Saturday, October 8, 2011

Hindi Short Story Worli Gutter ke Upar By M.Mubin

कहानी वरली गटर के उपर लेखक एम. मुबीन
उस रात समुद्र कुछ ज्यादा ही आक्रोश में था । क्रोधमें भारी लहरें बलखाती उठतीं और आकर गटर की दीवार से अपना सिर पटककर अपने आस्तित्व का आंत कर देती ।
कोई कोई लहर का पानी, या लहर का कोई आंश आकर उसके झोंपडे से टकराता । लकडी की पकलटियों से बनी झोंपडे की दीवार कांप उठती, उसके छेदों से पानी भीतर आकर उसके शरीर से टकराता तो उसके शरीर में एक झुरझुरी सी दौह उठती ।
झोंपडे का पूरा पकर्श पानी से भीगा था । कहीं भी इतना स्थान भी नहीं था कि वह पैर रख सके । उसने पहले ही बिस्तर को समेट कर एक कोने में रख दिया था । और भीगे पकर्श के एक कोने में बैठा कमरे में बढते पानी के स्तर को देख रहा था ।
उसके लिए यह कोई नया अनुभव नहीं था । साल में कभी कभी तो सैंकडो राते उसे इस प्रकार से गुजारनी पडती थी ।
और विशेष रूप से वर्षा की रातें, आमवस और पूनम की रातें जब समुद्र पूरे उ फान पर होता है । समुद्र का तो ठीक है आनुमन लगाया जा सकता है कि ज्वार भाटा का समय क़्या है और समुद्र किस स्थिति में होगा ।
परंतु गटर के बारे में कोई कैसे आनुमन लगा सकता है ? वह तो कभी भी उबल सकती है, और उसके गंदे पानीका स्तर बढ सकता है । स्तर बढने और गटर उबलने के कारण वह पानी समुद्र में जाने के साथ साथ उसके घर में भी घुस सकता है । यदि समुद्र का सारा पानी भी झोंपडे में भर जाए तो आधिक कळ की बात नहीं थी । ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता था कि खारा पानी शरीर से टकराने के बाद त्वचा में खुजली पैदा करता था और सारे शरीर को खुजाना पडता था और खुजली के स्थान पर नमकीन पानी लगता था तो खुजली की तीव्रता इतनी बढ जाती थी जैसे किसी ने आग पर पेट्रोल डाल दिया हो । परंतु गटर के पानी का घर में घुसने का प्रकोप ही कुछ आलग था । मस्तिष्‍क को फाड देने वाली दुर्गंध में बसा पानी और दुर्गंध भारे गीली मीटटी , और दुर्गंध भारा कीचड जब घर में घुस आता था तो, सापक पानी से धोने के बाद भी दो, दो, तीन, तीन दिनों तक घर से दुर्गंध नहीं निकलती थी । दुर्गंध सहने का तो खैर वह आफ्रयस्त हो चुका था । उसके नथुने अब सुगंध और दुर्गंध का अंतर ही अनुभव नहीं कर पाते थे । उसे अनुभव होता था जिस प्रकार मुंह में थूक रहा है । और उस थूक का एक स्वाद है जो मनव जीवन का एक आंग है उसी प्रकार नत्थुनों में दुर्गंध का रहना भी जीवन का एक रंग है । उसके जीवन का एक आंग गत एक वर्ष से वह यह सब सह रहा था और इन बातों का आफ्रयस्त हो गया था उसके लिए यह कोई आसामन्य बात नहीं थी ।
उसने अपना ठिकाना ऐसे स्थान पर बनाया था जहा ठिकाना बनाने की कोई कल्‍पना भी नहीं कर सकता है ।
वरली गटर के उपर उसका झोंपडा था । वरली की वह एक गटर, जिसमें सारे मुंबई शहर की गंदगी बहकर आती है और समुद्र से मिलती है । गंदगी में तो सभी कुछ होता है । मल, मुत्र, एसीड, सुगंध, दुर्गंध, इतर केमीकल इत्यादी ।
सारी मुंबई का ूकडा, करकट, कचरा हजारों गटरों से बहता, धरती के भीतर ही हजारों प्रकार की केमिकल प्राकिया करता, नए नए पद्यार्थी में परिवार्तित होता उस महागटर तक पहुंचता था जो इसे समुद्र के वश में उंढेल देती थी ।
