कहानी धरना लेखक एम. मुबीन
सबसे पहले सेक्रेटरी ने उन्हे इस बात की खबर दी थी
‘‘अपने आजका आखबार पढा ?’’
‘‘अभी तो जागा हूं आपके पकोन की आवाज से तो भाल आखबार किस तरह पढ सकता हूं ? कहिए क़्या कोई खास खबर है ?’’
‘‘हा, सरकार ने उन स्कूलों की लिस्ट जारी की है जिन्हे सरकार की ओर से मन्यता प्राप्त नहीं है । उस सुचि में हमरी स्कूल का भी नाम है ।’’
‘‘आं क़्या कह रहे है आप ? सरकारने हमरी स्कूलको मन्यता नहीं दी? तो क़्या हमरी इतनी भागदौड, पत्रव्यवहांर मंत्रियों, नेताओं से मिलना जुलना सब बेकार गया ?’’
‘‘सब बेकार गया है अध्यक्ष जी ! मुझे तो पहले ही भाय था ऐ सा ही होगा और ऐसा ही हुआ... हमें तो पहले ही सूचना मिल गई थी इस वर्ष भी सरकार ने हमरी स्कूल को मन्यता नहीं दी और अब तो सारी दुनिया को मलूम पड गया है । इस बात की जानकारी सबको होते ही एक तू फान आ जाएगा अध्यक्षजी तू फान....!’’
‘‘हा से#ोकटरी साहब’’ वे चिन्तित स्वर में बोले । उस तू फान के आगमन को मैं भी अनुभव कर रहा हूं...।
और उसके बाद तो कई पकोन आए ।
लेगों को उत्तर देते देते उनका सिर चकराने लगा था । वे तो इस बात से ही चिन्तित हो रहे थे कि लेगों को पकोन पर समझाना काफ़्नि हो रहा है । जब उनका सामना होगा तो वे किस तरह उन्हे समझा पाएंगे ?
‘‘गुप्ताजी अपने जो स्कूल खोली है उसे तो अभी तक मन्यता भी नहीं मिल पाई है । उस में हमरे बच्चे पढ रहे है यह तो उनकी जीवन से बहुत बडा खिलवाड है ।’’
‘‘गुप्ताजी अपने तो मेरे बच्चे को कहीं का नहीं रखा । आपकी स्कूल को अभीतक मन्यता नहीं मिल सकी है इसका आर्थ है आपकी स्कूल से निकलने के बाद मेरे बच्चे को कहीं भी दाखल नहीं मिल सकेगा ?’’
‘‘गुप्ताजी, स्कूल खोलने के नामपर अपने जनता से लखों रूपया जम किया है । पैसा तो अपने जमकर लिया परंतु अपनी स्कूल को मन्यता नहीं दिल सके ?’’
वे सारी बातें सुनने के बाद एक ही उत्तर देते
‘‘आपको चिन्ता करने और उत्तेजित होने की कोई जरूरत नहीं । यह सब सरकारी दावपेच और आडचने है । एक मस के भीतर हमरी स्कूल को मन्यता मिल जाएगी ।’’
उन्हों बडे विश्वास से सभीको उत्तर दे दिया था और तय भी कर लिया था कि हर किसी को वे यही उत्तर देंगे परंतु वे अपने विश्वास को खोखलेपन के बारे में सोंच सोचकर स्वयं ही कांप उफ़्ते थे ।
दो वर्ष से तो मन्यता प्राप्त करने के लिए सारे प्रयत्न किए जा चुके है। कागजी कार्यवाही और पत्रव्यवहांर से फाईलों का ढेर तैयार हो चुका है । शिश विभाग से शिश मंत्रालय, शिश मंत्रालय से साचिवालय और मुख्य मंत्री के आफिसों के चक़्कर लगाते लगाते उनके साथ साथ से#ोकटरी, कुछ सदस्यों, स्कूल के हेडमस्टर, क़्लार्एक और शिशकों की चप्पले घस चुकी है ।
परंतु फिर भी मन्यता नहीं मिल सकी ।
तुरंत मन्यता प्राप्त करने का मर्ग भी बताया गया था । कुछ देकर काम निकाल लिया जाए, परंतु मंग इतनी ज्यादी थी कि उन्हे और पूरे बोर्ड को सोचने के लिए विवश होना पडा था ।
बात ऐसी भी नहीं थी कि मंग का प्रबंध नहीं हो सकता था मंग से कई गुना आधिक तो उनके पास जम था ।
परंतु वे अपने उसूल पर आड गया ।
