कहानी कहीं कुछ ग़लत लेखक एम. मुबीन
तीन दिन से परिस्थितियां बिलकुल उसके विपारित चल रही थीं और वह क़्या करें उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।
तीन दिन पहले किशोर पर दिल का दौरा पडा था और उसे आस्पताल में दाखिल करना पडा था ।
जिस दिन किशोर आस्पताल में दाखिल हुआ था उस दिन शहर में उसकी चार सभाएं थी - चार बडे बडे उपनगरों की महिल मंडल की शाखाओंने उसकी अध्यक्षता में ढ़ाीमती लता गुप्ता पर हुए आत्याचारों के विरोध में सभाएं रखी थी ना केवल उसे उन सभाओं में धुआंधार भाषण भी करने थे ।
रात में ही उसने सारी तैयारियां कर ली थी ।
तीनो सभाओं में क़्या भाषण करना है वह लिख लिया था । तीनों सभाओं में भाषण तो एक ही करना था बस थोडा सा अंतर उसने उन तीनों भाषणों में कर दिया था । किस सभा के लिए कौनसी साडी, कौनसे गहने पहनने है । कैसा मेकआप करना है तय कर लिया था ।
परंतु सवेरे 6 बजे किशोर के सीने में हलका सा दर्द उठा ।
प्राथामिक उपचार के बाद भी जब आराम नहीं हुआ तो उसने अपने पैकामिली डाक़्टर को पकोन कर के बुल लिया ।
डाक़्टर ने जांच करने के बाद घोषणा कर दी कि संकेत को दिल का दौरा आया है तुरंत आस्पताल ले जाना जरूरी है ।
किशोर को एक हार्ट स्पेशालिस्ट के पास ले जाया गया । उसने तुरंत किशोर को इन्सेन्टाीव केयर युनिट में दाखिल करके उपचार शुरू कर दिया ।
ग्यारह बज गए ।
ग्यारह बजे उसकी दादर में सभा थी ।
उसके लिए बडी परीश की घडी थी । एक ओर पाति था तो दूसरी ओर सभा ।
यदि पाति का ध्यान रखते हुए सभा में नहीं जाती है तो अभी तक जो इज्जत, मन-सममन उसने बनाया था उसपर प्रभाव पड सकता है ।
ऐसी हालत में पाति को छोडकर सभा में जाती है तो चारों ओर से उस पर उंगालियां उठेगी ।
‘‘देखो, कैसी औरत है पाति की जान पर बनी है और इसे नेतागिरी की सूझी है ।’’
‘‘नारी स्वतंत्रता का नारा लगाने वाली नारियां यही करती है ।’’
‘‘भाई ये आधुनिक नारी है इनके लिए इनकी स्वतंत्रता और आधुनिकता ही सब कुछ है । मनवी रिश्ते चाहे पाति हो या बच्चे इनके लिए कोई महत्व नहीं रखते ।’’
जब उससे सहन नहीं हो सका तो उसने उस स्थान पर पकोन लगाया जहा पर सभा थी ।
‘‘मिसेस वर्म’’ दूसरी ओर से कहा गया सारे मेहमन समयपर आ गए है सभा के लिए भी कापकी भीड जम हो गई है । बस आपही का इंतेजार है । आप आएं तो सभा की कारवाई शुरू करें ।’’
उसने पकोन तो इसलिए लगाया थी कि वह सभा संचालिका को बता दे कि वह सभा में नहीं आ सकती ऐसी मजबूरी है परंतु दूसरी ओर की रिपोर्ट सुनकर उसे लगा यदि वह सभा में ना जाए तो सभा पक़्लाप हो जाएगी और सभा में ना जाने के कारण उसके नाम पर भी धब्बा लगेगा ।
‘‘बस मैं आ रही हूं’’ कहते उसने पकोन रख दिया ।
उसी समय डाक़्टर ने आकर उसे खुशखबरी सुनाई
‘‘मिसेज वर्म घबराने और चिंता करने की कोई बात नहीं है, मिस्टर वर्म खतरे से बाहर है ममूली सा दौरा था जिस पर हमने नियंत्रण पा लिया अब उन्हे आराम की जरूरत है । आप चाहें तो उनसे मिल सकती है ।’’
डाक़्टर की यह बात सुनते ही वर तीर की तरह किशोर के पास पहुंची।
‘‘किशोर तुम कैसे हो ?’’