वरली में इस प्रकार की कई गटरे है, उनमें से कुछ का मुंह केवल समुद्र में खुलता था । परंतु शायद वह एक मत्र ऐसी गटर थी जो पता नहीं कहा से भूगर्फ्रा मर्ग से आती थी परंतु समुद्र से 100 मिटर के लगभाग खुल कर किसी नाले का रूप धारण कर लेती थी और फिर वह नाले के रूप में समुद्र से मिलती थी ।
उस गटर की चौडाई 20 फुट के लगभाग होगी । गटर के दोनों और सिमेंट कां#कीट की दीवारे थीं और दीवारों से दोनों ओर की बिल्डिंग के एंकपाऊंड की उंची दीवारों के बीच, 15, 20 फुट की खाली जगह थी । जो गटर के उबलने से गटर के साथ आई गंदगी से भारी हुई थी ।
मुंबई जैसे महानगर में इतनी बडी खुली जगह, इसकी तो कोई कल्‍पना भी नहीं कर सकता है । परंतु गटर के दोनों ओर की जगह खुली थी और बरसों से खुली थी ।
उस जगह पर ना तो किसी ने कब्जा करके अपना घर बनाया था ना दुकान शुरू की थी ना अपना सामन रखने के लिए गोडावून बनाया था । उस क्षेत्र में इन चीजों के बनाने की कल्‍पना करना तो दूर उस क्षेत्र में प्रवेश करने की कल्‍पना तक कोई नहीं कर सकता था ।
सारी मुंबई की सडांध और दुर्गंध का सहने की शाएिक़्त किसी भी इन्सान में नही थी । परंतु उसने वही झोंपडा बनाकर उस कल्‍पना के परे लगने वाली बात को झुटल दिया था । और वह गत एक वर्ष से रह रहा था इस बीच उसका आनुकरण करके शेष खुली जगह पर किसी ने भी झोंपडा बनाने का साहस नहीं किया था ना किसी ने उसे झोंपडा बनाने पर टोका था ।
उसने झोंपडा बिल्डिंग के एंकपाउंड की दीवार से लगकर समुद्र की दीवार से लगकर बनाया था । गटर की दीवार से 10-15 फुट दूर ।
वहां गटर की दुर्गंध सामन्य दीनों में कम पहुंचती थी । समुद्र की खारी हवाओं के झुक़्कड ज्यादा चलते थे । परंतु गटर जो गंदगी लकर दोनों ओर उंडेल देती थी उस गंदगी से बचना तो आसंभाव सा था । वह उस गंदगी के बीच से लख आने जाने के लिए रास्ता बनाता था । दो-चार घंटे के बाद गटर की नई गंदगी उस रास्ते का स्थान ले लेती थी । उसे उसी गंदगी से आना जाना पडता था ।
वही था जो वहां आता जाता था । दूसरा कोई उस क्षेत्र में प्रवेश करने का दुस्साहस नहीं करता था । जैसे वह एक निषिध क्षेत्र हो और उस क्षेत्र में केवल उसी को प्रवेश करने की आनुमती हो । वह स्थान एक वर्ष पूर्व आचानक एक दुर्घटना के कारण खोज निकाल था ।
दुर्घटना भी सामन्य सी थी ।
एक रात वह अपने दो-चार पारिचितों के साथ फुटपाथ पर सो रहा था। रात के 2 बजे के समीप जब वे सब गहरी नींद में सोए हुए थे आचानक एक पुलिस जीप आई और सिपाही उनपर डंडे बरसा कर उन्‍हे जगाने लगे जो जाग जाता उसे पकडकर जीप में डाल देते ।
दो-तीन डंडे खाने के बाद उसकी भी आंख खुल गई । समीप था कि दो सिपाही पकडकर उसे भी जीप में डालते, खतरे को अनुभव करके वह सिर पर पैर रख कर भागा । सिपाही भी उसके पीछे दौडे । वह सरपट भागा जा रहा था । उसका आनुमन था कुछ दूर उसके पीछे आकर सिपाही वापस चले जाएंगे परंतु सिपाहियों ने भी उस दिन शायद तय कर लिया था कि वे उसे आज हवालत में डालकर ही रहेंगे । इसलिए वे भी उसके पीछे जान तोडकर भाग रहे थे ।
