Wednesday, October 19, 2011

Hindi Short Story Sawali By M.Mubin


कहानी      सवाली   लेखक  एम मुबीन   

इमाम ने सलाम फेरा और उसी समय िकब से उभरने वाली आवाज को सुनकर सभी प्रार्थना पीछे मुड़ कर देखने लगे. एक व्यक्ति खड़ा था.
"बंधुओं! मेरा संबंध बिहार से है. मेरी लड़की के दिल का ऑपरेशन होने वाला है इस संबंध में, मैं यहाँ आया हूँ. ऑपरेशन के लिए लाखों रुपये की आवश्यकता है. आपकी सहायता का कतरा कतरा मिलकर मेरे लिए सागर बन जाएगा . मेरी बेटी की जान बच जाएगी. मेरी बेटी की जान बचाकर सवाब दारीन प्राप्त करें. "व्यक्ति की आवाज़ सुन कर कुछ नमाज़ियों के चेहरों पर नागवार के टिप्पणी उभरे कुछ गीज़ व गज़ब भरी नज़रों से उसे देखने लगे. कुछ बड़बड़ाने लगे .
"लोगों ने धंधा बना लिया है. परमेश्वर के घर में बैठ कर भी झूठ बोलते हैं."
"भगवान के घर, नमाज़ का भी कोई सम्मान नहीं. नमाज़ ख़त्म भी नहीं हुई और हज़रत शुरू हो गए."
"नमाज़ के दौरान इस प्रकार के सूचना पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए." बातों का सिलसिला बीच में ही टूटी हो गया. क्योंकि इमाम ने प्रार्थना  के लिए हाथ उठा लिए थे.
पता नहीं क्यों उस व्यक्ति की बात सुन कर उनके दिल में एक हूक सी उठी. उस व्यक्ति के बैठ जाने के बाद भी वह बार बार उसे मुड़ कर देखते रहे. उन्हें उस व्यक्ति का चेहरा बड़ा दीं लगा. ऐसा लगा जैसे यह व्यक्ति सचमुच मदद छात्र है और यह झूठ बोल रहा है. उसे ऐसा सचमुच अपने बेटी की जान बचाने के लिए सहायता चाहिए. प्रार्थना समाप्त हो गई और वह इसी बारे में सोचते रहे. वह मस्जिद से बाहर निकले तो उन्हें व्यक्ति मस्जिद के दरवाज़े के पास एक रूमाल फैलाए बैठा दिखाई दिया. रूमाल में कुछ सिक्के और एक दो एक दो रुपया की नोटें फैली थीं. एक क्षण के लिए वह रुक गए जेब में हाथ डाला और पैसों का अनुमान लगाने लगे और आगे बढ़ गए .
घर आए तो बहू और बेटा एक आदमी के साथ बातें कर रहे थे.
"यदि आप सेल्ङ्ग लगाते हैं?" वह आदमी कह रहा था. "तो मैं आप को बिल्कुल नए शैली की सेल्ङ्ग लगा कर दूंगा. इस तरह की सेल्ङ्ग मैं एक फिल्म स्टार के बेडरूम में लगाई है. एक बड़ी कंपनी के ऑफिस में भी इसी तरह की सेल्ङ्ग है. अगर आप केवल सेल्ङ्ग लगाईं तो पूरे फ्लैट में सेल्ङ्ग लगाने का खर्च पच्चीस हजार रुपये के समीप  आएगा. यदि आप सेल्ङ्ग सिर्फ बेडरूम में लगाना चाहते हैं तो दस हजार रुपये के समीप  खर्च आएगा. "
"पूरे फ्लैट में सेल्ङ्ग लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है. केवल बेड रूम में ही सेल्ङ्ग लगायेंगे." बहू बेटे की ओर सवालिया नज़रों से देख रही थी. अभी पिछले साल ही तो बीस हजार रुपये खर्च कर सेल्ङ्ग लगवाए थी. "इतनी जल्दी सीलिंग बदलने की आवश्यकता नहीं है हाँ बेडरूम में सीलिंग बदलने की सख्त जरूरत है क्योंकि बेडरूम में नया पिन तो होना चाहिए. "
"ठीक है!" बेटा उस आदमी से कहने लगा कि तुम कल ऑफिस आकर पाँच हज़ार रुपये ाडोांस ले लेना और परसों काम शुरू कर देना. काम दो तीन दिन में समाप्त हो जाना चाहिए. "
"साहब दो तीन दिनों में काम समाप्‍त  होना तो मुश्किल है कम से कम आठ दिन तो लगेंगे ही." वह आदमी कहने लगा.
