कहानी आतंक का एक दिन लेखक एम. मुबीन
जब वह घर से निकल तो सबुकछ नित्य के समन चल रहा था ।
बिल्डिंग का वाचमौन उसे देखकर खहा हो गया और उसने उसे सलाम किया । उसने सिर के संकेत से उसके सलाम का जवाब दिया । आगे बढ़ तो एस.टी.डी. बूथ में बैठे साजिद ने उसे सलाम किया । उस दिन उसके झेरॉक़्स, पी.सी.ओ में कुछ ज्यादा ही भीड थी और करने वालों की भी लईन लगी हुई थी ।
क़्लासिक आईल डेपो मे बैठे गुड्डो ने भी उसे सलाम किया उसके सलाम का जवाब देता वह सीढियों से नीचे उतरा ।
सामने आलू प्याज बेचनेवाले दुकानदारों की पारिचित शक़्लों और चेहरे दिखाई दिए ! वही रिक्शा, हाथगाडी, मेटर साईकल और स्कूटरों की रेल पेल और उनके हार्न का शोर ।
उनके बीचसे रास्ता बनाता वह बडी कफ़्न
ईसे आगे बढा ।
बिस्मिलल चिकन सेंटर पर चिकन खरीदने वालों की कतार लगी
थी । एक तख्ती पर आज का मूल्य लिखा था लटकती, तख्ती हवा के साथ गोल गोल घूम रही थी ।
उसके सामने वाली दुकान पर मूल्य एक रूपया कम था । सदगुरू होटल के बाहर मिठाई बनाने वाल प्याज़ के पकोडे तल रहा था । बडी सी थाल में वह जलेबियां, वडे और आलू के पकौडे पहले ही तल चुका था ।
गुलजार कोलड्राींक मे एक़्का दुक़्का ग्राहक बैठे शीतपेय का आनंद ले रहे थे ।
बर्फ की गाडी आ गई थी । बर्फ की बडी बडी लदियां उसमें से उतारी जा रही थी । बर्फ लेने वालों की भीड थी । जैसे ही कोई ग्राहक बर्फ की कीमत आदा करता दो आदमी बडी लोहे की कैची मे बर्फ की लदी पकडकर उसे रिक्शा में रख आते । मामू आबुजी की दुकान पर दूध लेने वालों की भीड थी । उसके सिरपर दूध के मूल्य की तख्ती हवा मे घूम रही थी ।
‘तीन रूपया पाव - दस रूपये का एक किले..’ ‘तीन रूपया पाव - दस रूपये का एक किले..’
टमटर बेचने वाले जोजोसे आवाज़ेंलगा रहे थे ।
‘भाई आस्सलम वाले कुम’ आवाज लगाते हुए आनवर और शकील ने नित्य के समन उसे सलाम किया ।
सलाम का जवाब देकर स्वयं को भीह के धक़्कों और नीचे फैले कीचह से बचाता वह आगे बढा । रिक्शा कतार में खडे आजीज ने मुस्काकर उसे सलाम किया ।
पुलिस स्टेशन के बाहर कई सिपाही खडे थे और एक सिपाही उन्हे उनकी डयूटी का एरिया बता रहा था ।
‘नमस्कार साहब’ एक सिपाही ने उसे सलाम किया ।
‘अरे पोतदार तुम... चले...!’ उसने उससे कहा ।
‘नहीं आज मेरी डयूटी नहीं है, आज शायद कोई दूसरी सिपाही आए....’ सिपाही ने उत्तर दिया ।
मिर्चवालों की दुकान के पास से गुजरते हुए उसे खांसी आ गई ।
उसने खांसी पर नियंत्रण पाया और आगे बढा । संगम ज्वेलर्स की दुकान भी खुल गई थी । राजदीप होटल के काउंटर पर बैठे संदीपने उसे नमस्कार किया और बाहर पूरी भाजी बनाने वाले आदमी को गाली देते हुए उसे जल्द आर्डर का मल बनाने के लिए कहने लगा ।