‘‘अब फ़ीक हूं’’ किशोर के होठों पर फीकी मुस्कान उभर आई उसका चेहरा पील पहा हुआ था और चेहरे से निर्बलता टपक रही थी ।
‘‘तुम्हें कोई तकलीपक तो नहीं है ?’’
‘‘नहीं अब मैं बिलकुल ठीक हूं ’’
‘‘तुम्हें मेरी जरूर तो नहीं है ?’’
‘‘क़्यों ? तुम यह सवाल क़्यों पूछ रही हो ?’’
‘‘किशोर, तुम तो जानते ही हो चारों उपनगरों में आज मेरी सभाएं
है दादर की सभा तो आरंभा होने वाली है बस मेरा इंतजार हो रहा है... मैं
जाऊं ।’’
‘‘जाओ’’ किशोर ने मुर्दा स्वर में उत्तर दिया ।
‘‘किशोर मुझे वापस आने में देर भी लग सकती है’’
‘‘कोई बात नहीं,’’ किशोर बोल ‘‘मेरी देखभाल के लिए डाक़्टर और नर्से है ।’’
‘‘थैंक़्स किशोर, तुम कितने समझदार हो, मेरा कितना ख्याल रखते हो। भागवान तुम्हारे जैसा समझदार पाति हर स्त्री को दे ।’’ कहती वह किशोर का मथा चूमकर बिजली की तरह वार्ड से बाहर निकल गई ।
उसने ड्राईवर को आंधी तू फान की तरह सभागॄह पहुंचने का आदेश दिया । ड्राईवर ने भी आदेश का पालन किया और वह ठीक समय पर सभागॄह पहुंच गई ।
सभा में उसने बडा जोरदार भाषण किया । उसके हर वाक़्य पर हाल तालियों से गूंज उठता था ।
अब वह जमना लद गया जब औरतें घूंघट मुंह पर डाले घर की चाल दीवारी में सारा जीवन गुजार देती थी । आज की नारी जीवन के हर क्षेत्र में पुरूय्रों के साथ साथ पुरूय्रों के एंकधे से एंकधा मिलकर चलना चाहती है । बडे बडे विद्वानो ने इस बात को स्वाीकार किया कि देश की प्रगाति के लिए महिलओं की सहायता और राळ्राीय कार्यक्रमें में उनका सहभाग बहुत जरूरी है आज वही देश प्रगाति कर रहे है जिन देशों की स्रिया देश के राळ्राीय कार्यक्रमें में भाग लेती है । महिल मंडल भी एक ऐसी संस्था है जो राळ्र के हित और देशकी तरक़्काी के लिए नए नए कार्यक्रम चलता है उन कार्यक्रमें में महिलओंका शामिल होना देश की प्रगाति में हाथ बटाना होता है । लता गुप्ता भी उन्हीं कार्यक्रमें में शामिल होती थी और देश की प्रगाति के लिए काम करती थी । उसका महिल मंडल के कार्यक्रमें में शामिल होना क़्या कोई पाप था ? आगर नहीं था तो फिर उसे इन कार्यक्रमें में शामिल होने से क़्यों रोका गया ? ना केवल रोका गया बालिक उसे उसके इस आपराध की ऐसी घाीनौनी सजा दी गई है कि सादियों तक उस सजा को सुनकर मानवता कांपेगी । उसके हाथ, पैर और चेहरा जलती सलखों से दागा गया है और यह घिनौना कार्य और आपराध करने वाल आपराधी विनोद गुप्ता है जो अबतक अपनी पहुंच के कारण आजाद है । कितनी विडमबना है । बात है आज के दौर में जब सारी दुनिया में औरतों की स्वतंत्रता की बात चलकर औरतों को समन आधिकार दिए जा रहे है । यहां भरतकी नारी दमन और आत्याचार की शिकार है । उसके लिए स्वतंत्रता की बात करना पाप है । राळ्राहित के लिए काम करना पाप है । मिसेस गुप्ताने यह साहस किया तो उसके साहस की उसे यह सजा मिली कि उसके हाथों और चेहरे को जलती सलखों से दागा गया और यह आपराध करने वाल उसका आपराधी पाति अब भी आजाद है । लता के साथ इन्सापक नहीं हुआ है । हम लता के लिए इन्सापक चाहती है । यदि लता के साथ न्याय नहीं किया गया, उसके पाति को उसके कुकर्म की सजा नहीं दी गई तो हम सब नारी जाती इसके लिए आंदोलन करेंगी ।