‘‘हम लेगों से, दूसरों से सिर्फ लेते है । भाल हम क़्यों दूसरों को दें और फिर हमजो कुछ कर रहे है इसमें हमरे व्यक्तिगत स्वार्थ तो कुछ भी नही है । हम यह सब जनता के लिए कर रहे है हम यह चाहते है कि हमरी स्कूल में बच्चे पढकर दुनिया की प्रातिस्पर्धा में टिकने की शमता प्राप्त करें और स्पर्धा में सपकल ड़ों ।’’ इसके लिए उन्हों शिश के स्तरपर बहुत आधिक ध्यान दिया था और यह बात तो जनता से भी मनवा ली थी कि उनकी स्कूल का पढाई का स्तर शहर की दूसरी स्कूलों के स्तर से बहुत उंचा है । शिशक बहुत मेहनत करते है ।
तभी तो उनकी स्कूलमें दाखल लेने के लिए बच्चों के आफ्रिभावकों की कतारें लग गई थीं और वे इन्ड़ाी कतारों का तो लभा उफ़्ते थे ।
‘‘देखिए आपतो अच्छी तरह जानते है । हमरी स्कूल की शिश का स्तर कितना उंचा है । परंतु क़्या करें हमरी स्कूल को कोई सरकारी ग्रांट तो मिलती नही आप लेगों से डोनेशन पकीस और जनता से स्कूल चलने के लिए जो चंदा मिलता है उसी से यह स्कूल चलती है । इसलिए आप हमरी विवशता को समझे। हम डोनेशन के नाम पर जो मंग रहे है, हमरी वह मंग कोई अनुचित मग नहीं है । वह हमरी मजबूरी है इसलिए हमरी मजबूरी को समझते हुए और अपने बच्चों के उज्वल भाविय्र्य के लिए आप ज्यादा से ज्यादा रकम दें ताकि हमें स्कूल चलने में कोई कठनाई ना आए और आपके बच्चे का भाविय्र्य बने ।’’
अपनी विवशता बताकर और लेगों को अपने बच्चों के सुनहरे भाविय्र्य का सपना दिखाकर उन्हों दाखलों के नाम पर उंची डोनेशन वसूल की थी ।
जिस का कहीं कोई हिसाब किताब नहीं था वे लखों रूपये उनकी तिजोरी में जम थे उनके व्यापार में लगे थे ।
स्कूल खोलने के लिए चंदे के नाम पर भीी उन्हों लखों रूपये जम किए थे जिनसे उनका कारोबार बढा था और वे आए दिन स्कूल के नामपर धनपातियों से दान के रूप में लखों रूपये जम करते रहते थे । इस #िकयामें कितना रूपया जम हुआ और कितना खर्च हो गया कितना बाकी है ? बाकी है भी या नहीं ? इस बारे में तो स्कूल के सदस्यों को भी पता नहीं था । कुछ कुछ से#ोकटरी को मलूम था, परंतु वह तो उनका आदमी था ।
सब तो यही जानते थे स्कूल की स्थापना की गई, स्कूल के लिए जमीन खरीदी गई, उस पर स्कूल के लिए जरूरी इमरत बनाई गई । स्कूल शुरू हुई स्कूल का और स्कूल के शिशकों के वेतन का खर्च बढता जा रहा है । सब वे आदा करते है । अब इतने पैसे जम तो नहीं हो सकते । जरूर गुप्ताजी अपनी जेब से भी लगाते ड़ोंगे । बडे आदमी है । भागवान ने धन के साथ दिल भी दिया है तभी तो दिल खोलकर स्कूल में पैसा लगाते है ।
हमें स्कुल का सदस्य बना लिया यही उनकी महानता है । इस सदस्यता के बदले में एक पैसा भी तो नहीं लिया । ना अब मंगते है । लेग ऐसे पदों को प्राप्त करने के लिए लखों रूपये खर्च कर डालते है । फिर भी यह पद नहीं मिल पाता है परंतु हमें तो गुप्ताजी ने मुपक़्त में दे दिया बडे दिलवाले है....।
सदस्य अब तक शायद उनके बारे में यहीं सोचते ड़ों परंतु अब जब उन्हे पता लगेगा कि अभी तक स्कूल को मन्यता नहीं मिल सकी है तो वे जरूर पूछेंगे ‘‘गुप्ताजी, स्कूल को अभी तक मन्यता क़्यों नहीं मिल सकी ?’’