सिनेम की गली से होता वह पोस्ट आफिस तक आया। पोस्ट आफिस के बाहर, मनी आर्डर, रजिस्टर करने वालों की भीड थी ।
सईदी होटल के बाहर दो चार आवारा लडके बैठे आने जाने वालों को छेड रहे थे और आने जाने वाली लडकियों और स्रियों पर भाद्दे शब्द उछल
रहे थे । उन सबसे होता वह समय पर आफिस पहुंच गया । और आफिस के कामें मे लग गया ।
आफिस में उस दिन ज्यादा भीड थी काम का बोझ भी आधिक था ।
एक एक को निपटाते हुए कब दो तीन घंटे बीत गए पता ही नहीं चल सका ।
आचानक उसके एक साथी मोहन को उसके भाई का पकोन आया । पकोन पर बात करने के बाद जब उसे रिसीवर रखा तो उसके चेहरे पर हवाईयां उह रही थीं ।
‘क़्या बात है ?’ उसने मोहन से पूछा
‘‘भाई का पकोन था.. नाके पर किसी वकील को गोली मर दी गई है वह जगह पर ही मर गया - शहर मे भागदड मच गई है... दुकाने बंद हो रही है.. गडबड होने की शंका है । मेरे भाई ने कहा है कि मैं आफिस से आ जाऊं ।’’
यह बात सुनकर उसके मथे पर बल पड गए । उसने प्रश्नपूर्ण द़ष्टि से बॉस की और देखा ।
‘मैं पकोन लगाकर पूरी जानकारी का पता लगाता हूं ।’ कहते हुए बॉस ने रिसीवर उफ़्या दो तीन नंबर डायल करके झललकर रिसीवर रख दिया ।
‘‘टेलीपकोन डेड हो गया है ...’’
थोडी देर बाद चपरासी भी वापस आ गया । वह किसी काम से बाहर गया था ।
‘क़्या हुआ जाधव ?’ उसने पूछा
‘कुछ समझ में नहीं आ रहा है - पूरे शहर में भागदड नची हुई है । किसी वकील को गोली मर दी गई है । दुकाने बंद हो रही है... लेग घबराहट में उधर उधर भाग रहे है... पता चल है कि रिक्शा और गाडियों पर पथराव किया जा रहा है... मेरी आखों के सामने चार-पांच कांच फूटी रिक्शा आई है ... सबसे ज्यादा लपकडा नजराना के पास है...’
‘नजराना’ ! यह सुनते ही बॉस के चेहरे पर हवाईयां उडने लगी । ‘‘मेरी बेटी इस समय वहां पर टयूशन के लिए गई होगी ।’’
और वह घबराकर रिसीवर उफ़्कर फिर नंबर डायल करने लगा ।
संयोग से टेलीपकोन लग गया ।
‘‘मीना कहा है ? टयूशन के लिए गई है ? टयूशन का समय तो खत्म हो गया है... वह अभी तक वापस क़्यों नही आई ? सुना है उस क्षेत्र में बहुत गडबड चल रही है । तुरंत किसी को भेजकर उसे टयूशन क़्लास से ले आओ..’’ कहते उसने टेलीपकोन का रिसीवर रख दिया ।
परंतु उसके चेहरे पर चिंता के भाव थे । उसके बाद उसने घर टेलीपकोन लगाकर स्थिती का पता लगाने का प्रयत्न किया तब तक टेलीपकोन डेड हो गया था ।
आफिस से बाहर झांका तो सारी दुकानें बंद हो गई थीं । सडके सुनसान हो गई थीं । सडकों पर कोई वाहन, सवारी, दिखाई नहीं दे रही थीं । लेग दो-दो चार-चार की टोलियां बनाकर आपसमें बातें कर रहे थे ।
‘‘क़्या किया जाए ?’’ उसने बॉस से पूछा ।
‘‘आफिस बंद कर दिया जाए?’’