इसी प्रकार के भाषण उसने चारों सभाओं में दिए उसके भाषण पर खूब तालियां बजी और उसकी जय जयकार भी हुई । लता गुप्ता, सुमन वर्म जिंदाबाद । ‘विनोद गुप्ता हाय हाय के नारे भी लगे ।’
रात के ग्यारह बजे उसकी आंतिम सभा समप्त हुई और वह सभा से सीधी आस्पताल पहुंची ।
इस बीच उसने बहुत चाहा कि वह आस्पताल पकोन लगाकर किशोर से बात करके उसकी हालत, खैरियत पूछे परंतू उसे समय ही नहीं मिल सका ।
जब वह आस्पताल पहुंची तो किशोर गहरी नींद सो रहा था ।
‘‘हमने उन्हे नींद का इंजेक़्शन दिया है ताकि उन्हे गहरी नींद आए और उन्हे ज्यादा से ज्यादा आराम मिले ।’’ डाक़्टर ने उसे बताया ।
‘‘मिसेस वर्म आप दिनभर कहा थी ? किशोर साहब बार बार आपको पूछते रहे थे ?’’
‘‘मैं बहुत जरूरी काम से गई थी डाक़्टर साहब’’ वह बोली । ‘‘मैं उन्हे बताकर गई थी फिर भी वे मेरे बारे में पूछ रहे थे ?’’
‘‘हा, डाक़्टर बोल, उनकी तकलीपक कुछ बढ रही थी । जाहिर सी बात है ऐसा हालत में वे आपको ही पूछेंगे । वैसे हमने दवाओं से बढती तकलीपक पर नियंत्रण पा लिया था परंतु वह कहते है ना कभी कभी दवाओं से आधिक प्रभावी किसी अपने का सामिय्र्य होता है इसलिए मेरा याहि परामर्श है आप ज्यादा से ज्यादा मिस्टर वर्म के पास रहने का प्रयत्न करे ।’’
‘‘जी’’ उसने उत्तर दिया तो डाक़्टर कमरे के बाहर चल गया ।
किशोर पलांग पर निश्चिंत सोया था ।
दिनभर की दौड-धूप के बाद उसका सारा शरीर टूट रहा था । आंखे नींद से बेझिल हो रही थी । मनचाह रहा था कि वह गहरी नींद सोकर इस थकन को मिटाए ।
परंतु उसे गहरी नींद केवल अपने बिस्तर, अपने कमरे के पलांग पर मिल सकती थी ।
किशोर के पास कोई नहीं था । उसके आने के बाद नर्स भी चली गई थी । शायद यह सोचकर कि अब वह आ गई है वही किशोर की देखरेख करेगी।
उसका किशोर के पास रूकना बहुत जरूरी था । परंतु वह रूक नही सकती थी ।
क़्योंकि दिनभर की थकन उतारने के लिए गहरी नींद जरूरी थी जो किशोर के पास नहीं मिल सकती थी ।
कल भी आज की तरह भागदौह भारा दिन होगा । दो मंत्रियों से मिलकर मेमेंरेंडम देना था । परसों के मेर्चे की तैयारी करनी थी । जुलूस निकालने के लिए पुलिस की आनुमती लेनी थी मेर्चे के लिए संबंधित लेगों को सुचित करना था । पत्रकार पारिषद में मेर्च के उद्देश बताने थे । मुख्य उद्देश विनोद की गिरपक़्तारी, उसे सख्त से सख्त सजा दिलवानी थी । लता गुप्ता के लिए यही सबसे बडा न्याय था ।
