कहानी मैं गवाही दूंगा लेखक एम. मुबीन
दरवाजे पर दस्तक देने पर दरवाजा रहमत खान ने ही खोल परंतु मुझ पर नजर पडते ही उसके चेहरे का रंग उड गया ।
‘‘आरें खोंची कुमर खान तुम ?’’
‘‘क़्यों क़्या कोई शक है ?’’ मैं उसकी आंखो में देखता मुस्कुराया ।
‘‘अरे लले की जान तुम यहां क़्यों आया यहां का हालत आजकल बहुत खराब है....’’ वह जलदी से बोल ।
‘‘क़्क़्यों खाना क़्या यही आपकगानिस्तान की शान .... और पफ़्नों की परंपरागत मेहमन नवाजी है कि हजारों मील दूर से आए मेहमन से यह पूछा जाए कि तुम यहां क़्यो आया ?’’
‘‘ओ लले की जान तुम तो हमरा जान है’’ कहते रहमत मुझसे लिपट गया ।’’ अरे तुम हमरे घर आया आपकगानिस्तान आया आम को ऐसा लगता खुदा का फारिश्ता हमरे घर मेहमन बनकर आया आम अपना आंखे तुमहारी राह में बिछाए कि दिल निकालकर तुम्हारे सामने रख दे आम को कुछ सुझाई नहीं देता । खान आमरे होते हुए तुम्हारे जिस्म पर खराश आ जाए तो आमरा जिंदगी किस काम का । बस इसी के लिए ऐसा कहता है आओ आंदर आओ कहते उसने मुझे भीतर लिया ।
उसके घर में उसकी पत्नी, बच्चों और सभी घर वालों ने मेरा उसी तरह स्वागत किया जिस प्रकार हर होता है ।
परंतु मैंने अनुभव किया इस बार उनकी आंखो मे मेरे आने की चमक नहीं लहारही थी । भाय की छाया पैकल रही थी ।
दो घंटे तक नहा धो कर खाना खाकर लेट कर मैंने अपनी थकान उतारी ।
‘‘खान आम जानता है काबुल से एंकधार तक का रास्तो का सपकर कितना थका देने वाल है । ऊई हम पफ़्न तो आसानी से यह सपकर तय कर सकता है । लेकिन तुम हिन्दोस्तानी को कितना तकलीपक होता होगा हम जानता है....’’ रहमत खान मेरे पैर दबाता हुआ बोल । ‘‘इस बार तुम बहुत खराव वक़्त में यहां आया है । यहां जंग कभी भी शुरू हो सकता है वई बमबारी होगा .. हर आपकगाणिस्तानी को लगता है वह आमरीका की बमबारी से नहीं बचेगा ... खान ऐसे वक़्त में आम तुम को किस तरह बचाए हमें तो फिक्र खा रहा है क़्या तुम आखबार वखबार नहीं पडता । टी.वी. नहीं देखता जो इस वक़्त यहां चल आया।’’
‘मैं जानता हूं यहां जंग कभी भी शुरू हो सकती है फिर भी मैं यहां आया’ मैंने उत्तर दिया ।
‘यह जानता था तो फिर क़्यो आया ?’
‘खान व्यापारी आदमी हूं.... जंग तो होनी है सोचा जंग शुरू होने से पहले कुछ व्यापार करके न फा कम लूं’ मैं उसकी आखों में देखता मुस्काया । ‘‘एक बार जंग शुरू हो गई तो आपकगानिस्तान से आने वाल सूखा मेवा खरीदना मुश्किल हो जाएगा इसलिए सोचा जंग से पहले जाकर खरीदारी कर लूं... यह खरीदारी... शायद बाद में लखो का लभा दे ...।’’
‘बानिया का औलद है ना मरते वक़्त भी नपेक व्योपार का ही सोचेगा’ रहमत खान हंसा ।
‘‘परंतु खान दुनिया मे जान पैसे से ज्यादा कीमती है ?’’