‘‘बिलकुल बंद कर दिया जाए । जलदी से बाकी बचे काम निपटा ले’’ बॉस ने कहा और फिर घर टेलीपकोन लगाने का प्रयत्न करने लगा ।
‘जाधव सामने के नसीम से मेबाईल ले आओ शायद उससे कोई संपर्क हो जाए’ बॉस ने चपरासीसे कहा ।
जाधव ने मेबाईल नहीं लया स्वयं नसीम मेबाईल लेकर आ गया ।
‘‘साहब सारे टेलीपकोन डेड हो गए है.. मैं भी कई स्थानों पर पकोन लगाने का प्रयत्न कर रहा हूं । आपको कौन सा नंबर लगाना है?’’
बॉस ने नंबर बताया नसीम ने नंबर लगाने की कोशिश की परंतु नंबर नहीं लग सका ।
‘लगता है सारे शहर के टेलीपकोन बंद कर दिए गए है ।’
सब काम समप्त करने में लग गए । उसने दो तीन बार घर टेलीपकोन लगाने का दोबारा प्रयत्न किया । संयोग से एक बार टेलीपकोन लग गया ।
‘क़्या स्थिति है ?’ उसने पूछा
‘‘यहां बहुत गडबड है सारी दुकानें बंद हो गई है । सड़क की दोनों ओर हजारों लेगों की भीड है जो एक दूसरे के विरोध में नारे लगा रहे है । मामला कभी भी बिगह सकता है ।’’
‘‘मैं घर आऊं ?’’ उसने पूछा ।
‘‘घर आने की मूर्खता मत करना सारे रास्ते बंद है । रास्तों पर लेगों की भीड है और जोश और क्रोधमें भारी भीड कभी भी कुछ भी कर सकती है । आप जहा है वहीं रहें । जब परिस्थिती सामन्य हो जाए तो घर आ जाना वरना आने की कोई जरूरत नहीं । आफिस के आसपास आपके बहुत से मित्र है । किसी के भी घर रूक जाईए और मुझसे संपर्क बनाए राखिए ’’ पत्नी ने उत्तर दिया ।
उसने रिसीवर रख दिया ।
आफिस बंद करने की तैयारी हो गई थी ।
मेहन का भाई स्कूटर लेकर आ गया ।
‘‘चले मैं चलता हूं’’ मेहन बोल ।
‘‘सूनो’’ उसने मेहन को टोका ‘‘पुराने पुल के रास्ते नहीं जाना... वहां खतरा है ।’’
‘‘नहीं मैं नए पुल के रास्ते जाऊंगा’’ मेहन बोल साहब और जाधव भी आफिस बंद करके जाने की तैयारी कर रहे थे । उनके घर आफिस के समीप थे ।
‘‘तुम क़्या करोगे ?’’ बॉस ने पूछा ।
‘‘पत्नी को पकोन किया था वह कहती है मैं घर आने की मुर्खता ना करूं । सारे रास्ते भीड से भारे है... लेगों के हाथों में हाथियार है। पथराव हो रहा है । रास्ते में कुछ भी हो सकता है । मैं जिन रास्तों से होकर घर जाता हूं वहां तो बहुत ज्यादा तनाव है । फिर उन रास्तों का हर व्यक्ति मुझे पहचानता है । जरा सी गडबडकी स्थिति में मेरी जान को खतरा पैदा हो सकता है ... ।’’
‘‘तो मेरे घर चले । परिस्थिति सामन्य हो जाए तो अपने घर चले जाना ।’’ बॉस ने कहा ।
‘‘नहीं मैं यहां रूकता हूं यदि जरूरत पडी तो आपके घर आ जाऊंगा।’’
आफिस बंद कर दिया गया ।
बास और जाधव चले गए ।
वह आफिस के सामने खडा होकर सुस्ताने लगा ।
उसी समय सामने से मुस्तफा आता दिखाई दिया ।
‘मुस्तफा क़्या बात है ?’ उसने पूछा ।
‘आपसे मिलने ही आ रहा था जावेद भाई । पूरे शहर में गडबड चल रही है आपकाघर जाना ठीक नहीं है । चालिए मेरे घर चालिए । रात में भी मेरे घर रूक जाईए । मैंने भाभी को पकोन किया था । भाभी ने कहा है मैं आपको घर आने ना दूं । अपने घर रोक लूं वहां बहुत गडबड है ।’
वह बातें करता मुस्तफा के साथ उसके घर की ओर चल दिया ।
‘गडबड आरंभा किस तरह हुई ?’