अपने पीछे सिपाहियों का इस प्रकार दौडना उसके मस्तिष्‍क में खतरे की घंटिया बजा रहा था । यदि वह पकडा गया तो सिपाही उन्‍हे इस प्रकार कळ पहुंचाने का बदल जरूर ले ंगे । उसके सारे शरीर पर लफ़्यिों के दाग लगाकर और फिर पता नहीं कौनसा आरोप लगाकर जेल में डाल दे । किसी पर पोटा लगा देना या किसी को इन्काउंटर में मर डालना मुंबई पुलिस का तो बाए हाथ का खेल है । इसलिए आज इनसे बचना बहुत जरूरी है । बस इसी विचार के आते ही वह गटर के बाजू की खाली जगह में घुस गया ।
वहां बहुत अंधेरा था । उसे कोई देख नहीं सकता था । परंतु वहां घुसते ही दुर्गंध का एक तू फान उसके मस्तिष्‍क में घुसा और उसे अनुभव हुआ यह दुर्गंध का तू फान उसके मस्तिष्‍क की धाज्जियां उडा देगा । परंतु एक संभावित खतरे से बचने के लिए वह अपने पैरों के नीचे की गंदगी को रौंदता आगे बढा जा रहा था ।
होश उस समय आया जब समुद्र से एक लहर उफ़्लाती हुई उठी और ‘शडाप’ से किनारे पर बनी दीवार से टकराकर अपने आस्तित्व का आंत कर गई और उसे फ्रिगो गई । ‘बापरे ... आगे तो समुद्र है....’ वह बडबडाया और वही रूक गया ।
उसने पीछे मुडकर देखा । सामने घोर अंधेरा था कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था । सिपाही गटर की दुर्गंध सहन ना करके वापस चले गए थे ।
अंधेरे में टटोलकर वह आगे बढा और बिल्डिंग के एंकपाउंड की दीवार से पीठा लगाकर बैठा गया । उसके चारों ओर विचित्र दृश्य था । एक ओर शोर करता समुद्र, उसकी लहरे, और शरीर से टकराता खारा पानी ।
तो दूसरी और गंदगी, गटर से उठती दुर्गंध और दूर दूर तक पैकली हुई गंदगी का ढेर ।
वह दीवार से पीठा लगाए सो गया । आंख खुली तो सूरज चढ आया था। अब उसके सामने हर दृश्य स्पळ था ।
एक और मौजें मरता नील समुद्र, तो दूसरी और सारी मुंबई की गंदगी जम करके लने वाली और उस गंदगी को समुद्र में छोडने वाली वह गटर और उसके चारों ओर पैकली गंदगी और वह दीवार जिस से पीठा लगाकर वह बैठा था ।
सूरज के चढने के साथ दुर्गंध की तीव्रता भी तेज होने लगी और समुद्र की खारी हवा का खारापन भी बढने लगा ।
गंदगी को रौंदता हुआ वह सडक पर आया तो दुर्गंध का बसेरा बना हुआ था । अपने निश्चित स्थान पर आकर उसने पता लगाया तो पता चल कि उसके चार साथी पकडे गए थे । पुलिस आज भी इस स्थान पर छापा मरने वाली है । वह डर गया । रात वह बच गया परंतु आज रात बच नहीं पाएगा ।
उस दिन वह काम पर नहीं गया । दिनभर वह किसी सुरक्षित ठिकाने के बारे में सोचता रहा । दिनभर सोचने के बाद उसे उस गटर से सुरक्षित स्थान और कोई दिखाई नहीं दिया । शाम से पहले उसने अपना सामन उफ़्या और उस गटर की ओर चल दिया ।
रात होने से पहले दीवार से लगकर उसने सापक स फाई करके सोने उठाने बैफ़्ने के योग्य ठिकाना बना लिया था ।
दो-चोर दिन उसके आराम से भी गुजरे और उसने स्वयं को उस वातावरण के आनुरूप ढालने का प्रयत्न भी किया ।
गटर की गंदगी और दुर्गंध का आदी बनना और समुद्र के पानी और हवाओं के थपेडों को सहना । दिनभर वह अपना काम करता था । काम क़्या था यही मजदूरी । रात वहां आकर लेटता तो इतना थका हुआ होता था कि थकान के कारण तुरंत नींद लग जाती थी । रात में एकाधबार आंख खुली तो खुली वरना उसी समय आंख खुलती थी जब पौ पकट जाती थी ।
वह मुंबई के उन लखों लेगों में से एक था जो पेट भरने के लिए मुंबई आए थे किसी काम की खोज में । उन्‍हे काम तो मिल जाता था, पेट भी भर जाता था, परंतु उनके पास सिर छिपाने के लिए कोई स्थान नहीं होता था और वह इधर उधर सोकर अपनी रात गुजार देते थे । परंतु वह भाग्यशाली था उसे सो ने के लिए ठिकाना मिल गया था ।