‘‘छोडो इन बातो को’’ मैंने कहा । ‘‘यह बताओ मेरा काम होगा ।’’
‘‘जरूर होगा ?’’ रहमत खान बोल । ‘‘इस बार तो तुम्हें मेवा सस्ता और बहुत सा मिल सकता है । लेग जंग के डर से सारा मल बेचने को निकाल रहा है ।’’
‘‘तो फ़्कि है ! आज आराम करते है कलसे काम पर लग जाते है,’’ मैंने कहा ।
‘‘ठीक है खान तुम आराम करो....’’ कहता रहमत खान मुझे छोडकर चल गया ।
मेरा सूखे मेवे का व्यापार था । मेरा मल आपकगानिस्तान से भी आता था रहमत खान वहां पर मेरा एजंट था । साल मे एक दो बार मैं वहां जाकर उसे पैसा दे आता वह मेरे लिए मल खरीदी करता मल इरान ले जाता और वहां से समुद्राी रास्ते भरत भेज देता ।
कभी कभी वह मल के साथ स्वयं चल आता था । वह बहुत इमनदार था । पारंपारिक पफ़्नों की इमनदारी और व फादारी उसमे रची बसी थी ।
11 सितंबर के बाद जो हालत पैदा हो गए थे यह तय हो गया था कि आमरिका आपकगानिस्तान पर आक्रमण करेगा यह युद्ध बरसों चल सकता था ।
युद्ध के बरसों चलने का आर्थ था वहां से मल नहीं आ सकता था । इसलिए मेरी व्यावसायिक मनोवॄत्ति ने सोचा क़्योंना मैं इस बार युद्ध आरंभा होने से पूर्व वहां जाकर इतना मल खरीद लऊ कि मुझे साल छ महिने फिर मल की कमी अनुभव ना हो । इसलिए लेगों के लख मना करने के बावजूद वहां चल आया ।
मेरे लिए ना तो आपकगानिस्तान नया था ना काबुल ना एंकधार । बरसों से यहां आता रहा हूं इसलिए जान पहचान वालों की कमी नहीं थी ।
मुझे विश्वास था आठा दस दिन में काम निपटाकर मैं वापस भरत चल जाऊंगा ।
काम हो जाता है तो फिर भाविय्र्य में मिलने वाले लभा का हिसाब लगाने का ही काम है ।
इन्ड़ाी विचारों में आंख लग नहीं सकी । आचानक धमकों की आवाज के कारण मैं घबराकर उठा गया । बत्ताी भी चली गई ।
घर में रहमत खान, उसकी पत्नी और बच्चों का शोर और चीखें गूंजने लगी तो बाहर भायानक धमके ।
‘कुमर खान कुमर खान’ अंधेरे में रास्ता टटोलता रहमत खान मेरे कमरे में आया । ‘‘उठों... जंग शुरू हो गया है आमरिका के तैयारों (हवाई जहाजों) ने हमल कर दिया है । चारों तरपक बम बरस रहा है... चले बाहर
आओ ।’’
मैं भी घबराकर बाहर आया ।
बाहर धुप आंधकार था । आकाश सियाह था जिसमें कहीं कहीं तारे चमक रहे थे तो कहीं कहीं चमकदार गोले ।
चारों ओर क़ितिज पर बमें के गिरने से धमकों और चमक लहराती थी। लेग सडकों पर दीवानों की तरह भाग रहे थे । बच्चों और स्रियों के रोने और चीखने से कान के पर्दे पकटे जा रहे थे और कभी कभी बम के धमके इन चीखों और शोर को दबा देते थे ।
एक घंटे के बाद प्रलय रूक गई ।
‘लगता है आमरीकी वापस चले गए ।’ मेरे समीप खडा रहमत खान बडबडाया । ‘‘खुदा का शुक्र है उसने हमरे घर को महफूज रखा आओ घर में चले....।’’
‘‘नहीं रहमत खान इस हमले से एंकधार में क़्या तबाही आई है मैं देखना चाहता हूं’’ मैंने कहा ।
‘‘खान तुम पागल तो नहीं हो गया ?’’ नहीं खान आमरीकी फिर वापस आएगा और फिर एंकधार पर बम बरसाएगा... रातभर बरसाता रहेगा... ऐसे में घर के बाहर रहना खतरा है ... ।
उसकी बात में मुझे सच्चाई लगी ।
सोने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था ।
बच्चों को सुलकर हम आपसमें बाते करने लगे ।
‘‘रहमत खान तुम लेग कब तक इस तरह बमबारी का सामना करते रहोगे ... तुम लेगों में उनकी मुकाबल करने का सामर्थ और शाएिक़्त तो है नहीं फिर उनकी बात मनकर तुम लेगों ने जंग टालने की कोशिश क़्यों नही की ? मैंने पूछा ।
‘‘खान क़्या तुम समझता है हम शैतान आमरीका की बात मन लेते तो जंग टल जाता.. । नही खान हम जाहिल उस शैतान को अच्छी तरह समझता
है । उसे अपना ताकत बताने के लिए कोई मुलक चाहिए था जहा वह अपने हाथियारों का तजरूबा कर सके ! उसे आपकगानिस्तान मिल है । 11 सितंबर को जो उसकी ताकत का गुरूर टुटा था, उसकी धोनस बनाने के लिए हम जैसे नंगे, भूखे, गरीब आपकगानियों का खून बहाना उसे जरूरी था । वह शैतान कहता है, आमरीका में जो हुआ उसाम ने किया अरे जब उसाम आमरीका में घुसकर यह सब कर रहा था तो क़्या उसका खुफिया एजन्साी सो रहा था । आगर उसाम ने यह किया भी तो उसमें तालिबान, गरीब आपकगानी आवाम का क़्या कसूर, अरे कल तुमहारा विश्व हिन्दू पारिषद का कोई सिर फिरा कोई जहाज आगवा करके राम मंदिर बनाने व्ड़ाईट हाऊस पर गिरा दे तो हिन्दूस्तान का क़्या होगा ? हिन्दूस्तान में बी.जे.पी. का हुूकमत है जो विश्व हिन्दू पारिषद का साथी है । फिर आमरिका हिन्दूस्तान पर हमल करेगा तो क़्या यह दुरूस्त होगा ?