‘‘उन्हे समझाना कौनसी बडी बात है’’ वे सिर झटककर बहबहाए । ‘‘कह दूगां कि मंत्री मन्यता देने के दस लख मंगते है । स्कूल सदस्य के नाते आप लेग एक एक लख दीजिए स्कूल को मन्यता मिल जाएगी ।’’
यह सुनते ही सब ठंडे हो जाएंगे । सदस्य मंडल में ऐसे ऐ से एंकजूस जम किए है कि सिगरेट के लिए एक रूपया खर्च करने से भी डरते है । एक लख चंदे की बात सुनकर साप सूंघ जाएगा । इसके बाद सापक कह दूंगा ‘‘आप लेग इतना नहीं कर सकते और फिर भी सदस्य बने रहना चाहते है तो स्कूल में क़्या हो रहा है उसपर ध्यान ना दें मैं हर बात संभालने के लिए हूं....’’ इसके बाद तो सबकी बोलती ही बंद हो जाएगी ।’’
स्कूल गए तो स्कूल में बच्चों के घर वालों का तांता लगा हुआ था । सबका एक ही सवाल था ‘‘आपके स्कूल को अभी तक मन्यता नहीं मिल सकी है । इस तरह तो आपके स्कूल में पढकर हमरे बच्चे की जिंदगी बर्बाद
हो जाएगी। वह कहीं का नहीं रहेगा... इस तरह हमरे बच्चे के जीवन से
तो ना खेलों ।’’
उनका एकही उत्तर होता
‘‘आप निश्चित राहिए, हमरी स्कूल को एक मस के भीतर मन्यता मिल जाएगी ।’’
बच्चों के घरवाले से छुटकारा मिल तो हेड मस्टर और टीचरों ने घेर लिया ।
‘‘सर हम इस आशा में कम वेतन मे भी कडी मेहनत से बच्चों को पढा रहे है कि ग्रांट मिलने के बाद हमें अच्छा वेतन मिलने लगेगा, परंतु यहां तो स्कूल की ग्रांट की बात तो दूर स्कूल को अभी मन्यता तक नहीं मिल सकी है ।’’
‘‘सब ठीक हो जाएगा आप लेग अपने अपने क़्लास में जाईए ।’’
उसके बाद उन्हों से#ोकटरी, क़्लार्एक, हेड मस्टर को आदेश दिया ।
बीडीओ, जेडपी, शिश सभापाति, शिश विभाग, शिश मंत्रालय, शिश मंत्री सब जगह एक कडा पत्र भेजिए । यदि एक महिने के भीतर हमरी स्कूल को मन्यता नहीं दी गई तो स्कूल के सदस्या, हेडमस्टर, शिशक, स्कूल में पढने वाले बच्चे और उनके घर वाले मंत्रालय के सामने भूख हडताल कर देंगे... देखिए इस पत्र से हलचल मच जाएगी और एक मस से पहले ही हमरे हाथो में स्कूल की मन्यता का पत्र आ जाएगा ।
उनकी बात सुनकर हर किसी की आंख में आशा की एक नई ज्योत जगमगाने लगी ।
वह धमकी भी कारगर साबित नहीं हो सकी थी । कुछ जगड़ों से तो धमकी का कोई उत्तर ही नहीं आया था । कुछ जगड़ों से टका सा जवाब आया था ‘‘नियमें के आनुसार आपकी स्कूल को मन्यता नहीं दी जा सकती ।’’
सबकी आखों के सामने अंधेरा छाया था ।
‘‘ठीक है’’ पता नहीं क़्यों फिर भी उनकी आवाज में आत्मविश्वास था। 20 तारीख को यहां से मंत्रालय तक एक मेर्चे का प्रबंध किया जाए । 20 तारीख को दिनभर पूरी मेनेजिंग बाडी, हेडमस्टर, स्कूल शिशक, तमम बच्चे और जो आने के लिए तैयार ड़ों ऐसे बच्चों के मं बाप को मंत्रालय के सामने धरना देना है और मन्यता ना मिलने तक भूख हडताल करनी है ।
‘जी’ सबने एक स्वर में उत्तर दिया ।
