कहानी हिन्दूस्तानी लेखक एम मुबीन
बस से गांव मे उतरने वाल वह एक मत्र यात्री था ।
सड़क पर उसे छोडकर धूल उडाती, पकरार्टे भरती बस अपनी मंजिल की ओर बढ़ गई थी और वह अपने सामन को बटोरने में लग गया । सामन ज्यादा नहीं था वह आकेल उसे उठा सकता था । परंतु बटोरना थोडा मुश्किल काम था ।
उसकी नजर गांव की ओर उठा गई । वही हो रहा था जो अब तक होता आया है ।
दूर आने जाने वाले आगंतुक को रूककर देख रहे थे और फिर या तो आगे बढ़े जा रहे थे या वहीं रूक जा रहे थे ।
गांव थोडी दूर था । उसकी वर्दी वहां से सापक दिखाई दे रही होगी । वर्दीके कारण उसका पहचान लिया जाना कोई नई बात नहीं थी । इस गांव का वह एक मत्र जवान था जो सेना में था इससे पहले वह जब भी गांव आता था उस वर्दी के कारण दूर ही से पहचान लिया जाता था और दूर ही से गांव वाले आवाजें लगाते ओर दौड पडते थे ।
‘‘आहमद भाईजान आ गए रे... आहमद भाईजान आए है ।’’
आकर वे उसका सारा सामन अपने हाथों मे ले लेते थे । उसे कभी भी सामन अपने घरतक ले जाना नहीं पहा था । सडक से घर तक सारी बातें हो जाती थी ।
‘‘भाईजान आपकाघाव कैसा है ?’’
‘‘इसबार आप ईद पर नहीं आए ?’’
‘‘बाबू की लडकी की शादी में भी नहीं आए ।’’
‘‘हम रोज आखबारों में दुश्मन की गोलबारी के समचार पढते है, टी.वी. पर देखते है.... आपके क्षेत्र में तो शान्ति है ना ?’’
परंतु उस दिन ना तो उसे देखकर किसीने ने आवाज लगाई और ना कोई उसका सामन उठाने के लिए दौडा ।
किसी तरह सारा सामन अपने शरीर पर लदकर वह गांव की ओर बढा ।
वह बोझ उठाए गांव वालों के समीप से गुजर रहा था ।
गांव वाले मूर्तिया बने उसे देख रहे थे । परंतु ना तो कोई उसे सलामकर रहा था और ना ही कोई उसका बोझ उठाने के लिए आगे बढ़ रहा था।
मूर्ति बने उसे देख रहे थे । उनकी आखों में भाय भी था और ग्लानी भी।
उसके भाई के लडके ने शायद उसे देख लिया वह दौडता हुआ आया और उसने उसके हाथों से आधा सामन ले लिया ।
‘‘चाचा अब हमरा इस गांव मे कुछ नही रहा है । सब कुछ तबाह हो चुका है, या तो जल दिया गया है, या लूट लिया गया है’’ कहता वह दहाडे मर-मर कर रोने लगा । उसे लगा जैसे कोई बरछी उसके दिलमें मर गया और उसके सारे आस्तित्व में पीडा की लहरें दौडने लगी ।
एक आसहन पीडा उस गोली की पीडा से भी आधिक जो दो वर्ष पहले कारागिल के युद्ध में लगी थी और जिसे निकाल दिए जाने के बाद भी वह कई दिनों तक दर्द से तडपता रहा था । उस समय जब वह गांव आया था तो लेगों ने उसे पैर धरती पर रखने नहीं दिया था अपने हाथों पर उठा लिया था ।
सारे गांव को सजाया गया था । सडक पर एक बहा सा स्वागत द्वार लगा हुआ था । लउडास्पिकर पर देशभाएिक़्त के गीत बज रहे थे, चारों ओर तिरंगे झंडे लगे थे उसके स्वागत के लिए सारा गांव उमड पडा था ।
गांव की औरतों ने मिलकर उसकी आरती उतारी थी और गांव के बडे, बूढों, नेता लेगोंने उसके स्वागत में भाषण दिए थे ।
‘‘यह गांव धन्य हो गया जिसने आहमद भाईजान जैसे जवान को जन्म दिया । जिसने कारागिल के युद्ध में दुश्मनों का मुकाबल करके उन्हे इस गांव की मिटटी की वीरता, शुरता का एहसास दिलया । अपने शरीर पर गोली खाई पंतु दुश्मन को खदेड कर रहा । सरकारने आहमद भाईजान को युद्ध मं वीरता दिखाने पर मेडल दिया यह सारेगांव के लिए सममन की बात है । इस गांव के इतिहास में आहमद भाईजान का यह कार्य जबतक दुनिया रहेगी हमरे गांव का वह स्वार्णिम इतिहास जगमगाता रहेगा । गांव के उस वीर सपूत के स्वागत में आगर हम अपनी पलके भी बिछाए तो वह कम है ।’’
और फिर
‘‘आहमद भाईजान...... जिंदाबाद’’
‘‘भरतीय सेना जिंदाबाद’’
‘‘भरतीय जवान जिंदाबाद’’