उसने अपने एक दो साथियों को उस ठिकाने के बारे में बताया तो वे उस पर बरस पडे ‘सरजू तू पगल गया है । उस गंदगी में जाकर सोता है । दुर्गंध से किसी दिन मर जाएगा । स्वयं तो मरने पर उतारू है, हमें भी मरना चाहता है । अरे हम वहां सोना तो दूर कदम भी नहीं रख सकते ।’
इस प्रकार उसके साथ वहां रहने कोई भी तैयार नहीं हुआ ।
इस बीच उसे नए अनुभव हुए । कभी समुद्र की लहर दीवार तक आ जाती और उसे पानी में फ्रिगो देती । तो कभी जब गटर उबलती तो उसका गंदा पानी और गंदगी उसे भी फ्रिगो जाता ।
उनसे बचने के लिए उसने वहां एक छोटी सी झोंपडी बनाने की सोची। कुछ लकडी के टुकडे, प्लास्टिक, बांस इत्यादी उसने जम किए और एक मस के कठोंर पारिढ़ाम से अपने लिए उस स्थानपर एक झोंपडा बना लिया । अब रात या दिन में उसे समुद्र की लहरें फ्रिगों नहीं पाती थी । ना गटर की गंदगी उसके घर के भीतर आ पाती थी । हा कभी कभी गंदा पानी जरू जा जाता था ।
बाजू वाली बिल्डिंग के एक इलेएिक़्ट्रक पोल से उसने वायर जोडकर अपने झोंपडे मे बिजली भी ले ली और एक पंखा भी लगा लिया । बिल्डिंग के एक नल से प्लास्टिक का पाईप जोडकर उसने अपने घर में पानी का प्रबंध भी कर लिया ।
अब ना उसे बिजली की कमी थी और ना पानी की । दिन भर वह अपना काम करता था और रात को आकर सो जाता था ।
फिर एक दिन उसने अपना मेहनत मजदूरी वाल काम भी छोड दिया। क़्योंकि काम तो उसके चारों और बिखरा हुआ था ।
गटर अपने दोनों ओर जो गंदगी पैकल जाती थी उस गंदगी में प्लास्टिक की बोतले, चीजें और पता नहीं क़्या क़्या होता था ।
वह उस गंदगी से वे चीजें जम करता उन्‍हे सापक करके फ्रांगार वालों को बेचता तो उसे आच्छे खासे पैसे मिल जाते थे ।
‘सूरज बाबा’ उसने सोचा ‘जब घर के सामने इतना अच्‍छा काम हो तो फिर काम के लिए इधर उधर भाटकना मुर्खता नहीं तो और क़्या है ।’
परंतु जरूरी नहीं था कि गटर रोजाना अपने साथ जो गंदगी लकर पैकलए उनमे वे चीजे मिले ही । कभी कभी तो सारी पैकलई हुई गंदगी उथल पुथल करने के बाद किसी वस्तु का एक टुकडा नहीं मिलता था । और आंखो के सामने ढेर सा सामन बहते हुए समुद्र में जाता दिखाई देता था ।
उसका भी उसने एक मर्ग निकाल दिया ।
जब भी उसे गटर में कोई बडा सामन बहता हुआ दिखाई देता वह अपनी पीठा को रस्साी बांद कर गटर में ूकद पडता था । गंदगी में तैरना लेग कहते है बडे दिल जिगर का काम है । गंदगी दलदल के समन अपने भीतर हर वस्तु को खेंचती है फिर गंदगी, दुर्गंध, मल, मुत्र ।
परंतु वह तो इन चीजों का आदी हो गया था । उसके लिए सुगंध, दुर्गंध का आस्तित्व ही समप्त हो गया था ।
जहा तक दलदल में डूबने की बात थी कमर में बंधी रस्साी उसे डूबने नहीं देती थी । यह काम उसके लिए बहुत लभाकारी था । क़्योंकि गटर से इस प्रकार उसके हाथ कभी कभी ऐसी चीजें भी लग जाती थी जो हजारों रूपयों में बिकती थी ।
इस प्रकार उसका काम धंदा भी अच्‍छा चल रहा था । नल में 24 घंटे सापक पानी आता था इसलिए गटर से निकलने के बाद जब उस पानी से स्नान कर लेता था तो शरीर से सारी गंदगी दूर हो जाती थी ।
यदि नल नहीं भी आ रहा होता था तोभी कोई समस्या नहीं थी ।
