जा रहा है कि हम जो आदमी पकड़ें उसकी तुझ से पहचान कराई जा सके. यदि अपना बयान बदल दे और कह दे कि तू ने हत्यारे को नहीं देखा तो उसे नहीं पहचानता है, तो हम तुझे बलाएँगे   ही नहीं. तुझे साधारण गवाह बनाकर तेरा मामला समाप्‍त  कर देंगे. "
अपने ज़मीर से युद्ध लड़ने कि बाद उसने यह फैसला किया था कि वह अपना बयान नहीं बदले है. वही मिलिन्‍द की हत्या का चश्म दीदगवाह है. हत्यारा   को पहचानता है. उसकी गवाही हत्यारा   को उसके किए की सजा दिला सकती है इसके लिए उसे यह सब तो उसे झेलना ही पड़ेगा.
पुलिस स्टेशन में रोज़ की उपस्थिति का सामान्य नियम  बन गया था. वह स्‍वंय  कभी पुलिस स्टेशन नहीं जाता था हर बार उसे बुलाया जाता था. वहां उसके साथ हर कोई बदतमीज से पेश आता, उसका मजाक उड़ाते और घंटों पुलिस स्टेशन में बिठा कर रखा जाता. और फिर उसे कोई चोर उचक्‍के को दिखाकर पूछा जाता कि यह तो मिलिन्‍द का हत्‍यारा  नहीं? जब वह मना कर देता तो उसे घर जाने की अनुमति दे दी जाती. इस बीच एक बार फिर से वह मिलिन्‍द के हत्यारा   से टकराया.
हत्यारा   ने रोक कर उससे बड़ी   दलेरी से कहा था.
"क्यों अमित साहब मेरी पहचान करना चाहते हो ना? अरे पुलिस मुझे पकड़ेगी  ही नहीं तो तुम कहां से ि‍शनाखत कर पाओगी. देखो मैं किस  दलेरी से शहर में घूम रहा हूँ. पुलिस मुझे जानती है, परंतु मुझ को गिरफ्तार नहीं कर रही है . क्योंकि मेरा पहुंच   बहुत है. इसलिए मेरा एक ही सुझाव है कि इस मामले को समाप्त कर दो. मुझे पहचानने से इन्‍कार कर दो और अपने बयान में लिख दो कि तुम हत्यारा   को नहीं पहचान सकते. सारा मामला समाप्‍त  हो जाएगा. तुम्हें बार बार पुलिस स्टेशन नहीं बुलाया जाएगा. "
और वह चला गया.
उस दिन जब उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया तो वह इन्‍सपेक्‍टर  पर बरस पड़ा.
"इन्‍सपेक्‍टर  साहब! आप मुझे प्रतिदिन  हत्यारे की पहचान के लिए पुलिस स्टेशन बुलाते हैं और मुझे मामूली चोर उचक्‍के को  बताकर घर भेज देते हैं जबकि वास्तविक हत्यारा अब तक स्वतंत्र है. वह शहर में दनदनाता फिर रहा है मुझसे मिलकर धमकी दे रहा है. फिर भी उसे नहीं पकड़ रहे हैं. यह क्या तमाशा है? "
उसकी इस बात पर इंस्पेक्टर ने उसे एक घूंसा  रसीद कर दिया.
"हरामज़ादे! पुलिस विभाग पर आरोप लगाता है. अधिक बकवास की तो हड्डी पसली तोड़ कर रख दूँगा तुझ से जो कुछ कहा जा रहा है उससे अधिक मत बक अधिक बका    तो अंदर कर दूंगा."
वह चुप हो गया.
उस दिन भी उसे एक मामूली चोर दिखाया गया और घर जाने का आदेश दे दिया गया. वह घर वापस आया तो सकते में था. वह यह किस परेशानी में पड़ गया है समझ में नहीं आ रहा था. वह रात भर सो नहीं सका . राधा उससे पूछती रही कि क्या बात है परंतु उसने उसे कुछ नहीं बताया. चुपचाप केवल छत को घूर रहा.
दूसरे दिन उसे पुलिस स्टेशन नहीं बुलाया गया. उस शाम छह बजे ही घर आ गया और खाना खा कर नौ बजे ही सो गए.
रात में दरवाजे पर दस्तक की आवाज़ सुनकर उसकी आंख खुली. रात के बारह बज रहे थे. इतनी रात गए कौन घर आ सकता है? सोचते हुए उसने दरवाज़ा खोला तो उसका दिल धक से रह गया. बाहर आठ दस गुंडे खड़े थे दनदनाते हुए घर में घुस आए इन गुंडो के साथ मिलिन्‍द का हत्‍यारा  भी था. उनको देखकर राधा की चीख निकल गई.