"ठीक है! परंतु कम से कम समय में काम समाप्‍त  करना अगले महीने मैम साहब की बर्थ डे है. उस बर्थ डे पार्टी में अपने और मैम साहब के दोस्तों को सरपुरायज़ गिफ्ट देना चाहता हूँ." बेटा कह रहा था.
"आप चिंता न करें काम समय पर हो जाएगा." वह आदमी उठकर जाने लगा.
"अरे हाँ मुझे अपनी उस बर्थ डे पर कोई कीमती गिफ्ट चाहिए जो कम से कम बीस हजार रुपये का हो और फिर पार्टी पर भी तो दस बारह हजार रुपए खर्च तो होंगे ही. फिर यह सीलिंग का काम. इतने पैसे हैं भी या नहीं? "
"तुम चिंता क्यों करती हो. सारा इंतजाम हो जाएगा." बेटा बोला. अचानक उसकी नजर उन पर पड़ी. "अरे अब्बा जान! आइए. हम लोग आप ही का इंतज़ार कर रहे थे.
"चलिए जल्दी से हाथ मुंह धो लीजिए. नर्गिस ज़रा खाना लगाना."
"अभी लगाती हूँ." कहती हुई बहू उठ गई. खाना लगा गया और वह साथ में खाना खाने लगे. खाना खाते समय भी उनका ध्यान कहीं और ही उलझा हुआ था. बेटा फ्लैट की छत बदलने पर दस बीस हजार रुपये खर्च करने परतैयार है. पत्नी के जन्मदिन पर दस बीस हजार रुपये का उपहार देने के लिए तैयार है जन्मदिन की पार्टी पर दस बारह हजार रुपए खर्च करेगा. ख़ुदा ने उसे आसोदगी प्रदान की है. जिसके लिए मैं जीवन भर तरसता रहा.
मरियम! लगता है हमारे बुरे दिन दूर हो गए हैं तुम्हारी भी सारी दुख कष्ट दूर होने वाली हैं. तुम्हें बहुत जल्द इस मोज़ी रोग से मुक्ति  मिलने वाली है रात को सोने के लिए लेटे भी तो कोई बेटा ही छाया हुआ था.
"बेटे आमिर! ऐसा लगता है तुम मेरे सारे सपनों को पूरा कर दोगे. तुम्हारे बारे में मैंने जो जो सपने देखे थे वह सारे सपने पूरे कर दोगे. ख़ुदा तुम्हें जीवन के हर परीक्षा में सफल करे. और सारी दुनिया की मसरतें , खुशिया आकर तुम्हारी झोली में जमा हो जाएं. उनकी आंखों के सामने पांच छह साल के आमिर की तस्वीर घूम गई. जब वह खेतों में काम कर रहे होते तो आमिर अपने नन्हे नन्हे हाथों में तख्ती थामे दौड़ता हुआ आता था और दूर से उनसे चीखकर कहता था कि अब्बा! आज मास्टर जी ने हमें ए से लेकर सात तक शब्द सखाए हैं. मुझे अब आपके, त सब लिखना आता है देखिए मैंने लिखा है. वह आकर उनसे लिपट जाता था. अपनी तख्ती उनकी ओर बढ़ा देता था. तख्ती पर लिखे नन्हें नन्हें अक्षर पर नज़र पड़ते ही उनका दिल खुशी से झूम उठता था.
"बेटे मेरा दिल कहता है तो मेरा नाम सारी दुनिया में रौशन करेगा. तो एक दिन पढ़ लिखकर बहुत बड़ा आदमी बनेगा." और सचमुच आमिर ने निचली दलों से ही उनका नाम रोशन करना शुरू कर दिया था.
गांव का हर व्यक्ति जानता था कि आमिर पढ़ने लिखने में बहुत सावधान है. हमेशा क्लास में अव्वल आता है. दसवीं परीक्षा में तो पूरे बोर्ड में तीसरा आया था और उसकी इस सफलता से न केवल उनका बल्कि सारे गाँव और गाँव की इस छोटी सी स्कूल का नाम भी उजागर हो गया था और उसके बाद आमिर को उच्च शिक्षा के लिए शहर जाना था. यह तो बहुत पहले ही तय हो चुका था कि वह आमिर को उच्च शिक्षा के लिए शहर भेजेंगे.