समुद्र की दीवार के पास खडा हो जाता तो बार बार फिर उठाने वाली विद्रोही लहरे स्वयं ही उसे फ्रिगों के उसके शरीर की सारी गंदगी सापक कर देती थी ।
उस रात ठीकसे सो नहीं सका और सवेरे आंख खुल गई । नाश्ता करने के लिए बाहर आया तो फ़्फ़्कि गया । वह स्थान जहा पर गटर भूगर्फ्रा से निकलकर नाले के रूप में समुद्र की ओर बढती थी वहां भीड थी । वह भी भीड में शामिल हो गया ।
दो-तीन टी.वी. के कैमरा मेन भी थे और कुछ नेता टाईप के लेग
थे । टी.वी. वाले गटर के हर कोने से चित्र ले रहे थे कैमरे के लौन्स दुरूस्त करके गटर, और गटर की गंदगी को अच्‍छी तरह अपने कैमरों में कैद करने की कोशिश कर रहे थे ।
एक कैमरा मौन नेता लेगों के भाषण रिकार्ड करा रहा था
‘यह है वह गंदगी का ढेर, वह गटर जो सारे शहर की गंदगी लकर यहां समुद्र में डालती है और समुद्र को प्रदुषित करती है । समुद्र के प्रदूषण का आर्थ है पर्यावरण के संतुलन को बिगाडना और इस संतुलन के बिगडने का आर्थ है धरती का आंत... तो यह सरकार इस धरती के आंत के पीछे लगी है । यह मानवता को धरती से खत्म करने की घिनौनी साजिश है । हमरी मंग है इस घिनौने षडयंत्र को रोका जाए शहर का गंदा प्रदुषित पानी कहीं और डाल जाए। समुद्र को प्रदुषित होने से बचाया जाए इसके लिए हम आंदोलन करेगें । हमें इस आन्दोलन के लिए जनता का सहयोग चाहिए ।
‘‘सभी नेताओं के भाषण हो गए तो किसी की नजर उसपर पडी । पूछने पर जब उसने बताया कि वह गटर के उपर बने उस झोंपडे में रहता है । तो टी.वी. वालों की बांछे खुल गई तुरंत उसे खेंचकर टी.वी. के सामने कर दिया गया ।’’
‘‘यह सरजू जी है जो गत एक वर्ष से इस गटर के उपर रह रहे है इस गटर द्वारा क़्या क़्या गंदगी समुद्र में मिलती है । यह हमें बेहतर तौर पर बता सकते है..’’ उसके बाद टी.वी. वालों ने उस पर प्रश्नो की वर्षा कर दी ।
वह अपनी टूटी फूटी भाषा में उनके प्रश्नो का उत्तर देता रहा ।
जाते समय वे उससे कह गए
‘शाम को टी.वी. देखना तुमहारा भी बयान आएगा’ परंतु वह टी.वी. नहीं देख सका । उसके घर टी.वी. नहीं थी ।
दो तीन दिन बाद पता चल कि हर चैनल उस गटर के बारे में कार्यक्रम दोहरा रहा है नेता लेग के बयान आ रहे है । और कभी कभी उसे भी टी.वी. पर दिखाया जाता है ।
अब आखबार वाले भी जागे । गटर के किनारे कैमरा वालों की भीड सी रहने लगी कोई भीतर घुसने का साहस नहीं करता था । दूर से ही गटर के चित्र लेकर चले जाते थे ।
गटर के बारे में धरने दिए जाने लगे और मेर्चे निकलने लगे ।
विपक्ष ने और कुछ विधायकों ने विधान सभा में इस विषय पर सी.एम.को बुरी तरह घेरा और दो घंटे सदन की कार्यवाही चलने नहीं दी विवश होकर सी.एम. ने बयान दे दिया वे जांच करके इस संबंध में तुरंत निर्णय लोंगे । उन्‍हों जांच का आदेश दे दिया । अब गटर के आरंफ्रिक छोर पर एक मेल सा लग गया था ।
बडी बडी कीमती गाडियां वहां आकर रूकती उनसे कीमती वस्र पहने मेटे ताजे लेग नाक पर रूमल रख कर उतरते । एक उचटती सी द़ष्टि गटर और उसकी गंदगी पर डालते और जाकर सामने की फाईस्टार होटल में बैफ़्कर पता नहीं क़्या बातें करते । कभी कभी सूरज की तरह कोई गंदा आदमी भीतर आता और गटर के नमूने जम करके उन साहबों को दे देता । कभी गंदगी के ढेर से थोडी सी मिटटी लेकर पॅकटों में पैक करके उन्‍हे दे देता ।