‘‘पता नहीं, वह वकील शहर के चौराहे से होता कोर्ट जा रहा था । आचानक दो मेटर साईकल सवारों ने उसे रोककर उसके सिर में गोली मर
दी । वह वहीं ढेर हो गया । होगी कोई पुरानी दुश्मनी या गेंगवार का चक़्कर... वैसे भी वह वकील कापकी काले कामें में शामिल था और कापकी बदनाम था । परंतु एक राजनैतिक पक्ष के केस भी लडता था । इसलिए उस पक्ष ने पहले राजनैतिक और फिर सांप्रदायिक रंग दे दिया ।
दुकाने बंद कराई जाने लगीं । दुकाने बंद ना करने वाले दुकानदारों को मरा पीटा जाने लगा । रिक्शा की कांचे पकोडी गई, रिक्शा उलटी कर आग लगा दि गई । विशेष रूप से दाढी वाले रिक्शा ड्राईवरों को निशाना बनाया जाता ।’’ क्रोधसे उसने अपने होठ भींचे ।
‘‘यह भी कोई तरीका है सामन्य सी बात है । निजी दुश्मनी या किसी और कारण से एक साधारण व्यक्ति की हत्या हुई होगी उसे तुरंत राजनैतिक और सांप्रदायाकि रंग देकर शहर की शान्ति भंग की जाए और नागारिकों की जान व मल से खेल जाए ...’’
दोपहर का भोजन उसने मुस्तफा के घर किया ।
एक दो बार उसने घर पकोन लगाने का प्रयत्न भी किया परंतु पकोन बंद होने के कारण संपर्क स्थापित नहीं हो सका ।
एक घंटे के बाद आचानक संपर्क स्थापित हो गया ।
‘‘यहां बहुत गडबड है । पत्नी बताने लगी ।’’ ‘‘हम बिल्डिंग की टेरिस पर गए थे । आसपास हजारों लेग जम है । वे आक्रमण करने की तैयारी कर रहे है । सामने वाली मस्जिद पर पथराव हो रहा है । इस्लामी होटल पर पथराव किया गया था और उसे लूटने और जलने की कोशिश की गई थी । परंतु होटल की गली में हजारों लडके जम हो गए थे उन्हों उत्तर में पथराव किया तो आक्रमणकारी भाग गए परंतु दोनों ओर से भाडकीली नारे बाजी जारी है । स्थिती कभी भी बिगड सकती है । आप इस ओर आने की बिलकुल मुर्खता ना करे । मुस्तफा के घर ही रूक जाए ...’’
‘देखो यदि तुम्हें बिल्डिंग पर खतरा अनुभव हो तो बच्चों को लेकर अपने मयके चली जाना ।’
‘यूं तो बिल्डिंग को खतरा नहीं है । परंतु जिस प्रकार सामने हजारों लेगों की भीड जम हो रही है कभी भी कुछ भी हो सकता है, ऐसा कुछ हो इससे पहले ही मैं अपने बच्चों के साथ मयके चली जाऊंगी ।’ पत्नी बोली ।
पत्नी का मयका ज्यादा दूर नहीं था । घर सुरक्षित रास्तों पर था । इसलिए उसे इस बात का संतोष था । पत्नी समय आने पर आराम से बच्चों को लेकर मयके चली जाएंगी जो कापकी सुरक्षित है। परंतु अपने घर का क़्या ?
कुछ गडबड हुई तो उसे लूटने और जलने से कौन बचा सकता है ?
उन्हे वह मकान लिए आठा महीने भी नहीं हुए थे । सारी जीवन की कमई, बँक से कर्ज, जेवरात बेचने के बाद उन्हों वह मकान लिया था और धीरे धीरे उसमें जरूरत की हर चीज सजाई थी। यदि वह घर लूट लिया गया ! या जल दिया गया तो ?
उसका दिल तेजी से धडकने लगा और मथे पर पसीने की बूंदे उभर आईं...