20 तारीख को दो गाडियों में 200 के लगभाग बच्चों को ठोंसकर भारा गया । जगह इतनी तंग थी कि बच्चे ना खडे हो सकते थे ना बैठा सकते थे । उन्हे सांस लेना काफ़्नि हो रहा था, दम घुट रहा था परंतु वे मुंह से कोई फारियाद नहीं कर सकते थे । फारियाद सुनने वाल कोई नहीं था । एक बडी सी गाडी में स्कूल की सदस्य सामिती के लेग थे । एक दूसरी छोटी गाडी में हेडमस्टर और शिशक। केवल कुछ ही बच्चों के घरवाले आ पाए थे उन्हे सीधे मेर्चे के स्थान पर आने के लिए कहा गया था ।
दो घंटे बाद गाडियां आजाद मौदान में जाकर रूकी । बच्चे गाडियों से उतरे तो उन्हे ऐसा अनुभव हुआ जैसे नरक की यात्रा से उन्हे मुएिक़्त मिल गई है। सूरज सर पर चढ आया था और आसमन से आग बरसा रहा था ।
मेर्चे की तैयारी की जाने लगी । बच्चों के हाथ ताख्तियां, बेनर देकर उन्हे नारे याद कराए जाने लगे । और जरूरी निर्देश दिए जाने लगे ।
‘‘सर पानी ! बहुत प्यास लगी है’’ कोई बच्चा बोल तो उसकी आवाज में सैकडों स्वर शामिल हो गए ।
‘‘अब यहां पानी कहा से मिलेगा । हम तो भूख हडताल करने आए है। पीने-खाने के लिए नहीं’’ एक टीचर ने उन्हे डांटा तो बच्चे अपने पकटे हुए होठोंं पर जीभा पेकरकर रह गए ।
प्यास से एंकठा में कांटे पडे थे । गले से आवाज नहीं निकल रही थी । उपर सिरपर सूरज आग बरसा रहा था । परंतु फिर भी वे पूरी ताकत लगाकर नारे लगाते लडखडाते कदमें से आगे बढ रहे थे
‘‘हमरी मंगे पूरी करो’’
‘‘हमरी स्कूल को मन्यता दो’’
‘‘हमरे जीवन से मत खेलों’’
‘‘शिश मंत्री हाय हाय’’
‘‘शिश विभाग हाय हाय’’
‘‘मुख्य मंत्री मुर्दा बाद’’
शिशक बच्चों पर नजर रखे हुए थे । उन्हे जोर जोर से नारे लगाने के लिए उकसाने कोई नारी नहीं लगाता तो उसे टोकते । आपस में बाते करने वालों को डांटते । उन्हे कतार मे यातायात से बचकर चलने के निर्देश देते ।
कमेटी के सदस्य मेर्चे के साथ एक दूसरे से फ़्ट्टा, मसखरी, हंसी मजाक करते चल रहे थे । कभी कोई सबके लिए आईस्#कीम या शर्बत ले आता या ठंडे की बोतले या फिर खाने की कोई चीज तो उनका आनंद लेते वे मेर्चे के साथ साथ चलते ।
दो घंटे बाद मेर्चा मंत्रालय पहुंच गया । मंत्रालय से पहले ही बडे से मौदान में पुलिस ने उन्हे रोक लिया ।
मौदान में सब धरना देकर बैठा गए ।
आगे आगे कमेटी के सदस्य, गुप्ताजी और से#ोकटरी थे । पीछे हेडमस्टर और शिशक और उनके पीछे बच्चे ।
सब जोर जोर से नारे लगा रहे थे ।
सभी को कडा निर्देश था कि वे इतनी जोर से चीखें कि मंत्रालय की छते हिल जाए ।
परंतु दस करोड जनता की चीखों से जिनका कुछ नहीं बिगडता था दो सौ बच्चों के नारे भाल उन छतों का क़्या बिगाड सकते थे ।
किसी मंत्री की गाडी आती तो ‘जिंदाबाद, मुर्दाबाद’ के नारे और जोर जोर से लगाए जाते ।