लता आस्पताल में थी । पुलिस ने विनोद को गिरपक़्तार किया था । परंतु फिर जमनत पर यह कहकर छोह दिया था कि लता अभी तक अपना बयान नहीं दे पाई जिसके आधार पर विनोद को गिरपक़्तार करके उसके विरूद्ध कार्यवाही की जा सके ।
और उन लेगों की मंग थी विनोद को गिरपक़्तार करते तुरंत हवालत में डाल दिया जाए । लता का बयान आता रहेगा । लता पर विनोद ने जो आत्याचार किए है उसके बाद लता विनोद के विरूद्ध ही बयान देगी । लता के पीछे पूरी मंडल की शाएिक़्त है । मंडल लता को न्याय दिलकर ही रहेगी ।
परंतु पुलिस ने यह कहकर दोबारा विनोद को गिरपक़्तार करने से इंकार कर दिया था कि बिना लता के बयान के हम विनोद पर हाथ नहीं डाल सकते। बस इसी के विरोध में उन्हों यह आंदोलन छेड रखा था । लता उनके मंडल की एक इकाई की सदस्य थी । वह मंडल की मिटिंगों में नियामित आती थी इसी पर उसके और उसके पाति के बीच बार बार विवाद होता था । पातिका कहना था घर के जरूरी काम छोडकर वह मिटींगो मे ना जाया करे और लगा पाति की बात नहीं मनती थी । इसी बात पर विवाद बढा था ।
लती मिटींग में जाने पर आडी थी । इस पर विनोद ने गरम सलखों से उसके हाथ, पैर, चेहरा दाग दिया । ।
उपक !
इसे सुनकर हर कोई कांप उठा था और तहप उठा था । आपराधी को सजा दिलने के लिए हर किसी ने कमर कस रखी थी और इसी के लिए यह आंन्दोलन छिहा हुआ था । अध्यक्ष के नाते वह तो सा#िकय ही थी परंतु किशोर की बिमरी इस आंदोलन की राह में एक रोडा बन गई थी ।
यही बातें सोचते सोचते वह पास वाले पलांगपर बेखबर सो गई ।
कब आंख खुली पता नहीं परंतु इतना आभास जरूर हुआ कि किशोर उसे आवाज दे रहा है ।
‘‘क़्या बात है ?’’ वह आंखे मलते-मलते ही उठी ।
‘‘पानी देना’’ किशोर बोल ‘‘मैं कबसे आवाजें दे रहा हूं घंटी बजाने पर कोई नर्स भी नहीं आती ।’’
उसने किशोर को पानी दिया और जाकर डयूटी नर्सपर बरस पडी ।
‘‘मेरे पाति कब से घंटी बजा रहे है कोई आने को तैयार नहीं । क़्या इसके लिए तुम इतने उंचे चार्ज लेते हो ? यही सेवा है ? मैं उपरतक तुम लेगों की शिकायत कर दूंगी ।’’
‘‘मौडम हम समझे आप है... इसलिए नहीं आई’’ नर्से डरते डरते बोली।
‘‘मैं सो रही थी ‘‘वह पैर पटक कर बोली,’’ यदि मेरी आंख नहीं खुलती तो मेरा पाति प्यासा तहप-तहप के मर जाता, कहती वह पैर पटकती दोबारा कमरे में आई ।
‘‘सुमन मेरे पास बैठों’’ किशोर बोल मुझे नदीं नहीं आ रही है ।
‘‘तुमहारी तबीतय तो ठीक है नां ?’’
‘‘हा ठीक है’’ किशोर ने उत्तर दिया सिर्फ नींद नहीं आ रही है ।
‘‘किशोर तुम सोने की कोशिश करों’’ वह बोली मुझे कल बहुत जरूरी काम है दिनभर की भाग दौह से बुरी तरह थक गई हूं प्लीज मुझे सोने दो ’’
‘‘ओके डार्लींग’’ किशोर बोल ।
सवेरे आंख खुली तो 6 बज रहे थे फिर भी नींद का खुमर नहीं उतरा था ।
‘‘किशोर तुमहारी तबीयत कैसी है ?’’