"अपनी पत्नी से कह कि वह चीख पुकार न करे. हम दो बातें करने आए हैं. दो बातें कर हम चले जाएंगे. अगर वह चीख़ी तो विवश उसका मुंह बंद करने के लिए हमें कोई कदम उठाना पड़ेगा." गुंडो का बॉस उससे बोला. उसने इशारे से राधा से चुप रहने को कहा.
"अमित बाबू! तुम मिलिन्‍द की हत्या के मामले में गवाही दे रहे हो. काहे को झंझट में पड़ते हो. देखो यह बहुत बुरा शहर है मिलिन्‍द दिन दिहाड़े मार दिया गया. और उसको मारने वाले हम लोग आज भी स्वतंत्र हैं. पुलिस हम पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर रही है और करेगी भी नहीं. परंतु तुम्हारी गवाही उसे मजबूर कर रही है कि वह हिम्मत करे. इसलिए काहे को ख्वामख्वाह हम और पुलिस से दुश्मनी मोल ले रहे हो. भूल जाओ कि तुम्हारे सामने मिलिन्‍द की हत्या हुई थी और यह भी भूल जाओ कि तुम ने उसे हत्या करते किसी को देखा है. सब कुछ ठीक हो जाएगा. वरना मिलिन्‍द की तरह तुम्हारी भी किसी सड़क पर हत्या हो जाएगी. तुम इस शहर में नौकरी करने आया है अगर तुम मर गया तो यह तुम्हारा जो पत्नी है दो दिनों तक उसे पता भी नहीं चलेगा कि तुम मर गया है. तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारा पत्नी अकेला रह जाएगा. यह बहुत बुरा  शहर है यह शहर अकेली औरत को वे‍श्‍या  बना देता है. यह बहुत बुरा शहर है छोटे आदमी को इस शहर के बड़े लोगों के ल्फ़ड़ों में नहीं पड़ना चाहिए. दिन भर मेहनत कर मिलने वाली दो रोटी खा कर आराम से सूजा में ही भलाई है. हमारे जैसे लोग अपना काम करते रहते हैं और हमारे काम में जो भी टांग अड़ाता है उसका अंजाम मिलिन्‍द सा होता है. हमारा कुछ नहीं बिगडता. इसलिए अब तुम भी हमारे किसी काम में टांग मत अड़ाव और चुपचाप सो जाओ बाकी सब ठीक हो जाएगा. "
"चलो......!"
कहते हुए उसने अपने आदमियों को इशारा किया और सब चुपचाप घर से बाहर निकल गए.
राधा सकते में खड़ी उन्हें देखती रही और फिर अचानक वह आकर उससे लिपट गई और फूट फूट कर रोने लगी. वह उसे सीने से लगाए उसके बालों में उंगलियां फेरने लगा.
दूसरे दिन शाम पांच बजे ही दो कांस्टेबल उसे बुलाने आ गए.
"साहब ने बुलाया है. दो आदमी पकड़े हैं शायद वह मिलिन्‍द के हत्यारा   हूों. तुम्हें पहचानने के लिए बुलाया है."
वह चुपचाप उनके साथ चल दिया.
"आओ अमित बाबू! आज के बाद तुम्हें हमसे कोई शिकायत नहीं रहेगी. हमने दो आदमी पकड़े हैं और हमें पूरा विश्वास है कि उनमें से एक मिलिन्‍द का हत्‍यारा  है. वह हत्यारा   कौन है? अब यह तुम्हारी पहचान पर निर्भर है . "इन्‍सपेक्‍टर  ने कहा और सिपाही को आदमियों को लाने का इशारा किया.
दो आदमी उसके सामने लाए गए. एक तो अजनबी था और दूसरा मिलिन्‍द का क़ातिल. वह सकते में आ गया.
"बताओ अमित! क्या इनमें से कोई मिलिन्‍द का हत्यारा   है?"
वह फटी फटी आँखों से मिलिन्‍द के हत्यारा   को देखने लगा.
"बताओ अमित! क्या तुम उन्हें पहचानते हो?" इंस्पेक्टर ने पूछा.
"नहीं इंस्पेक्टर साहब मैं उन्हें नहीं पहचानता. मैंने उन्हें पहले कहीं नहीं देखा.मैं इन्‍हें नहीं जानता हूं " वह बोला और फिर अचानक अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपा कर फूट फूट कर रोने लगा.
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

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