के नारों से सारा गगन गूंज उठा था । उसे फूले से लद दिया गया था । गांववालों के उस स्वागत, सममन, प्यार, आपनत्व से उसका मन गदगद हो उठा था । उसे इतनी खुशी इस समय भी नहीं हुई थी जब सारे जवानों के सामने कमंडर साहब ने उसके सीने पर युद्ध में वीरता दिखाने के लिए मेडल लगाया था ।
उसे लग रहा था वहां तो उसे केवल एक तमगा दिया गया था । यहां तो उसे हजारों मेडल दिए जा रहे है ।
उसे युद्ध में केवल एक गोली लगी थी और उसे उसके कारण दो महीने तक आस्पताल में रहना पडा था ।
उसे मिलने वाल सममन इतना ज्यादा था कि यदि युद्ध में गोलियों से उसका सारा शरीर भी छलनी हो जाता तो भी इस मिलने वाले सममन के मुकाबले में वह कम था ।
परंतु आजकी स्थिति ने उसे झकझोर कर रख दिया ।
वही सारे चेहरे थे, वही लेग थे जो बुत बने उसे देख रहे थे ।
ना तो कोई उसे सलाम कर रहा था और ना कोई आगे बढकर उससे हाथ मिल रहा था और ना उसका हालचाल पूछ रहा था ।
हर किसी के चेहरे पर भाय था ।
पश्चाताप और ग्लानी ! किसी आपराध की मिलने वाली सजा की कल्पना का भाय ।
‘‘आब्बा को उन्ड़ों ने बहुत मरा चाचा.... उनका एक हाथ और एक पैर टूट गया है .. हम तो समझे थे शायद आब्बा जिंदा नहीं है... आस्पताल में दो दिन के बाद उन्ड़े होश आया । मैं आममी, दादी, दोनो बहनों को लेकर सुरक्षित स्थान पर चल गया था । हमें या किसी को कल्पना भी नहीं थी कि यहां भी ऐसा हो सकता है और हमरे साथ भी ऐसा हो सकता है । सारे घर वाले कहते थे । हम पचास साल से इस गांव में रहते है । सारा हिन्दूस्तान बार बार जल मगर इस गांव में कुछ नहीं हुआ ! हमें कुछ नहीं ! हुआ इस कारण तो घर वाले गांव से जाना ही नहीं चाहते थे परंतु बहुत समझाने पर वे मेरे साथ गांव छोडकर जाने तैयार हुए कि आसपास के सारे देहात जल रहे है वह आंच कभी भी यहां आ सकती है । इस बार गांव के लेगों के तेवर भी बदले बदले से है.... अच्छा हुआ हम गांव छोडकर चले गए वरना शायद कोई भी नहीं बचता ।’’
भातीजा बीते दिनो की कहानी सुना रहा था और क्रोधसे उसकी मुठ्ठियां फ्रिंच रही थी । घर के पास आते ही उसका दिल धक से रह गया ।
अब वहां घर कहा बचा हुआ था ।
वहां सिर्फ एक खंडर बचा हुआ था ।
खंडहर जिस पर जगह जगह जलने से कालिख पुती हुई थी ।
घर के पास पहुंचने के बाद मेहलले के लेगों ने उसे चारों ओर से घेर लिया परंतु वे दूरदूर ही खडे थे ।
किसी में भी उसके समीप आकर उससे बात करने का साहस नहीं था। रास्ते भर वह कल्पना करता आया था कि क़्या हुआ होगा ।
क़्योंकि भातीजे ने तार में केवल इतना लिखा था
‘‘इस बार दंगे में हमरा घर भी जल गया है आप तुरंत आईए ’’
इसके आधार पर क़्या कुछ हुआ होगा इसका आनुमन लगाना जरा मुश्किल था ।
पहले तो उसे विश्वास ही नहीं होता था कि इस बार उसके गांव में भी दंगा हुआ है और दंगाईयों ने उनके घर को भी जलया है ।
टी.वी. पर उसने खबरें देखी थी कि उनके जिले मे कई स्थानों पर सांप्रदायिक दंगे फूट पडे है ।
वहां सेना में उसके जिले का कोई आखबार नहीं आता था जिससे विस्तार से हालत का पता चल सके ।
टी.वी. पर भी दंगो के बारे में समचार संक़िप्त से ही आते थे कि स्थिति नियंत्रण में और सामन्य है छुटपुट घटनाएं हो रही है ।
परंतु भातीजे के तार से उसे एक झटका सा लगा और वह हताश हो गया ।
जो कुछ हुआ वह उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था वह बार बार तार पढता और विचालित हो उठता ।
उसे लगा अब वह एक पल भी यहां नहीं रह सकता । उसने छुटटी की आर्जाी दी उसकी छुटटी मंजूर हो गई और वह गांव की ओर चल दिया ।
रास्ते भर वह सोचता रहा क़्या हुआ होगा उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा कुछ हुआ है ।
जिस गांव के लेगों ने कारागिल के युद्ध के बाद उसे इतना सममन दिया था उसे आखों पर बिफ़्या था वही गांव वाले उसके परिवार वालों के साथ ऐसा कर सकते है ?