मुस्तफा ने टी.वी. चालू किया ।
टी.वी. के हर चैनल से शहर में होनेवाले हंगामें की खबरें आ रही थी।
‘‘शहर में एक वकील की हत्या के बाद एक राजनैतिक पक्ष के कार्यकर्ताओं का हंगाम, पथराव,तोडपकोड....’0ं खबरों में पहले उस वकील का संबंध उस पक्ष से इस हद तक बताया गया कि वह उस पक्ष के लिए केस लडता था ।
फिर समचार में उस वकील को उस पक्ष का कार्यकर्ता बताया जाने लगा ।
और आंत में उसे उस राजनैतिक पक्ष का अध्यक्ष बना दिया गया ।
‘‘एक राजनैतिक पार्टी के अध्यक्ष एक वकील की हत्या के बाद शहर में सख्त तनाव, पथराव की घटनाएं, दुकानें लूटने और छुरे बाजी की वारदाते... आमेल काटेकर नामक एक व्यक्ति को मार मार के लेगों ने आधमरा कर दिया... श्री प्रोवीजन नामक दुकान को आग लगा दी गई । महादेव मेडिकल लूट ली गई।’’
जैसे समचार हर चैनल देने लगा और उसे सुन सुनकर तनाव और हिंसा बढने लगी । स्थिती गंभीर होती जा रही थी । उसका मन डूब रहा था ।
उसे लगा शहर बारूद का ढेर बन चुका है और अब वह फटा
चाहता है ।
आंखो के सामने गुजरात के दंगो के चित्र और समचार नाच रहे थे ।
लेगों को जिंदा जलया जाना... चुन चुनकर लेगों को मरना... उनकी संपती भंग करना, उनके घरों, पूजा स्थले को मंदिरों में पारिवार्तित करना।
उसका मन डूबने लगा और आखों के सामने आंधकार सा छाने लगा क़्या हमरा यही भाग्य बन गया है ?
बाहर लेगों की भीड टोलियों के रूप में जगह जगह जम हो रही थी । हर कोई प्लान बना रहा था । यदि दंगा आरंभा हो तो क़्या किया जाए कुछ बचाव की तरकीबें सोच रहे थे तो कुछ लूटमर का प्लान बना रहे थे । तो कुछ प्रातिकात्मक आक्रमण के लिए रणानिती तय कर रहे थे ।
जो लेग उस स्थान को असुरक्षित अनुभव कर रहे थे उस स्थान को छोडकर सुरक्षित स्थानों पर जा रहे थे ।
कुछ स्थानों पर पुलिस का नाम व निशान भी नहीं था तो कुछ स्थानों को पुलिस छावनी बना दिया गया था । ऐसा कुछ लेगों की सुरक्षा के लिए किया गया था । तो कुछ क्षेत्र के लेगो को आजाद छोड दिया गया था । वे जो चाहे कर सकते है उनको रोकने वाल कोई नहीं है । तो कुछ क़ोत्रों को इस प्रकार सील कर दिया गया था कि वहां पंछी भी पर नहीं मर सकता था । और वह कुछ नहीं कर सकते था । शहर से नापसंद घटनाओं के समचार निरंतर आ रहे थे।
हर समचार के बाद ऐसा अनुभव होता था स्थिति गंभीर से गंभीर होती जा रही है । तनाव और हिंसा जारी है ।
उसने कई बार घर पकोन लगाने का प्रयत्न किया परंतु संपर्क स्थापित नहीं हो सका । जिसके कारण उसकी चिंता बढती जा रही थी । पत्नी घर में अकेली है उसे मयके जाने के लिए कहा था । पता नहीं वह मयके गई भी है या नहीं ?
उसे मयके चले जाना चाहिए । परंतु वह मयके नहीं जाएगी। घर में जो जान अटकी है ।
इतनी कठनाईयों से उन्हों अपना घर बनाया है । घर की एक एक चीज में अपना खून पसीना लगाया है । घरकी हर ईंट में उनके आरमन सपने चुने हुए है । भाल वह उस घर को छोडकर किस तरह जा सकती है ?