‘‘ठीक है परंतु रात भर नहीं सो सका...’’
किशोर से एक दो बातें करने के बाद वह घर चली आई यह कहकर कि वह दोपहर में आएगी ।
घर आई तो आया सोनू को स्कूल जाने के लिए तैयार कर रही थी ।
‘‘मेम साहब बाबा स्कूल जाने के लिए नहीं कह रहा है’’
‘‘क़्या बात है बेटे तुम स्कूल क़्यों नहीं जाना चाहते ?’’
‘‘मममी मेरी तबीयत ठीक नही है’’ सोनू बोल ।
‘‘यह अच्छी बात नहीं है बेटे’’ वह सोनू से बोली ।
‘‘मेम साहब बाबा को कुछ कुछ बुखार सा लग रहा है ।’’ उसने सोनू की गर्दन पर हाथ रखा तो उसका दिल धक से रह गया ।
सोनू को हलकासा बुखार था ।
‘‘आया सोनू को पहले डाक़्टर को बता आओ फिर स्कूल ले जाना... मुझे आज बहुत काम है ।’’
‘‘जी मेम साहब’’ आया बोली और वह तैयार होने के लिए अपने कमरे की ओर बढ गई ।
वह बडे भागदौड और थका देने वाल दिन था । एक दो मंत्रियों से बातें हुई थी । एक दो आधिकारियों को डराया-धमकाया गया था । मेर्चे के लिए पुलिस की आनुमति मंगी गई थी और आंत मे जाकर सब लता से मिली थी और उसे बताया था कि, उसे न्याय दिलने के लिए वे सब क़्या कर रही हैैं ।
‘‘यह सब आप क़्यों कर रही है’’ सारी बातें सुनकर लता बोली ‘‘इस प्रकार तो विनोद संकट मे आ जाएगा ।’’
‘‘हम यही तो चाहती है कि पुलिस विनोद को गिरपक़्तार करें और उसे कडी सी कडी सजा दे ।’’
‘‘परंतु किस लिए ?’’
‘‘उस आपराध और आत्याचार के लिए जो विनोद ने तुमपर किये है । महिल मंडल की मिटिंगो मे शामिल ना होने के लिए तुम्हारे हाथ, पैर, चेहरा और शरीर को गरम सलखों से दागा ।’’
‘‘नहीं यह झूठा है कि उन्हों मेरे शरीर को दागा’’ लता बोली ।
‘‘यह सच है कि उस दिन उनकी तबीयत ठीक ना होने के कारण मुझे मिटींग में जाने से उन्हों रोका जब मैं नही मनी तो डराने के लिए वे सलखे गरम करके लए परंतु उससे मुझे दागने का उनका आशय कतई नहीं था । घबराकर मैंने उन्हे पीछे धकेल तो सलख उनके हाथ से छूट गई और मेरे चेहरे और शरीर पर लगने से वह जल गया । इतनी सी बात का आप बतंगड ना बनाईए आपके इस आंदोलन के कारण पुलिस विनोद को गिरपक़्तार कर लेगी । हमरा दांपत्य जीवन खतरे में पह जाएगा ।’’
लता के इस बयान के बाद तो हर किसीने अपना सिर पकड लिया । उन्हे लगा जैसे वे अपनी परछाईयों से लह रही है । अच्छा हुआ लता ने पुलिस को बयान नहीं दिया वरना सब किए कराए पर पानी फिर जाता ।
कल इतने बडे विराट मेर्चे का आयोजन किया गया है और यहां तो उसका कारण ही खत्म हो रहा है । लता को बडी मुश्किल से समझा-बुझकर इस बात के लिए रोका गया कि वह कोई भी बहाना बनाकर पुलिस को कल तक बयान ना दे ।
यह तय किया गया कि कल निकलने वाल मेर्चा रद ना किया जाए मेर्चा ना निकालने पर पूरे महिल मंडल की बदनामी होगी ।
कल का मेर्चा निकल पाए फिर बाद में चाहे कुछ भी हो । चाहे लता पुलिस को बयान देकर उसे निर्दोष सिद्ध कर दे ।
शाम को आस्पताल पहुंची तो डाक़्टर नर्से किशोर को घेरे हुई थी ।