यह चीजें प्रयोगशालओ में भेजी जाएगी । और पता लगाया जाएगा इनमें कौनकौनसे तत्व है जो प्रदूषण को बढाते है या जो समुद्राी और मनवी जीवन के लिए हानीकारक है । पूछने पर उसे उस व्‍यक्तिने विजयी आंदाज में बताया ।
क़्या चल रहा था उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था । परंतु इस बात का उसे आनुमन हो रहा था उस पर आपकत आने वाली है । इन गटरों को यहां से हटाने के लिए यह आन्दोंलन चल रहा है ।
उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था । इन गटरों को यहां से हटाने की बात क़्यों की जा रही है । यह गटरें तो यहां पचासों सालों से है । अब तक किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया । किसी ने आन्दोलन नहीं किया कि यहां से इन्‍हे हटाया जाए ।
अब जब उसने अपना सिर छिपाने के लिए यहां पर एक सुरक्षित ठिकाना बना लिया है इन गटरों को यहां से हटाने की बात की जा रही है और फिर जरूरी नहीं कि इन गटरों से सिर्फ गंदगी ही आए ।
कभी कभी तो इन गटरों से दूध भी आता है । दूध जो सडकों पर दुकानों मे 20 रूपया लिटर मिलता है । परंतु लखों लीटर दूध इन गटरों में बहकर आता है और समुद्र से मिल जाता है । उसने जब इस बारे में एक विद्वान से पूछा था तो उसने बताया था
‘दूध बनाने वाली एंकपानियां दूध की कीमतों को स्थिर रखने के लिए जरूरत से ज्यादा आया दूध गटरों में बहा देती है । यदि वे वह दूध बाजार में बेचे तो ज्यादा दूध के कारण दूध की कीमते गिर जाएगी और उन्‍हे लखों का नुकसान होगा । इसलिए जरूरत से ज्यादा आए दुध को गटरों में बहा दिया जाता है ... भाले गरीबों के बच्चे दूध की एक एक बूंद को तरस्ते रहें....।’
आखबारों और टी.वी. पर उस गटर के बारे में बहुत कुछ आता रहा ।
जब भी कोई आवाज या शोर उठता सी.एम. यह कहकर आवाज दबा देते ।
‘‘हमने गटर की गंदगी और पानी के नमूने प्रयोगशाल में भेजे है उनकी जांच हो रही है जांच के रिपोर्ट आने के बाद इस संबंध में तुरंत कार्यवाही की जाएगी मैं आपको विश्वास दिलता हूं ।’’
रिपोर्ट आ गई ।
रिपोर्ट क़्या थी उसमें यही था कि उस गटर की गंदगी, पानी में कुछ ऐ से जहरीले तत्व भी शामिल है जिससे समुद्र के जीवन को खतरा है । इस रिपोर्ट के आने के बाद पर्यावरण वालों का शोर कुछ ज्यादा ही बढ गया ।
धरने मंत्रालय के साथ साथ गटर के छोर पर भी दिए जाने लगे ।
हर किसीकी आवाज तेज से तेज तर होती जा रही थी जिससे सरकार और सी.एम. के कानों के परदे पकटने लगे ।
घबराकर उन्‍हों घोषणा कर दी ।
‘‘पर्यावरण को बचाया जाएगा । समुद्र के जीवन और पानी को प्रदुषित होने नहीं दिया जाएगा । सरकार 100 करोड खर्च करके उन गटरों पर ऐसे संयत्र लगाएगी जो गंदगी और विय्रैली तत्वको सापक करके शेष पानी समुद्र में छोडेंगे ।’’
100 करोड वाली स्काीम पर कार्य आरंभा हो गया । बडा संयत्र लगाने के लिए जगह की स फाई की गई । गटर के दोनो ओर की गंदगी वापस गटर मे डाल दी गई उसका घर झोंपडा तोड डाल गया ।
अब उसकी जगह गंदगी सापक करने वाल करोडो रूपयों का संयत्र लगने वाल था और सूरज बेघर गटर के किनारे उदास बैठा सोच रहा था अब ठिकाना कहा बनाए ? द द
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
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