मरियम ने अपने कलेजे पर पत्थर रख लिया था और पत्थर रख कर उस ने आमिर को उच्च शिक्षा के लिए शहर रवाना किया था. जिसे वह एक क्षण अपनी आंखों से जुदा नहीं होने देना चाहती थी. आख़िर उसकी एक ही तो औलाद थी. दो तीन बच्चे तो नहीं थे जिनमें से दिल बहला सके. पता नहीं क्यों कुदरत ने उन्हें आमिर के बाद औलाद नहीं दी.
आमिर का प्रवेश एक अच्छे कॉलेज में हुआ. अच्छे नंबरों के कारण यह गृह मुमकिन हो सका था. परंतु कॉलेज की फीस तो अदा करनी ही थी. शुल्क इतनी अधिक थी कि उनकी सारी बचत भी कम पड़ रही थी और मरियम के गहने बेच करने के बाद भी फीस के पैसे जमा नहीं हो रहे थे.
यह तय किया गया कि खेत का एक टुकड़ा बेच दिया जाए. बच्चे के भविष्य और उसकी पढ़ाई से बढ़ कर खेत नहीं है. अंत यह सब तो उसी का है. अगर यह काम नहीं आए तो क्या ोकित. खेत एक टुकड़ा बेचकर आमिर शुल्क अदा कर दी गई और उसकी पढ़ाई के खर्च का इंतजाम भी कर लिया गया. बढ़ती उम्र के साथ उनसे खेतों में काम नहीं होता था. खेत में मजदूर लगवा कर उनसे काम लेते थे. कभी कभी जब वह किसी काम से गाँव से बाहर जाते तो यह काम मरियम को करना पड़ता था. मरियम की पुरानी बीमारी का ज़ोर बढ़ता ही जा रहा था.
रात में जब ठंडी हवाएं चलते तो दमे का ज़ोर कुछ इतना बढ़ जाता था कि उन्हें मरियम को संभालना मुश्किल हो जाता था. मौसम के बदलने से दमा से राहत मिलती तो गुर्दे की पथ्री ज़ोर करती थी और इन्हीं दो बीमारियों की वजह से उन्हें मरियम को बार बार शहर ले जाना पड़ता था. गांव में आने वाले डॉक्टर मरैम की इन बीमारियों का सही रूप से इलाज नहीं कर पाते थे. शहर के एक अच्छे डॉक्टर के इलाज से थोड़ा अ. फ़ाकह हो जाता था. मरियम की दवाओं का खर्च आमिर की पढ़ाई के खर्च के बराबर था. खेत में नई फसल आते ही सबसे पहले दोनों के खर्च के पैसे अलग उठा कर रख देते थे. परंतु न तो आमिर की पढ़ाई के खर्च की कोई सीमा थी और न मरियम की बीमारी के खर्च की . दोनों बार बार अपनी सीमा को पार कर जाते थे और उनका सारा बजट गड़बड़ी जाता था. ऐसे में मरियम त्याग की मूर्ति बन जाती थी. वह लाख तकलीफों को सहन  कर लेती थी और उनसे कहती थी कि मेरी तबीयत ठीक है. डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है. पैसे आमिर को भेज दो. वह पत्नी के समर्पण को समझते थे परंतु इस मामले में पत्नी से बहस नहीं कर पाते थे. क्योंकि बेटे की पढ़ाई सामने सवालिया निशान बनकर खड़ी हो जाती थी और आमिर हर बार अच्छे नंबरों से पास होता था. और उसकी सफलता से वह खुशी से झूम उठते थे. कि आमिर के लिए वह जो इबादत कर रहे हैं. प्रकृति उन्हें उनकी इस पूजा का फल दे रहा है. आखिर वह दिन आपहोनचा जब आमिर ने शिक्षा अच्छे स्तर से पूरी कर ली.
"अब्बा! अब आप को दिन भर धूप आग में खेतों में काम करने की कोई जरूरत नहीं है. अब हमें खेती करने की कोई जरूरत नहीं है. अल्लाह ने चाहा तो मुझे बहुत जल्दी कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी और मुझे इतनी आय होगी कि आय से आसानी से मैं आप लोगों की देखभाल कर सकता. अम्‍मी  का किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज कर सकता ताकि अम्‍मी  की बीमारी जड़ से हमेशा के लिए समाप्‍त  हो जाए.