‘‘क़्या हुआ डाक़्टर’’ किशोर की हालत देखकर उसका दिल धक से रह गया ।
‘‘मि. वर्म के सीने में दर्द हो रहा था हम घबरा गए उन्हे फिर दौरा ना पडा हो, परंतु ऐसी बात नहीं है ।’’
डाक़्टर और नर्से उपचार करने के बाद चली गई ।
वह किशोर को सांत्वना देने लगी की वह ना घबराए उसे कुछ नहीं हुआ है । किशोर यह पूछ रहा था कि वह दोपहर को आस्पताल क़्यों नहीं आई तो वह विस्तार से किशोर को बताने लगी की आज क़्या-क़्या हुआ ।
आचानक उसे सोनू की याद आई तो उसने घर पकोन लगाकर नौकरानी से सोनू के बारे में पूछा ।
‘‘मेम साहब बाबा का बुखार बहुत बढ़ गया है । वह आपको याद कर रहा है ।’’
‘‘मैं अभी आई’’ कहकर उसने पकोन रख दिया और किशोर के पास आकर बोली
‘‘किशोर सोनू को बहुत बुखार है मेरा उसके पास रहना जरूरी है तुम आजकी रात किसी तरह आकेले गुजार ले ।’’
‘‘ठीक है’’ उसकी बात सुनकर किशोर मरे स्वर में बोल ।
रातभर सोनू को सख्त बुखार रहा । वह थोडी देर के लिए सो जाती । जागती तो सोनू को उसी स्थिति में पाती ।
दिन निकल तो उसकी स्थिति वैसी ही थी ।
ना चाहते हुए भी वह मेर्चे में जाने की तैयारी में लग गई ।
सोनू रो रहा था ।
‘‘मममी मुझे छोडकर मत जाईये ।’’
‘‘मैं अभी आ जाऊंगी बेटा’’ वह बोली । ‘‘आया बाबा को डाक़्टर के पास ले जाना ।’’
‘‘जी मेम साहब’’ आया बोली ।
वह घर से निकल ही रही थी कि आस्पताल से पकोन आया किशोर पर फिर हलका सा दौरा पडा है ।
यह सुनकर वह सन्नाटे में आ गई ।
‘‘ठीक है आ रही हूं’’ कहते हुए उसने पकोन तो रख दिया परंतु बडी दुविधा में पह गई ।
आस्पताल जाए या मेर्चे में । दोनो जगह जाना जरूरी था । यदि मेर्चे में नहीं गई तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा । उसकी बडी बदनामी होगी ।
दिल कहा करके वह मेर्चे के लिए चल दी ।
मेर्चे मे भाग लेने वाली बाकी औरतें आ गई थी परंतु कुछ महत्वपूर्ण हास्तियां गायब थी ।
‘‘मलती क़्यों नहीं आई ?’’
‘‘उसकी बेटी को तेज बुखार है इसलिए नहीं आ सकी’’
‘‘विशाखा’’
‘‘उसके घर मेहमन आए हैैं ।’’
‘‘बरखा’’
‘‘उसका पाति आस्पातल में है ।’’
‘‘राखी’’
‘‘उसके बच्चे की आज परीश है ।’’
वे लेग इसलिए नहीं आई है और वह ?
प्रश्न चिन्ह उसके सामने आ खहा हुआ । इसका बेटा घर में बुखार में तप रहा है । फिर भी वह मेर्चे में आई है ।
और वे लेग इतनी जरा-जरासी बात के कारण मेर्चे में नहीं आई .
उसकी समझ में नहीं आ रहा था कौन सही है । वह या वे उसका पाति और बेटा बीमर है और उनका.......
मेर्चे के साथ चलते नारे लगाते उसे लग रहा था आज कहीं कुछ गलत उससे जरूर हुआ है ..... । द द
अप्रकाशित
मौलिक
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एम मुबीन
303 क्लासिक प्लाजा़, तीन बत्ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
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Saturday, October 8, 2011
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