उसे भाय है - उसके यह सारे अरमान से सपने जलकर राख ना कर दिए जाए । यदि वह ऐसा सोच रही है तो यह उसकी मूर्खता है यदि वह घर में रही तो ना घर बचा सकेगी और ना अपने आप और बच्चों क बचा सकेगी ।
एक निर्बल स्त्री भाल अपने आपको किस तरह बचा सकती है? हजारों घटनाएं उसके मस्तिष्क में चकरा रही थीं । ऐसी स्रियों को वासना का शिकार बनाकर जिंदा जल दिया गया । बच्चों को संगीनों और त्रिशूलों से छेदकर जल दिया गया ।
‘नहीं’ उसके होठोंं से एक चीख निकल गई ।
‘क़्या हुआ ?’ मुस्तफा ने चौंककर पूछा ।
‘कुछ नहीं एक भायानक सपना देख रहा था’ ।
‘जागते हुए’ मुस्तफा ने मुस्कराकर पूछा ।
‘जो कुछ हो रहा है वह एक भायानक सपने से भी घिनावना है । ऐसी स्थिती में जागना और सोना सब बराबर है..’ उसने कहा
मुस्तफा उसकी बात समझ नहीं सका ।
शामको उसने तय किया वह थोडी दूर तक स्थिती का निरशण करके आएगा । मुस्तफा ने उसे ऐसा करने से रोका । वह घर जाने की मुर्खता ना करें।
उसने मुस्तफा को विश्वास दिलया वह घर जाने का प्रयत्न नहीं करेगा। थोडी दूर गया तो उसे एक पारिचित मिल गया ।
‘जावेद भाई आप घर जाने का प्रयत्न ना करें.. इसमें बहुत
खतरा है । आपकाघर जिन रास्तों पर है वे खतरों से भारे है । अच्छा यही है आप रात में यहां रूक जाए । वैसे स्थिति सामन्य हो गई है। परंतु कब क़्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता...’
‘नहीं मैं घर नहीं जा रहा हूं बस यूंही थोडी दूर तक टहलकर वापस आ जाऊंगा’ उसने उत्तर दिया ।
‘वैसे आप सुरक्षित रास्तों से घर जाना चाहे तो घर जा सकते है । उन रास्तों पर कोई खतरा नहीं है । मैं आपको घर छोड देता हूं ...।’
उसने उसे मेटर साईकल पर बिफ़्या और सुरक्षित रास्तों से होते वे आगे बढे ।
उन रास्तों मेहललों से गुजरते उन्हे अनुभव हो रहा था जैसे वहां पर बहुत कुछ हुआ है ।
हर जगह भीड जम हुई थी । राजनेता और वॄद्ध, बुजुर्ग लेग भीड को अपनी अपनी तौर पर समझाने का प्रयत्न कर रहे थे । और भीड को कुछ अनुचित करने से रोक रहे थे ।
क्रोधऔर उत्साह में भारे नवयुवक उनसे तरह तरह के प्रश्न पूछ रहगे थे और अपने पर बार बार होने वाले आन्यायों का हिसाब मंग रहे थे ।
घर के समीप पहुंचा तो पीछे वाली गली में हजारों लेगों की भीड जम हुई थी ।
जिन्ड़े दो लीडर समझाकर स्वयं पर नियंत्रण रखने और धैर्य से काम लेने के लिए कह रहे थे ।
घर आया तो उस पर पत्नी भाडक उठी
‘इतना समझाने पर भी आप नहीं मने । आपको समझायाथा ना आप घर ना आएं? अपनी जान खतरे में डालकर चले आए । यदि कुछ अनुचित हो जाता तो ..?’
‘नहीं ऐसी बात नहीं है मैं स्वयं को पूरी तरह सुरक्षित अनुभव करने के बाद ही यहां आया हूं एक पारिचित मिल गया था उसने मेटर साइकिल पर यहां तक लकर छोडा...’
रात तक स्थिती सामन्य हो गई थी । यह तय था रात आतंक और तनाव में गुजरेगी ।
परंतु आतंक का एक दिन तो बीत गया था । द द
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्लासिक प्लाजा़, तीन बत्ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल 09322338918
Email:- mmubin123@gmail.com
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Saturday, October 8, 2011
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