भूख प्यास से बच्चों का बुरा हाल था । उपर से तपतीधूप जिस जमीन पर बैठे थे वह भी तंदूर की तरह तप रही थी । बच्चों की आंखो के सामने अंधेरा छा रहा था । आचानक एक बच्चा चकराकर गिर पडा ।
सब उसकी ओर दौडे । उसे होश में लने की कोशिश की जाने लगी। मगर बच्चा आंखे नहीं खोलता था । समीप खडे डाक़्टर ने बच्चे को अच्छी तरह देखा और चिन्ता भारे स्वर मे बोल
‘‘बच्चे की हालत बहुत नाजूक है इसे तुरंत आस्पताल पहुंचाना जरूरी है ।’’
‘‘नहीं’’ गुप्ताजी डट गए । ‘‘चाहे बच्चे की जान चली जाए बच्चा धरने से नहीं हटेगा । जब तक हमरी मंग नही पूरी होगी कोई भी बच्चा नहीं उठेगा ।’’ इस बीच दो और बच्चे चकराकर गिर गए थे । कई बच्चों ने भूख-प्यास निबलर्ता से गर्दन अपने साथियों के कांधे पर डाल दी थी । कुछ निर्बलता, कमजोरी के कारण जमीन पर लेट गए थे ।
डाक़्टर और वहां पहरा देने वाली पुलिस के चेहरों पर हवाईया उड रही थीं ।
गुप्ताजी और सदस्यों के चेहरे पर विजयी मुस्कान नाच रही थी ।
खबरे मंत्रालय में पहुंची और वही हुआ तो ऐसे मौको पर होता है ।
मंत्रालय हिलने लगा ।
‘‘एकाध बच्चा मर गया तो विपक्ष और प्रेस सारा आसमन सिर पर उठा लेगा । हमरी जान का दुश्मन हो जाएगा । उन्हे कह दो कि वे धरना खत्म करके वापस अपने शहर चले जाए । उनकी मन्यता के बारे में गंभीरता से विचार किया जाएगा ।’’ एक से#ोकटरी बोल ।
‘‘सर वे मन्यता से किसी भी कम आश्वासन पर बात करने को तैयार नहीं है । सापक कहते है उनकी स्कूल को मन्यता दी जाएगी तभी धरने से
उठेंगे ।’’
इसबीच चार और बच्चों के बेहोश होने की खबर पहुंची ।
शिश मंत्री के सारे साचिव घबरा गए । मुख्यमंत्री के साचिव के भी कान खडे हो गए । बात मुख्य मंत्री तक पहुंच गई ।
‘‘तमशा बनाकर बात मत बढाओ । शिश मंत्री से तुरंत कहो कि मैंने कहा है उनकी स्कूल को मन्यता दे दें ।’’
नीचे आकर गुप्ताजी को यह खबर दे दी गई
‘‘शिश मंत्री ने आपके स्कूल को मन्यता दे दी है और वे आपसे बात करना चाहते है ।’’
गुप्ताजी का चेहरा गुलब की तरह खिल उठा था ।
‘‘मेरे प्यारे साथियों और बच्चों हमरा धरना सपकल रहा । जिस काम के लिए हमने धरना दिया था, मेर्चा निकाल था वह काम हो गया है । शिश मंत्री ने हमरी स्कूल को मन्यता दी है । इस धरने में हमें जो कळ हुए वे रंग लए । कुछ पाने के लिए कुछ खोना और सहना पडता है । अपने आधिकार की लडाई लडने और उन्हे प्राप्त करने में थोडी तकलीपक तो होती है । आप लेग धरना खत्म करके वापस अपने शहर जाए मैं और कमेटी सदस्य मंत्रीजी से बात करके आते है ...... ।’’ द द
अप्रकाशित
मौलिक
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303 क्लासिक प्लाजा़, तीन बत्ती
भिवंडी 421 302
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Saturday, October 8, 2011
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