आमिर की बात सच भी थी. आमिर ने जो शिक्षा प्राप्त की थी शिक्षा की वजह से उसे ऐसी नौकरी तो आसानी से मिल सकती थी कि इसमें इन तीनों का गुज़ारा हो जाए. खेतों में काम न करने के आमिर के निर्णय से भी हुसैन थे अब उनसे भी धूप में खेतों में काम करने वाले मजदूरों की निगरानी का काम नहीं होता था. वह खेत में होते थे. परंतु उनका सारा दिल घर में लगा होता था. मरियम कैसी होगी फिर कहीं दर्द का दौरा तो नहीं पड़ गया? कई बार ऐसा हुआ जब वह खेत से वापस आए तो उन्होंने मरियम कभी पथ्री के दर्द या कभी दमे के दौरे के दर्द से तड़पता हुआ पाया. बस इसी कारण मरियम को छोड़ कर जाने को उनका दिल नहीं चाहता था.
शिक्षा समाप्त करने के बाद आमिर एक दो सप्ताह उनके पास आकर रहा था. फिर नौकरी की खोज में वापस शहर चला गया. एक सप्ताह के अंदर उसका पत्र आया कि उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई है. दो महीने बाद आया तो कहने लगा. पहले से भी अच्छी जगह नौकरी मिल गई है. इसलिए उसने पहली नौकरी छोड़ दी है.
तीन चार महीने के बाद पत्र आया कि उसने एक छोटा सा कमरा ले लिया है. वे चाहें तो आकर उसके साथ रह सकते हैं. आमिर के पास जाकर रहना एक तज़ाद का मामला था. दोनों उसके लिए राज़ी नहीं थे. अपना गाँव, खेत और घर छोड़ कर अजनबी शहर कहां जाएं? वहां न किसी से जान न पहचान. फिर वहाँ के हजारों समस्याओं. आमिर के बहुत जोर देने पर वह कुछ दिन उसके पास रहने आए. परंतु आने के बाद दोनों का यही मानना था कि उसके पास शहर में नहीं रह सकते. उन्हें वहां का वातावरण रास नहीं आया था न उनमें वहाँ समस्याओं का सामना करने की ताब थी. इस बीच में आमिर ने उन्हें लिखा उसने एक लड़की पसंद कर ली है और लड़की के घर वाले इस विवाह  आमिर से करने के लिए तैयार हैं . आप लोग आकर इस मामले को तय कर जाएं. इस बात को पढ़कर वह खुशी से झूम उठे थे. आमिर ने उनके सरका एक बोझ हल्का कर दिया था. उन्हें आमिर के लिए लड़की डखविंडनी नहीं पड़ी थी. उसने स्‍वंय  खोज ली थी. विवाह  ब्याह के बारे में वे इतने दकियानूसी नहीं थे कि आमिर की इस बात का बुरा मान जाएं. उनका विचार था कि आमिर को उस लड़की के साथ जीवन गज़ारनी है. उसने स्‍वंय  लड़की पसंद है तो लड़की अच्छी ही हो है.
एक दिन जाकर नरगस को देख आए और विवाह  की तारीख भी पक्की कर आए. इसके बाद उन्होंने बड़ी धूम से आमिर की विवाह  की. गांव के जो लोग भी उनके साथ आमिर की विवाह  के लिए शहर गए थे उनका भी कहा कि आज तक गांव में इतनी धूम धाम से किसी की विवाह  नहीं हुई.
इस विवाह  में उनकी सारी जमा पूंजी और मरियम के सारे गहने के साथ जमीन का एक टुकड़ा भी बुक गया परंतु फिर भी उन्हें कोई ग़म नहीं था. वह एक कर्तव्य से सबक दोष हो गए थे जैसे उनकी किस्मत में प्रकृति ने आराम लिख दिया था. आमिर हर महीने इतनी रकम भेजता था कि उन्हें खेतों में फसल उग वाने की जरूरत ही महसूस नहीं होती थी और उस रकम में उनका आराम से गुजर बसर हो रहा था.