‘‘नहीं नहीं वे गांव वाले उसके परिवार वालों के साथ ऐसा नहीं कर सकते ।’’
‘‘जरूर दंगाई दूसरे गांव से आए ड़ोंगे । उन्हों उसके घरको जलया होगा ।’’
‘‘मन लिया दंगाई गांव वाले नहीं है दूसरे गांव से आएं होगे परंतु फिर गांव वालों ने उन्हे क़्यों नहीं रोका ?’’
जो गांव वाले उसे इतना सममन दे सकते थे वे उसके घर की रश तो कर ही सकते थे ।
उसके जैसे जवान सारे देश की रश करते है । सरहदों पर वे जागते है, गोलियां खाते है ताकि देश देशवासी सुरक्षित रहें वे भाले रात रात भर जागते रहें परंतु देश वासी चैन की नींद सोते रहे । उनके घर और परिवार सुरक्षित रहे।
परंतु उसी सैनिक का घर परिवार सुरक्षित नहीं रह सका कितनी बडी विडमबना की बात थी ।
जले हुए घर के पास एक पुलिस का सिपाही पहरा दे रहा था ।
उसे देखकर वह उठा खडा हुआ और उसने उसे सलाम किया
‘‘सलाम आहमह भाईजान । मुझे यहां घरकी सुरक्षा के लिए नियुक़्त किया गया है । हमें खबर लगी थी कि इस गांव में भी गडबड हो रही है और आपकाघर भी निशाना बन रहा है । मगर सारी तहसील जल रही थी किस किस ओर ध्यान दिया जाता ।’’
‘इसलिए आप लोंगो ने मेरे घर को जलने दिया’ उसने क्रोधमें मुठ्ठियां भींच ली ।’’ जो जवान सारे देश की रश करता है आप लेग उस जवान के घर की रश नहीं कर सके तो आप सामन्य आदमी की जान, मल और घरों की रश क़्या कर पाएंगे....।
उसकी बात सुनकर सिपाही ने सिर झुका लिया ।
एक जले हुए कमरे के उपर चादर डालकर छाव कर ली गई थी और नीचे बिस्तर लगा था । उसके भाई उस पर लेटे थे उनके हाथ और पैरों पर पलस्तर हुआ था । उसे देखकर वह उठा बैठे और दहाडे मर मरकर रोने लगे।
‘आहमद सब कुछ खत्म हो गया, कुछ भी नहीं बचा सका, सब कुछ जल गया या लूट लिया गया और तो और तुमहारी वर्दी, बंदूक और सेना में मिले मेडलों को बाहर ले जाकर जलया गया । वे लेग इतने दानव हो गए थे कि उन्हे देश के सममन का सममन करने की भी सुध नही थी । उन सममनो को उन्हों अपने हाथों से जलया । मेरी हालत देख रहे हो... मैं मर जाता तो कितना अच्छा हो जाता कम से कम मुझे यह बातें तो तुम्हें सुनानी नहीं पडती ।’
वह भाई से लिपट गया । उसका भी मन भर आया और वह दहाडे मर मरकर रोने लगा ।
उसे लग रहा था सामने जैसे एक भीड है । आग जली हुई है और उस आग में उसकी सैनिकवर्दी जलई जा रही है । उसके मेडलों को पत्थरों से कुचल कर आग में डाल जा रहा है । वह बंदूक जिससे उसने कई दुश्मनों के सीने में गोलियां उतारी थी उसे तोडकर आग में डाल जा रहा है ।
‘‘आहमद मेरे बेटे तू आ गया’’ एक आवाज आई वह रघुकाका थे ।
भीड को चीरते रघुकाका उसके पास आए और उससे लिपटकर दहाडे मर मरकर रोने लगे ।
‘‘मेरे बेटे वह दानव बन गए थे । सारा गांव दानव बन गया था । यदि दानव नहीं बनता तो उन्हे ऐसा करने से जरूर रोकता । उन्हों हमरे गांव के पचास सालों की परंपरा की चित जलई है । मैं बूढा क़्या कर सकता था मैं उन्हे राकता रहा कि वे लेग पचास सालों से इस गांव में रहते है आज तक इस गांव मे ऐसा कुछ नहीं हुआ यह देश के एक सैनिक का घर है उस सैनिक का जिसका हमने अपने हाथो से सममन किया था । वह सैनिक जो हमरी सारे देश की रश करता है । उसके घर की रश करना तुमहारा दायित्व है और तुम उसका घर जल रहे हो ... मगर उन्हों मेरी एक ना सुनी.... एक ना सुनी...।
‘‘काका..... हम नहीं बदल सकते सादियों से साथ साथ रहते हुए भी हम हिन्दू और मुसलामन ही रहेंगे । हम भरतीय नहीं बन सकते । कारागिल जैसे किसी आवसर पर शायद कुछ देर के लिए हम इंडियन बन जाए... परंतु उसके बात फिर हिन्दु और मुसलामन बन जाते है.... ! द द
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Saturday, October 8, 2011
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