‘‘रहमत खान यह तुमहारी मेरी नजर में ना दुरूस्त होगा’’ परंतु दुनिया की नजर में सही । दुनिया ताकत के सामने झुकती है । जिस तरह आज आमरिका के सामने झुक गई है । दुनिया के एक देश ने भी इस बात का विरोध नहीं किया कि उसाम के किए सजा आपकगानिस्तान को देना गलत है । तुमने जिस बात की मिसाल दी है यदि ऐसा कुछ हुआ तो भरत और भरतीय जनता को भी वही कुछ भाोगना पडेगा जो आपकगानी जनता भाोग रही है । बातें ज्यादा देर तक नहीं चल सकी ।
फिर आक्रमण हुआ था ।
फिर वही धमके, वही चीख व पुकार ।
रहमत खान की पत्नी और बच्चों की भायभीत चीखें मेरे कलेजो को फाड रही थी ।
बाहर एक शोर मचा हुआ था ।
‘‘भागो - भागो, सुरक्षित स्थानों पर छिप जाओ हमल हुआ है’’ बच्चों और महिलओंकी भाय में डूबी चीखें ।
मैंने कभी युद्ध नहीं देखा था ना कभी हवाई हमले का कोई अनुभव था। शायद उन लेगों ने भी हवाई हमल पहली बार देखा था ।
उनकी जो स्थिति थी मेरी भी वही स्थिति थी बालिक मैं तो सोचने लगा था मैंने जानबूझकर यह मुसीबत मेल ली है । हर कोई मुझे रोक रहा था । मैं वहां ना जाऊं वहां की स्थिति अच्छी नहीं है । युद्ध कभी भी भाडक सकता है परंतु मेरी लभा प्राप्त करने की स्वार्थी मनोवॄत्ति मुझे ना रोक सकी थी । मेरा आनुमन था मैं आठा दस दिनों में काम निपटाकर वापस आ जाऊंगा मुझे पता नहीं था । पहले दिन ही युद्ध आरंभा हो जाएंगा ।
अब मैंने केवल अपने आपको संकट में नही डाल था बालिक अपने घरवालों को भी चिंता में डाल दिया था । कल जब वे टी.वी. पर एंकधार पर हुई बमबारी के चित्र देखेंगे तो मेरे बारे में क़्या क़्या सोचेंगे ?