मामला उस समय गड़बड़ी जाता जब आमिर राशि रवाना नहीं करता और रवॉनह नहीं करने के कारण लिख देता. नर्गिस अस्पताल में थी उसकी बीमारी पर काफी खर्च हो गया. नया फ्लैट बुक गया के पैसे भरने हैं. रंगीन टीवी लिया है उसकी किश्तें चुकानी हैं. फिर मरियम की बीमारियां भी जोर पकड़ने लगीं. कभी कभी उन्हें भी छोटी मोटी बीमारियां आ घीरतें तब उन्हें लगता कि आमिर पर तकिया करना बेवकूफी है. चाहे कुछ भी हो उन्हें आराम करने की बजाय खेतों में काम करना चाहिए. और वह फिर से खेतों की ओर आकर्षित हो गए. इस वजह से उनकी बीमारियां भी बढ़ने लगी और मरियम की. मरियम कभी कभी दर्द के इतने गंभीर दौरे पड़ते थे कि लगता कि अभी उसकी जान निकल जाएगी . डॉक्टर ने भी साफ उत्‍तर  दे दिया था. अब तक दवाओं से दर्द को दबाने की कोशिश के साथ पथ्री समाप्त करने की कोशिश भी करता रहा हूँ. परंतु न तो पथ्री समाप्‍त  हो सकी है और न दर्द और उस समय जो स्थिति हाल है उसके मद्देनजर ऑपरेशन बेहद जरूरी है. वरना किसी दिन दर्द का दौरा जान लेवा साबित होगा.
मरियम के जीवन के लिए ऑपरेशन बेहद जरूरी था और उस पर दस पन्द्रह हज़ार रुपए के खर्च की उम्मीद थी. इतनी राशि उनके पास नहीं थी. डॉक्टर ने जल्द ऑपरेशन करने पर ज़ोर दिया था. इसलिए उन्होंने सोचा सारी स्थिति से आमिर को सूचित कर दिया जाए. वह मरियम के ऑपरेशन की व्यवस्था कर देगा. इसके लिए वह आमिर के पास आए आते ही इधर उधर की बातों के बाद और फिर रात का खाना खाकर सोने के लिए आलेटे. सोचा सवेरे इत्मीनान से बातें करेंगे.
दूसरे दिन नाश्ते की मेज़ पर उन्होंने सारी स्थिति बेटे के सामने रख दी. "अब्बा मैंने आपको बार बार लिखा था कि आप अम्‍मी  के उपचार से कोताही न बरतें उनकी बीमारी बहुत खतरनाक है."
"डॉक्टर कहता है अब ऑपरेशन बेहद जरूरी है." वह बताने लगे. "वरना किसी दिन भी तुम्हारी अम्‍मी  की जान जा सकती है. ऑपरेशन में दस पन्द्रह हज़ार रुपये खर्च आएगा. इसलिए मैं तुम्हारे पास आया हूँ. अगर तुम पैसों का व्यवस्था कर दो तो ऑपरेशन करवा लूँ. डॉक्टर ने सारी तैयारियां कर ली हैं. "
"ऑपरेशन?" उनकी बात सोच कर आमिर कुछ सोच में डूब गया. "दस पन्द्रह रुपए की व्यवस्था?" बहू बेटे का मुंह देखने लगी.
"अब्बा! अब आपसे क्या कहूँ में भला इतनी बड़ी रकम का प्रबंधन कैसे कर सकता हूँ. आप जानते हैं मेरे पीछे कितने खर्च हैं. आपको नियमित रूप से पैसा रवाना करना होता है. उस फ्लैट को खरीदने के लिए जो ऋण लिया थाकी किश्तें कट रही हैं. फर्नीचर और टीवी वालों की उधार देना है. समझ लीजिए उस समय कंधे तक ऋण में धनसा हूँ और आप अम्‍मी  के ऑपरेशन के लिए दस पन्द्रह हज़ार रुपये मांग रहे हैं? "
बेटे की बात सुन कर आश्चर्य वह उसका मुंह ताकने लगे. बेटे ने नज़रें चुरा लें तो वह फ्लैट की छत को घूरने लगे जहां नई शैली की सेल्ङ्ग लगी थी. अचानक उनकी आँखों के सामने मस्जिद में अपनी बेटी के दिल के ऑपरेशन के लिए लोगों से मदद मांगने वाले उस आदमी का चेहरा घूम गया और वह लरज़ उठे. उन्हें लगा जैसे वह बेटे के फ्लैट के दरवाजे पर रूमाल बिछा कर उस से मां के ऑपरेशन के लिए मदद मांग रहे हैं.
 
...
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

0 comments:

Post a Comment

 
Copyright (c) 2010 Hindi Kahaniyan Hindi Short Storeis Edited By Ifa and Powered by Blogger.