सारी रात हवाई हमले होते रहे ।
सवेरे चारो ओर धुंआ और धूल छाई थी ।
लेग अपने अपने घरों से निकले और रात के आक्रमण से हुए विनाश को देखने लगे ।
फिर तो यह रोज की दिनचर्या हो गई । रातभर हवाई हमले होते और कभी कभी तो दिन में भी आमरीकी विमन गरजते आते बम और मिजाईले छोड छोडकर चले जाते ।
लेग शहर छोड छोडकर भाग रहे थे ।
रात दिन आतंक के साए में भाल कोई जी सकता है । दिनरात घायल सुविधा राहित आस्पतालों में पहुचते जहा उन घायलों को देखने के लिए ना डाक़्टर थे और ना उन्हे देने के लिए दवांए ।
घायलों को देखकर कलेजा मुंह को आता था । छोटे छोटे चार पांच साल के बच्चे, बुढाी औरतें । रहमत खान उन दृश्यों को देख देखकर जैसे पागल सा हो गया था ।
‘‘देखो कुमर खान, यह छ साल का बच्चा तालिबान का सिपाही है, उसाम का आतंकवादी है ।’’
‘‘आमरीका ने इस आतंकवादी को कैसा सजा दिया है... यह बूढाी औरत ने 11 सितमबर के हमले में उसाम का साथ दिया था ।’’
रहमत खान की जो स्थिति थी हर सोच विचार करने वाले की यही स्थिति हो सकती थी ।
यहां आने से पहले मैंने बहुत कुछ टी.वी. पर देखा था, आखबारों में पढा था । परंतु यहां आने के बाद ऐसा कुछ भी नहीं पाया था और शायद यहां जो कुछ हो रहा है बाहर वालों को पता भी नहीं चल रहा था ।
घर में खाने का सामन खत्म हो गया था । खाने का सामन नहीं मिलता था । संयुक़्त राळ्र की एक संस्था थी जो लेगों को खाने के लिए अपने गोदामें से अनाज देती थी ।
एक दिन उस पर भी बमबारी हुई । मिजाईल गिरे और खाने पीने का सारा सामन भंग हो गया । अब खाने के लिए कुछ नहीं था । रहमत खान के बीवी, बच्चे भी भूखे थे मैं भी भूखा था । एक दिन आस्पताल पर बम गिरे और आस्पताल के सैंकडो रोगी मरे गए । बम घरों पर गिर रहे थे । घर मलबों के ढेर बन रहे थे । उन में बच्चें, औरतें, बूढे, जवान दब कर मर रहे थे ।
‘‘यह है आमरिका का दहशतगर्दी के खिलपक जंग... दुनिया को दहशतगर्दी को मिटाने के लिए उफ़्या कदम... देखो कितने दहशतगर्द मरे जा रहे है.... वह आस्पताल का सब मरीज दहशत गर्द था । दहशतगर्द को खाना नहीं मिलना चाहिए इसलिए खाने का गोदाम तबाह कर डाल । अब इन घरों की बारी है । इसमे तालेबान, उसाम का साथी रहता है ना । कुमर खान आगर तुम यहां से जिंदा बचकर निकल जाओ तो दुनिया को जरूर बताना कि आमरीका ने किस तरह दहशतगर्दी खत्म किया । अरे 11 सितमबर को जो हुआ उसका तो सारी दुनिया ने मुखालेपकत किया । फिर यह जो हो रहा है बे कसूर छोटा छोटा बच्चा, बूढा, औरत लेग मरा जा रहा है इस पर दुनिया चुप क़्यों है । यह दहशतगर्दी नहीं है तो क़्या आमन पसंदी है ?’’
‘‘रहमत कान तुम अपने आपपर काबू रखो... नहीं तो तुम पागल हो जाओगे....’’ मैं उसे समझाता तो वह हताश होकर बैठा जाता ।
एक दिन बोल ।
‘‘खान - तुम कब यहां फंसे रहोगे... यहां रहे तो किसी दिन आमरिकी बमबारी का शिकार होकर तुम भी मरे जाओगे ... तुम यहां से काबुल चले जाओ। काबुल में इंडियन सि फारतखाना (दूतावास) वाल तुम्हें हिन्दूस्तान भेजने का कोई ना कोई इंतजाम कर देगा । तुम सस्ता मेवा खरीदने के ललच में यहां आया मगर तुम अपनी आंख से देख चुका है हर बाग से धुआं उठा रहा है । आमरिकियोंने उन्हे भी अपने बमें का निशाना बनाया है । हमरे साथ रहा तो तुमहारा भी वही आंजाम हो सकता है जो हमरा होने वाल है और एक मेहमन को एक पफ़्न के घर में कुछ हो जाए तो वह पफ़्न कयामत के दिन अल्लाहह पाक के सामने क़्या मुंह लेकर जाएगा । इसलिए खान कयामत के दिन
रहमत खान को शार्मिंदी करने की कोशिश मत करो तुम वापस हिन्दूस्तान चले जाओ ।’’
‘‘खान । आगर मौ वापस भरत जाना चाहूं तो तुम्हारे बताए रास्ते से भरत वापस जा सकता हूं... मगर मैं भरत नहीं जाना चाहता । मैं अब यहीं रहूंगा। तुम्हारे साथ जब तक यह युद्ध चलता रहेगा... मैं यहीं रहूंगा । इस युद्ध को देखोगे तुम लेग जिस तरह आतंकवाद को मिटाने के नाम पर आतंकवाद का शिकार बन रहे हो वह देखूंगा, भाोगूंगा । मैं गवाह रहूंगा । यहां पर हुए
आतंकवाद की एक एक घटना, एक एक शण का । तुम लेगों की गवाही तो शायद नजर आंदाज कर दी जाए । शायद मेरी गवाही पर दुनिया को विश्वास आ जाए कि आतंकवाद मिटाने के नामपर कितने बडे आतंकवाद को सहारा दिया गया था...... ।’’ द द
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